जाने माने फ़िल्मकार महेश भट्ट ने मीडिया पर अपनी भड़ास निकलते हुआ दैनिक जागरण के सम्पादकीय में लिखा हैकि मीडिया खबरे देते हुए अपने सीमओं और कर्तब्यो को भूल जाता है। आपको इस बात का बहुत कष्ट है की मीडिया निजी जीवन में घुस रहा है, हमारे बेडरूम तक घुस रहा है , आम आदमी को रिपोर्टर की तरह प्रयोग कर रहा है । खैर गलत कुछ नहीं है ।
पिछले कुछ दिनों से मीडिया के खिलाफ लिखना एक फैसन सा बनता जा रहा है और खास करके इलेक्ट्रोनिक मीडिया के खिलाफ, लेकिन मै यह नहीं समझ पा रहा हूँ की इन लोगो को मीडिया के बेडरूम में घुसने से दिक्कत क्यों है भारत के लोग तो परेशां है की मीडिया उनके बेडरूम में नहीं पहुच रही है । क्योकी उनका बेड रूम ही उनका किचेन है, वही खाना बनाते है वही कपडे रखते है वाहे सोते है कोई बहार सर मिलने आजाये तो वही बैठ कर मिलते भी है और उन्हें दुःख इस बात का है कीखुद गलत काम करना बंद करो मीडिया अपने आप तुम्हारा पीछा छोड़ देगी और बहुत हो चुका अब मीडिया को कोसना बंद करो और बैठ कर आत्ममंथन करोमै चाहता हू मै चाहता हू की मीडिया मेरे पीछे आये पर आती ही नहीं मेरे गाँव का बदलू भी चाह्ता है की मीडिया आये पर आती ही नहीं क्या करे भाई. जरी रहेगा मीडिया हकमारी निजी जिन्दगी में नहीं झाकता है। वो कहते है मीडिया दिखाए की आज हम बिना खाए सो गए है, आज मालिक नाराज थे तो पैसा नहीं मांग सका खाना नहीं बना बच्चे भी भूखे है, पर ऐसा हो नहीं रहा है।
साहब लिखते है की मीडिया को अपना खुद का कोड ऑफ़ सेंसरशिप तीयआर करना चाहिए , लोगो को ऐसी खबरों का वहिष्कार करना चाहिए जो मानवीय सम्बेदानाओ को और भावनाओ को आहात करने वाली होसाहब अपनी फिल्मे बनाते वक्त ऐसा कई नहीं सोचते है । तब तो आप कहते है जो डिमांड है मै उसकी पूर्ती कर रहा हू , आप कहते है की मै फिल्मो पर पैसा लगता हू पैसा कमाने के लिए उस समय इनके जेहन में यह ख्याल नहीं आता की उनके इस कृत्य का समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा ।
पिछले दिनों मीडिया ने कुछ गलतिया की लेकिन वो नियोजित नहीं था और उसके बाद लगत आलोचनों का शिकार होकर उसने सुधार भी किया , पर आज परेशानी इण्डिया के लोगो को है उन १० से २० प्रतिशत लोगो को है जो आम जनता पर शाशन कर रहे है इनके चहरे बाहर से जितने साफ दीखते है ये अन्दर उतने ही गंदे है पर ये चाहते है की इनकी गंदगी छुपी रहे और ये आराम से शाशन करते रहे , इनके बेडरूम में गड़बड़ी है इसलिए ये वहा मीडिया का आना नहीं पसंद करते है पर मुझे खुशी है की मीडिया अपना काम कर रही है, गरीबो की गरीबी दिखा नहीं पा रही है काम से काम अमीरों की ऐयाशी तो दिखती है , ये लोग मीडिया को गली देंगे की की यह नहीं दिखाना चाहिए पर खुद नहीं सोचेंगे की यह नहीं करना चाहिए ।
मुझे समाज के इन कथित बुधिजीवियो से यही कहना है की मीडिया पर अंकुश लगाने से पहले खुद पर अंकुश लगाओ , खुद गलत काम करना बंद करो मीडिया अपने आप तुम्हारा पीछा छोड़ देगी और बहुत हो चुका अब मीडिया को कोसना बंद करो और बैठ कर आत्ममंथन करोमै चाहता हू मै चाहता हू की मीडिया मेरे पीछे आये पर आती ही नहीं मेरे गाँव का बदलू भी चाह्ता है की मीडिया आये पर आती ही नहीं क्या करे भाई? जरी रहेगा .............
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जवाब देंहटाएंमैंने अपने इस लेख से किसी की तारीफ करने की कोई कोशिश नहीं की है. इसका गलत अर्थ न निकाले. मै सिर्फ यह कहना चाहता हूँ की घटिया विचार के लोगो से आज की पत्रकारिता बेहतर है . किसी को चोरी न करने की नसीहत देने से पहले खुद देश की सभ्यता पर डाका डालना बंद करो . रही बात प्रभाष जी की तो वो मीडिया के विरोधी नहीं थे वो कुछ गिरी मानसिकता के लोगो के विरोधी थे उनमे से कुछ पत्रकार है तो कुछ फिल्मे बना रहे है , कुछ लोग ऐसे ही बैठे बैठे समाज में गंदगी फैला रहे है ..
जवाब देंहटाएंबाकी जरी रहेगा ............