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बुधवार, 28 अप्रैल 2010

अगर मुझे कानून का डर न होता......मगर सवाल ये है कि बिल्ली के गले में घंटा कौन बाँधेगा ...........

भारत एक लोकतान्त्रिक देश है .....यहाँ प्रत्येक  नागरिक को समान अधिकार दिए गये हैं....इसी समान अधिकार की वजह से नरेंद्र मोदी ( जो  शायद कभी चाय की दुकान चलाते थे )..आज गुजरात में गद्दी सम्भाल  रहे हैं...और मायावती जैसी सामान्य शिक्षिका आज यूपी में राजकाज देख रही हैं..... मुझे इस देश की व्यवस्था से कोई शिकायत नहीं है.....क्योंकि इसे कायम रखने या सुधारने की जिम्मेदारी  मेरी भी उतनी ही है.....जितनी राहुल गाँधी या मनमोहन सिंह की है.....                                                                                               
                  लेकिन मुझे दुःख इस बात का है कि जहाँ  एक ओर एक आम मजदुर आठ घंटे काम करके सौ रूपया कमाता है और महीने में बमुश्किल तीन  हजार में अपने पांच -छः सदस्यों को पाल  रहा है ....बच्चों  को पढ़ा-लिखा रहा है.....वहीँ दूसरी ओर मायावती ,मुलायम सिंह ,लालू यादव ,जय ललिता और मधु कोड़ा जैसे लोग गद्दी पर  बैठते ही अरबों -खरबों के मालिक बन जाते हैं .....इनके खिलाफ सीबीआई की जाँच चलती है .....करोड़ो तो ये लोग कमा चुके हैं और करोड़ो इनके जाँच में खर्च हो जाता है....नतीजा क्या निकलता है......कभी मायावती के सांसदों के वोट के लालच में केंद्र सरकार सीबीआई की पकड़ कमजोर करती है तो  कभी मुलायम और लालू के सांसदों के वोट के लालच में....वैसे केंद्र सरकार में भी दूध के धुले लोग बैठे  होते तो कुछ उम्मीद भी किया जाता....मगर वहां भी खानदानी लोगों का राज चल रहा है ...जो सिर्फ इसी जुगाड़ में रहते हैं की शासन की लगाम खानदान से बाहर न जाये...भले ही दर्जनों मायावती पैदा हो जाये और अपनी मूर्तियाँ लगवाएं ----भले ही सैकड़ो लालू और कोड़ा हो जाये और चारा और कोयला निगलते जाये...                                                                                                                                                ऐसी बात नहीं है की इन लोगो का इलाज  नहीं है......इलाज है मेरे पास है...आपके पास है ....       

मगर सवाल ये है कि बिल्ली के गले में घंटा कौन

बाँधेगा .........................................................................................

.ऊपर मैंने जो कुछ भी लिखा है वो सब अपनी एक कविता की भूमिका के लिए                                 लिखा है............कविता कुछ इस तरह से है
                          

अगर मुझे कानून का डर न होता





अगर मुझे कानून का डर न होता

अगर मुझे समाज का डर न होता

अगर मुझे ऊपर वाले का डर न होता

तो मै जाने क्या-क्या कर गया होता



मगर इस कानून से , इस समाज से

और ऊपर वाले से मुझे ही डर क्यों

....................... लगता है



उन्हें डर क्यों नही लगता

जो जुर्म पर जुर्म किये जा रहे हैं

कुर्सी पर बैठकर हमारा खून

................... पीये जा रहे हैं



अरे कोई जरा कह दो उनसे कि समाज

से ,कानून से और ऊपर वाले से डरे

अगर हम भी डरना छोड़ देंगे तो

उन्हें तो दुनिया ही छोड़नी पड़ेगी

..............ईमान से... ................

 
   

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