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शुक्रवार, 18 मार्च 2011


बच्चों के हाथ में चाकू और मूर्खों के हाथ में कलम  अच्छा नही लगता ...........


 
किसीने खूब कहा है कि धंधा तो कफ़न बेचने का भी अच्छा है---अगर मरने वाले साथ दें......भैया जीने के लिए कोई न कोई धंधा या पेशा तो अपनाना ही पड़ेगा.........लेकिन खबरदार ------यहाँ मै ये कहना चाहूँगा कि पत्रकारिता ऐसी चीज या धंधा  या पेशा बिलकुल नही है.....कि कोई उम्मीद करे कि पढ़ने वाले साथ दें या देंगे.....आज मार्केट में सैकड़ो न्यूज पेपर और मैग्जीन पड़े हुए हैं....लोगो के पास आप्शन है....अगर आप बहुत अच्छा  मैटर या कंटेंट लिखना नही जानते हो...तथ्यों को सही ढंग से प्रस्तुत नही कर सकते हो .....तो इस धंधे में मत आओ...गलती से डिग्री ले भी लिए हो तो प्रैक्टिस  करो....बोले तो...पढ़ो...पहले से जो पत्रकार या लेखक कुछ लिखते आ रहे हैं...उसे पढ़ो....अपने पसंद के लेखक को ही पढ़ो...लेकिन भैया पढ़ो....आई एम द  बेस्ट का गुमान कत्तई मत करना.........मै खुद अभी पत्रकारिता के फिल्ड में बच्चा हूँ..... मै किसी को उपदेश देने कि स्थिति में नही हूँ.....लेकिन माफ़ कीजियेगा मै पढ़ता हूँ --खुद को आई एम द बेस्ट कभी नही समझता ....और अगर मुझे कुछ बुरा लगा तो अपनी राय व्यक्त करने में कोई बुराई भी नही समझता....

लो अब मुद्दे कि बात भी कह देता हूँ जिस वजह से मुझे ये सब लिखना पड़  रहा है.........
                 १-कुछ दिन पहले ही में मैंने एक लेख पढ़ा, ---उसमे लिखा था
 "  वरुण गाँधी जल्द ही विवाद करने वाले हैं.....और उनकी माँ मेनका गाँधी ने उनके लिए एक लड़की ढूंढ़ ली है"....
                 २- इसके आगे उन्होंने जो कुछ  लिखा है...उसका छोटा सा अंश ये है --------
           "योगी आदित्यनाथ ऐसे युवा सांसद हैं जिनके सिर पर अभी तक सेहरा नही बंधा है या जिनके हाथ अभी पीले नही हुए हैं".....
  

      ""जबकि योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ मंदिर गोरखपुर  के पीठाधीश्वर  हैं....उस पद पर बैठा व्यक्ति विवाह नही करता...यह एक सार्वभौमिक सत्य
 ( universal  truth ) है ""
..... 
 विवाह कि जगह लिखा गया है-----"विवाद करने वाले हैं "----चलिए इसमें उनकी गलती  हो न हो--- पत्रिका के प्रूफ रीडर और सम्पादक भी सो रहे थे क्या----नींद में बिना पढ़े ही लेख को ओके  कर दिया ----तो भैया फिर कह रहा हूँ  कि  पढ़ो.....लेखक महोदय -सम्पादक महोदय ---आई एम द बेस्ट के ख्वाब से जागो----आप अपने लेख को--अपने मैग्जीन को खुद नही पढ़ोगे तो जनता--पाठक----या कह लिया जाये कि ग्राहक क्या खाक खरीदेगा और पढ़ेगा----अगर आपके पास २ नम्बर का पैसा हो, और लुटाना हो तो ऐसी चीजों को बार -बार लिखो और छापो---और अगर २ नम्बर का  पैसा नही है तो........पहले पढ़ो फिर लिखो और छापो......
                      सब कुछ के बाद सभी पाठकों को होली की शुभकामना देते हुए तथा लेखक बंधू , प्रूफ रीडर साहब और सम्पादक महोदय से "बुरा न मानो होली है" कहकर मै अपने बात को समाप्त करता हूँ........जय राम जी की.......          
                            "HAPPY HOLI "


