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शनिवार, 14 अगस्त 2010

चोला माटी के नत्था राम ...ये मेरे साथी सोनू उपाध्य का लेख हैं ....जो लोकमत में मेरे साथ कार्यरत है
भट सूअर की धुक-धुकी के धुएं का रैला उठा और जो घूमा कि खाट पर लेटी दोहरी हुई अम्मा ने खखियार के बलगम ओटले पर दे मारी... फिर चिल्लाई.. पिपली... पिपली ... पिपली... का भवो ऐसो जेसो लाइव रामलीला के लाने मेलो भर गयो. का भवो जो नत्था...कहां गयो री कुल्टा..चिल्लात जात है अम्मा बीडी पर बीडी फूंकती है.. नासमिटी, कुल्टा निकली राजनीति कि नत्था के जत्था के जत्था गांव का गांव छोड दियो. जो पिपली में लाइव फिल्म का का रंग भवो कि कैमरे की आंख घूमी भर है कि बाबू के फटे रजिस्टर में नत्था के मरने की तारीख दर्जी की थी और सांय-सांय आवाज गूंजत है.. देस मेरा रंग रेज रे बाबू.. देस मेरा रंग रेज रे बाबू..

पिपली लाइव में भवो जे कि आखिरी में कुदाली के साथ गांव से भाग गयो नत्था और बीबी रह गई तपती दोपहरी में जनगी भर बर्तन की राख के साथ मोरी में भेने के लाने.. जे का बोले पिपली की पूरा देस भयो जे.. पिपली के खुदखुसी के मेले के रेले में बंधे झूलों के नट-नटीया में जहां-तहां बिखर जात है.. तनिक गोर करों हों तो टीवी मीडिया की गाडियों की धूलेरी में बचे-खुचे चाय के गिलास दुअन्नी में बेचे-बेचे फिरो हों गन सारे नत्थों के बेटे.. बाप की मौत के लाने मुआवजा भवो है.. अधमरा भवो किसान कि खिखियाकर परसाई जी परसाई जी तो कभी हरिशंकर-हरिशंकर चिल्लात-चिल्लात रूलाई फूट पडती है. तमाशा भवो रे तमाशा.. मौत भई तमाशा.. मुआवजे के लाने तमाशा..

कछु कहत न जात जो काम अच्छो कि फिल्मी अंखियों से टिपर-टिपर देस के करनधार की ठठरी पर जे राजनीति की पिपली बाइट देत है.. दूर से कैमरो घूमत है कि पानी निकालत-निकालत पानी निकल भयो किसान को कि नत्था से मुंह ही न फेरों हों तनिक भी कि मती मारी गई कि नासमिटा हरामखोर, नत्था की टट्टी की टीआरपी में लाइव लाइव भई है पिपली..दरोगा कने का बोलत रहो कि सबके सब दो ही मिनिट में टोला बनाए के मिनिटों में मैला आंचल कर दियो.. किसान की जदगी का..

का भवो अब जे कि योजना-फोजना मिली भगत का रैला है..मंहगाई डायन मार जात है..ओ पर नत्था का का.. कि फिरकी-फिकरी घन चक्कर भयो मौत के लाने मुआवजा तो दूर की बात दीमक-दीमक-चर..चर चाटत है का भवो रे नत्था कछु एक या दो नहीं हो कुल्टा नासमिटी पूरे देस में कुर्सी घर-घर पैदा करो हों.. का भवो हों..रोंए कि हंसे कि होरी मरो थो गोदान में कि होरी-मोहतो मरो है गड्ढे में तनिक भी खैर नाहीं है..का हों रोवें कि हंसे.. हो देस मेरा रंग..रेज रे बाबू..हो देस मेरा रंग..रेज रे बाबू..

4 टिप्‍पणियां:

  1. स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं

    हैपी ब्लॉगिंग

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  2. upaadhyay jee badheea lekh hai....ache aur alag tareeke se pesh kiya hai aapne cheezo se..

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  3. this is not bad sir, your expression makes a great value to us and our communities, so carry on and write something hat kar so which you have into THE soul SHARAE with CAVS FAMILY
    WE ALL ARE RESPECT YOUR VIEWS OF NARRATION ABOUT PIPALI LIVE...........................................................................................................................................

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  4. बहुत खूब. चोला माटी के akaltara.blogspot.com पर भी देखें.

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