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मंगलवार, 22 जून 2010

  भ्रष्ट पत्रकारिता को सफलता का शोर्ट कट कहा जाता है----- कुठियाला
माखनलाल चतुर्वेदी राष्टीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति बृजकिशोर कुठियाला जी से हाल ही में हर्षवर्धन पाण्डेय  ने बातचीत की जिसमे आज की पत्रकारिता के बारे में खुलकर चर्चा हुई । इस बातचीत में उन्होनें पत्रकारिता से जुड़े कई राज खोले. वस्तुत: स्वभाव से एक शिक्षक और मानवशास्त्र के स्टुडेंट रहे कुठियाला जी ने उच्च शिक्षा IIMC और FTII जैसे संस्थानों से ली.मनुष्य और सम्प्रेषण पर लिखे कुछ लेखों ने उनकी दिशा बदल दी और वे पत्रकार बन गए.


11 साल रिसर्च और 26 साल शिक्षण के कार्य का लंबा अनुभव रखने वाले कुठियाला जी से आज के दौर की व्यवसायिक पत्रकारिता के मिथकों और सनसनीखेज खबरों की अंधी दौर के बारे में हर्षवर्धन पाण्डेय ने विस्तार से बात की। जिस में कई अहम जानकारियां से हम रु ब रु हुए॥

पेश है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

सबसे पहले तो माखनलाल चतुर्वेदी राष्टीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति बनने पर आपको बधाई ...

जी बहुत बहुत शुक्रिया...

भारतीय पत्रकारिता के प्रतिष्ठित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति के नए रोल को क्या आप किसी चुनौती के रूप मे लेते हैं?

ये मेरे लिये कोई चुनौती नहीं है. किसी भी काम को चुनौती के रूप में लेना मेरा स्वभाव नहीं रहा है. ये तो बस मौके की बात है. अपनी डयूटी और रिटायरमेंट के बाद वैसे भी मैंने प्लान किया था वानप्रस्थ की ओर जाने का, लेकिन ये नई जिम्मेदारी मेरे लिये नई उर्जा के समान है और ये काफी उत्साह वर्धक है. हां ये बात तो है कि ये बड़ी जिम्मेदारी है और मेरी कोशिश रहेगी की इस विश्वविद्यालय से अच्छे पत्रकार समाज को दूं.

ऐसा सुनने में आ रहा है कि अच्युतानंद मिश्रा जी के बाद कुलपति के पद पर आपकी नियुक्ति को लेकर कुछ राजनीति भी हुई थी?

हंसते हुये - डिप्लोमेटिक उत्तर दूं क्या! -

आपको जो उचित लगे.

नहीं, बिल्कुल नहीं. हां लेकिन मै इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि दबाव जरूर बना. क्योंकि कुछ लोग चाहते थे कि मैं इस पद पर काम करूं. कम्पीटिशन तो था पर मेरा सेलेक्शन हुआ. मुझसे कहा गया कि पिछले 15 सालों में मीडिया संस्थानों के निर्माण के कार्यों को देखते हुए आपको ये जिम्मेदारी सौंपी गई है. इसमें हमारे अनुभव भी काम आये.


मैं ये भी बताना चाहुंगा कि मेरा कद अच्युतानंद मिश्रा जी से काफी छोटा है. ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे उस विश्वविद्यालय के कुलपति की जिम्मेदारी सौंपी गयी है, जिसे अच्युतानंद मिश्र जी ने अपने प्रयासो से एक नई पहचान दी है. उनके कार्यो को आगे बढाना मेरी प्रमुखता होगी.

माखनलाल के वीसी बनने के बाद आपकी और क्या प्राथमिकता होगी. गाहे बगाहे ये सुनने में भी आता है कि बाहर से कम ही लोग भोपाल आ पाते हैं. ये सब बेस्ट फैकल्टी को लेकर कहा जाता है?

नोयडा सेंटर की शिकायत रही है कि हमारे यहां बाहर से कम लोग आते है. वही भोपाल वाले भी कहते हैं. इसका निराकरण किया जायेगा. उन विशेषज्ञ को बुलाया जायेगा जो अपने क्षेत्र में माहिर हो. जैसे कि आप राजदीप सरदेसाई से ये उम्मीद नहीं कर सकते की वो आकर आपको अच्छा वायस ओवर सिखायेंगे. ये तो कोई अच्छा वायस ओवर आर्टिस्ट ही सिखा सकता है. मेरे संज्ञान में कुछ बातें भी आई है.