हिंदी फिल्मों की सफलता में मीडिया की भूमिका  --

मीडिया अभिव्यक्ति का एक माध्यम है.... भारत में मीडिया किसी न किसी रूप में मानव सभ्यता के विकास से रही है...... प्राचीन समय की बात करे तो अशोक महान के समय में पत्थरों की शिलाओं और लाटों पर लिखे गए लेख भी मीडिया का ही एक रूप था....सूचना और प्रद्यौगिकी के विकास की वजह से वह आज समाचार पत्र,  पत्रिका, टेलीविजन , रेडियो,  ब्लॉग , और न्यूज पोर्टल  का रूप ले चुका है....आज यह हमारे जीवन का इतना महत्वपूर्ण अंग बन गया है कि सुबह नींद से जागने से लेकर रात को सोने तक हम मीडिया से किसी न किसी रूप से जुड़े रहते हैं....कोई नींद से जागते ही अख़बार ढूंढता है....तो किसी कि उंगलिया टेलीविजन के रिमोट पर घुमती रहती है.... कोई रेडियो के माध्यम से तो न्यूज पोर्टल के माध्यम से अपने इंटरेस्ट की जानकारी हासिल करने में लगा रहता  है.... मीडिया के मूल  उद्देश्य तीन हैं -१- सूचित करना,२- शिक्षित करना और ३- मनोरंजन करना... लेकिन हम देखे तो मीडिया अपने उद्देश्यों से भटकी हुई नजर आ रही है....सूचना देने और शिक्षित करने का कम मीडिया कम कर रही है.... इसके  बजाय मीडिया भ्रम फैला रही है...अनुमान के आधार पर  अपुष्ट ख़बरों को ब्रेकिंग के नाम पर परोसा जा रहा है.....  मीडिया का रूप आजकल सूचना और शिक्षा देने का  कम होता जा रहा है....लेकिन अपने तीसरे उद्देश्य में मीडिया जी जन से जुटी है..... मनोरंजन परोसने में मीडिया सशक्त भूमिका निभा रही है...... बात अगर बॉलीवुड अर्थात हिंदी फिल्मों की हो तो कहना ही क्या ....आजकल जहाँ न्यूज चैनल अपने न्यूज बुलेटिन को कटरीना और अभिषेक बच्चन  जैसे फ़िल्मी सितारों के फिल्मों की शूटिंग और उनके प्रमोशन से कर रहे हैं....वहीं न्यूज पेपर में भी फिल्मों के लिए विशेष कालम और  पेज सुरक्षित रखते हैं.....न्यूज पोर्टल की बात करे तो वहाँ भी मूवी मसाला और बॉलीवुड का विकल्प मौजूद रहता है..... बस एक क्लिक कीजिये और फ़िल्मी खबरों के समुन्द्र में गोता लगाइए..... सोचने वाली बात यह है की मीडिया  जहाँ अपने दो उद्देश्यों से भटक रही है....वहीं मनोरंजन परोसने विशेषकर फिल्मों की शूटिंग, उनके लागत, एक्टर , डाइरेक्टर , उनके प्रमोशन , हीरो और हीरोइनों के प्यार के किस्सों को इतना महत्व क्यों दे रही है..... गौर करने पर हम पाएंगे की दर असल मीडिया और हिंदी फिल्म उद्योग एक दुसरे के साथ एक अघोषित समझौता कर चुके हैं.....और एक दुसरे को लाभ पहुंचा रहे हैं...
''नो वन्स किल्ड जेसिका'' मूवी  की नायिकाओं रानी मुखर्जी और विद्या बालन का स्टार न्यूज पर आना, मीडिया और बॉलीवुड के अघोषित समझौते की कहानी या यूँ कहे कि एक दुसरे को लाभ पहुँचाने कि रणनीति को खुद बी खुद बयाँ कर देता है------- दरअसल रानी और विद्या अभिनीत यह मूवी जब रिलीज होने वाली थी तो...दोनों ही अभिनेत्रियों ने स्टार न्यूज पर जमकर गपशप किया था...वह गपशप भी उनकी फिल्म ''नो वन किल्ड  जेसिका'' को लेकर ही था....गपशप भी सामान्य गपशप न उत्प्तंग बातों और हरकतों से भरपूर था....यहाँ तक कि फिल्म के डाइरेक्टर के आने के बाद उनकी चुलबुली  हरकतें और बढ़ जाती हैं..... इस तरह के कार्यक्रम से जहाँ उनकी फिल्म का दर्शकों के बीच प्रचार होता है....फिल्म को अधिक से अधिक दर्शक मिलने कि सम्भावना बनती है....वहीं स्टार न्यूज कि टीआरपी भी हाई होने की सम्भावना रहती है....टीआरपी हाई होने से विज्ञापन ज्यादा मिलने और महंगे दर पर मिलने की सम्भावना रहती है...तो फिल्म के ज्यादा से ज्यादा दर्शकों के बीच पहुँचने से फिल्म यूनिट की मोटी कमाई का रास्ता खुल जाता है.....तो इस बात को डंके की चोट पर कहा जा सकता है की ये दोनों ही समूह एक दुसरे को लाभ पहुँचाने का काम  करते   हैं......
और फिल्मों की सफलता की बात करें तो मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है.....
नो वन किल्ड जेसिका इकलौता उदाहरन नही है.....
कैटरीना कैफ और इमरान खान अभिनीत  '' मेरे ब्रदर की दुल्हन '' फिल्म  की आगरा में हुई शूटिंग की झलकियों को मीडिया के सामने सुनियोजित  ढंग से पहुंचाना और न्यूज चैनलों की हेडलाइन बनना भी इसीका उदाहरण है......

बस आज इतना ही गुड नाईट...........................
  

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