बंद हो चुके कुछ कोर्स जैसे बिजनेस जर्नलिज्म और स्पोर्ट्स जर्नलिज्म पर भी हमारी चर्चा हुई है. यहां आपको बता दूं कि हम कुछ विशेष चीजों पर काम कर रहे हैं. कॉमनवेल्थ गेम से पहले हम कुछ वर्कशॉप करायेंगे. ताकि उनको सही से तैयार किया जा सके.

आप एक प्रतिष्ठित पत्रकारिता विश्वविद्यालय के वीसी हैं. जहन में एक सवाल आता है कि आप की नजर में भ्रष्ट पत्रकारिता की क्या परिभाषा है?

आं.... देखिये सच कहा जाय तो भ्रष्ट पत्रकारिता में बहुत आकर्षण होता है . सभी को पता है कि ये गलत है. फिर भी लोग इसके हाथों में समाते चले जाते हैं. एक अच्छे और ईमानदार पत्रकार समय के साथ मीडिया एथिक्स और वैल्यू के साथ समझौता करता चला जाता है और धीरे धीरे इसके जाल में फंसता जाता है .फिर टीआरपी और रीडरशिप की चुहा बिल्ली की दौर के पीछे भागने लगता है.


आज ऐसी पत्रकारिता को सफलता का शॉर्ट कट भी माना जाता है. ऐसी पत्रकारिता से दूर रहने का हमें भरसक प्रयास करना चाहिए. जिससे कि हम एक अच्छे पत्रकार बन सके और समाज को एक नई दिशा में ले जा सके. ये वास्तविकता है कि हम बुरी चीजों के प्रति जल्दी आकर्षित होते हैं, लेकिन हमें अपनी मर्यादा का ख्याल रखते हुए अपनी हदें और मिशन खुद तय करना होता है.

आपकी नजर में सनसनीखेज खबर के दलदल से निकलने का क्या रास्ता है?

देखिये इस तरह की पत्रकारिता काफी हद तक भटक चुकी है. गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में पत्रकार अपनी जीविका चलाने के लिए आज इस रास्ते पर चल रहे हैं और इस तरह की खबरों को खरीदना और बेचना चाहते हैं. आप ये भी कह सकते हैं कि सुर्खियों में बने रहने का ये एक शॉर्ट कट भी है. ऐसे पत्रकार सोचते हैं कि ये सबसे आसान रास्ता है एक लोकप्रिय मीडियाकर्मी बनने का.


लेकिन जो खबर नहीं भी है उसे सनसनीखेज ढंग से परोसना और बिना वजह ऐसे खबरों को तवज्जो और तूल देना दर्शक और पाठक के साथ सरासर धोखा है. सब को पता है कि पूरे विश्व में बडे अखबारों का सर्कुलेशन भी धीरे धीरे कम हुआ है. लगातार खबरें देने के दवाब में मीडिया खबरें बनाने लगते हैं. ये बाजार का दबाव है. ये इस बात का सूचक है कि अखबार भी अपने पाठकों के बीच पैठ बनाने के लिये बुरे दौर से गुजर रहा है. ऐसे वक्त में आप सिर्फ आपने बिजनेस के बारे में सोच सकते है ना की पत्रकारिता एक मिशन है, इस बारे में. ये एक बहुत बडी विकृति है. आप वही करेंगे जिससे संस्थान को लाभ होगा. मेरे विचार से टीआरपी, एबीसी और रीडरशिप ये सब एक मिथ्या है.


हम ये भी कह सकते हैं कि अच्छे लोग या तो थक चुके हैं या रुखसत हो चुके हैं. मीडिया के भीतर सफल पत्रकार भी इन सब चीजों से त्रस्त है. इस दलदल से निकलने का एक मात्र रास्ता है इच्छा शक्ति और लोगों के बीच सही रूप से किसी भी खबर का प्रस्तुतिकरण.

ऐसे में पत्रकारिता के भविष्य को आप किस रूप में देखते हैं?

जहां तक पत्रकारिता के भविष्य का सवाल है तो भविष्य में पत्रकारिता द्वारा संवाद बढेगा और स्वरुप बिगड़ेगा. ये स्वरुप सारा ध्वस्त होगा. फिर से एक नया मीडिया उभरेगा और जो समाज के हित की बात करेगा. आज की पत्रकारिता वो भस्मासुर है जो खुद अपने सिर पे हाथ रखे है.

क्या आप ये सब क्राइम बीट की पहुंच बढने के कारण कह रहे हैं ?

नहीं मैं उस मीडिया की बात कर रहा हूं जो हर जगह कॉमर्शियल चीज आसानी से ढूंढ़ लेता है. आम आदमी को क्या लाभ होगा ये हेडलाइन नहीं बनती. आज आलम ये है कि हमारा मीडिया ममता बनर्जी और सचिन तेंदुलकर में भी कॉमर्शियल ढूंढ़ लेता है. जो काम रेल आम आदमी के लिए कर सकता हैं वो काम सचिन तेंदुलकर नहीं कर सकता. अभी कुछ समय पहले मैं एक सेमिनार में हिस्सा लेने ऑस्ट्रेलिया गया था वहां एक मुद्दा उठा जो डेथ ऑफ जर्नलिज्म का था. पत्रकारिता अप्राकृतिक हो गयी है .20 -25 लोग जो बड़ी जगहों पर बैठें हैं, वो ये डिसाइड कर रहे हैं कि हमें कौन सी सामग्री परोसनी है. आज कल पत्रकार वो है जिसका काम बस हो गया है सूचना इकट्ठा करो और भेज दो. खबर बन जाएगी.

बेन्जामिन ब्रेडली ने 25 साल तक वाशिंगटन पोस्ट जैसे अखबार का सम्पादन किया. कुछ साल पहले जब वो भारत आये तो शेखर गुप्ता एनडीटीवी पर उनका वाक द टॉक कर रहे थे. उन्होने एक बात कही कि अमेरिका में पत्रकारिता बुनियादी मुद्दो की ओर लौट रही है. ऐसे में ये जो सेकेंड लाइन जर्नलिज्म है क्या वो भी भारतीय पत्रकारिता की ओर लौट सकती है. इसके बारे में आप क्या कहेगें?

देखिये सेकेंड लाइन जर्नलिज्म सामाजिक मुद्दों से जुडा हुआ है, ये जमीन से जुडे लोगों के लिए काम करता है. आप कह सकते है कि ये पत्रकारिता के रियल वैल्यू और इथिक्स से जुडा हुआ है.


अगर आप आरएसएस की मासिक, पाक्षिक, साप्ताहिक पत्रिका की कुल प्रसार संख्या देखें, तो ये किसी प्रतिष्ठित अखबार के मुकाबले ज्यादा है. इसमें देश, समाज, मानवता से जुडे मुद्दे की बात होती है. हम क्या करना चाहते हैं? क्या अधिकार है? जिस दिन पत्रकारों को ये सब समझ में आ जाएगी, उस दिन से वो इस ओर मुखातिब हो जाएगें. आप देखेंगें, आने वाले दिनों में यही सेकेंड लाइन जर्नलिज्म फलेगा, फूलेगा और लोगों के बीच लोकप्रिय होगा.

कुठियाला साहब ये जो आजकल चौबीस घंटे के न्यूज़ चैनलों की बाढ़ आ गयी है या यूं कहा जाए कि आना बदस्तुर जारी है, इसके बारे में आपकी क्या राय है ?

(हंसते हुए) चौबीस घंटे न्यूज़ चैनल का कांसेप्ट ही असफल है. ईमानदारी से चौबिसो घंटे समाचार का प्रसारण और उसे प्रस्तुत करना नामुमकिन है. इस लिए तो न्यूज़ चैनल आजकल रियालिटी शोज का सहारा ले रहे है. आप देख सकते है कि कोई भी न्यूज़ चैनल इससे अछूता नहीं है. खबरों को सबसे पहले ब्रेक करने और लगातार खबरें देने के दबाव और आपाधापी में चैनल खबरें बनाने लगते है. ये जनता के साथ सरासर धोखा है.

आजकल मीडिया का ट्रेंड बन गया है खबर को बढा-चढा कर परोसने का. मीडिया की इस अतिवादिता की चाभी को आप किस तरह लेते हैं ?

(थोडा गंभीर होते हुए)- अपनी सेल वैल्यू को बढ़ाने के लिए न्यूज़ चैनल खबरों की सनसनीखेज पैकेजिंग करते हैं और ऐसा फ्लेवर डालते हैं मानो ये खबर सिर्फ और सिर्फ उनके पास है. इस चक्कर में चैनल वाले जो खबरें तथ्यहीन है उसे भी सनसनीखेज और भयानक रुप से दिखाते हैं. लेकिन ये बहुत ही गलत अप्रोच है. ऐसे मीडिया हाउस लम्बी रेस के घोड़े नहीं हैं. लेकिन मैं आश्वस्त हूं कि आने वाले समय में अच्छे, निष्पक्ष और जनता के हितो को तव्वजो देने वाली खबरे भी आएगी.


राधे श्याम शर्मा जी जो वरिष्ठ पत्रकार है, ने अभी एक बहुत अच्छी बात कही है कि एक दिन वही पत्रकार होगा जो कभी नहीं बिकेगा. जितनी जल्दी बिकोगे उतना कम दाम मिलेगा. इसे कोइ संस्था या शिक्षण संस्थान तय नहीं कर सकता. ऐसे में एक अच्छे पत्रकार को खुद अपनी पत्रकारिता मिशन को टारगेट करना चाहिए. जिसके लिए वो समाज के चौथे स्तंभ के रुप में जाना जाता हैं.

कुछ बात करते है विश्वविद्यालय की प्लेसमेंट सेल पर. विश्वविद्यालय की प्लेसमेंट सेल को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते है. स्टुडेंट का ये कहना होता है कि जब पूरा विश्वविद्यालय एक है. तो फिर एमजे (पत्रकारिता विभाग) के स्टुडेंट का प्लेसमेंट हमेशा गुपचुप तरीके से हो जाता है, जबकी कैव्स (सेंटर फॉर ऑडियो विजुअल स्टडीज) और दूसरे डिर्पाटमेंट के स्टुडेंट सिर्फ हाथ मलते रह जाते है. क्या कुठियाला जी के आने के बाद हम उम्मीद करें की चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी?

हां, मुझे इसकी जानकारी मिली है जो ठीक होगा वहीं किया जाएगा. इसपर अभी बात करना ठीक नहीं है. प्लेसमेंट क्षमतावान छात्र-छात्राओं का होना चाहिए. उन्हे इसके लिए खुद लायक बनना चाहिए. मैं कार्यभार संभालने के बाद हर दिन विभाग में दस से ग्यारह बजे तक पर्सनालिटी डेवलपमेंट की क्लास शुरू करवायी है जिससे जल्द ही अच्छे और सकारात्मक परीणम सामने आयेंगे. मैं ग्यारह वर्षों से इन चीज़ों पर जोर देता रहा हूं. उम्मीद है चीज़ें बदलेगी. मेरा जोर प्लेसमेंट सेल नहीं बल्की ऐसी बेस्ट फैकल्टी की तरफ रहेगा जो पढाई के दौरान ही बच्चों की प्रतिभा को तराश ले और उन्हें इनटर्न पर ले जाए.

चलिए ये सवाल आपकी निजी जिंदगी से. पढने के अलावा कुठियाला साहब को और कौन से शौक हैं ?
मैं रात में उपन्यास पढता हुं. मेरा शौक रहता है कि मैं कुछ पढूं. लेटेस्ट फिल्म देखना भी पसंद करता हूं. संगीत से लगाव है. दिनचर्या तो व्यस्त रहती है. इसी में सीरिअल देखने का समय निकाल लेता हूं.

पत्रकारिता के स्टुडेंट के लिए कोइ संदेश ?

बडे सपने देखो. निपुणता बढाओ. कम्प्यूटर में प्रवीणता लाओ. दो भाषाओं पर अच्छी पकड़ बनाओं.पढने से ज्यादा सोचने और विश्लेषण के लिए समय दो. देखो सफलता आपके कदम चूमेगी.
(हर्षवर्धन पाण्डे युवा पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है...समसामयिक विषयो पर लेखन   लम्बे समय से करते आ रहे है... आप इनके विचारो को "बोलती कलम ब्लॉग पर भी  पढ़ सकते  है)

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