बड़े बुजुर्ग कह गए हैं की द्विअर्थी वाणी और चरित्र वाले मित्र से एक दुश्मन अच्छा है। पिछले 9 साल के शासनकाल में भाजपा की का कथनी और करनी में अंतर बताने वाले जितने तथ्य सामने आए हैं, वे संभवत: यही इशारा करते हैं। महिलाओं, किसानों और गरीबों को लेकर खासी आत्मीयता दिखाने वाले प्रदेश की भाजपा सरकार की हकीकत इसके कदम उलट है। यह आरोप यदि विपक्ष के नेता लगाते तो शायद इसे राजनीति से प्रेरित करार दिया जाता, लेकिन इस वास्तविकता से पर्दा उठाने वालों में सरकार के मंत्री और भाजपा की मातृ संस्था आरएसएस शामिल है। पिछले दिनों आरएसएस के एक पदाधिकारी साफ कहा की संघ सरकार से खुश नहीं है। इससे पहले भाजपा के ही एक वरिष्ठ नेता ने तो मुख्यमंत्री को घोषणावीर की ही उपाधि दे डाली थी। हालांकि उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा।
सर्कार के पिछले 9 साल के कार्यकाल पर नजर डालें तो वादे जितने सकारात्मक हुए हैं, परिणाम उतने ही नकारात्मक सामने आए हैं। इसका खुलासा खुद सरकार ने विधानसभा में किया है। सरकार महिलाओं की खासी हितैषी बनती है, लाड़ली लक्ष्मी, कन्यादान और बेटी बचाओ आंदोलन जैसे कार्यक्रमों पर करोड़ों रुपए खर्च किये जाते हैं, लेकिन यही सरकार बच्चियों के अपहरण और बलात्कार रोकने में नाकाम साबित हुई है। गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने खुद विधानसभा में स्वीकार किया कि सरकार पांच हजार बच्चियों का पता नहीं लगा सकी। इनमें से कुछ मानव तश्करी के मामले हैं। बलात्कार के मामलों में मध्यप्रदेश वर्षों से नबंर वन का ताज पहने हुए है। हाल ही में दतिया में विदेशी महिला से हुए गैंगरेप का जब विरोध किया गया तो सरकर ने इसे स्वार्थ की राजनीति करार दिया। हालांकि भाजपा जब विरोध में थी, तब विरोध स्वरूप रेप पीड़ित महिला को सार्वजनिक सभा में लाने पर भी नहीं हिचकी थी।
खैर! भाजपा की कथनी और करनी का अंतर यहीं खत्म नहीं होता। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जबसे मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली है, उनका एक ही ध्येय रहा है किसानी को लाभ का धंधा बनाना। लेकिन इसकी वास्तविकता भी वादे के एकदम उलट है। कर्ज में डूबे किसानों के लिए सरकार जगह-जगह मदद की घोषणा करती है लेकिन जब वक्त आता है तो मदद उद्योगपतियों की, की जाती है। प्रदेश में किसानों पर सबसे ज्यादा बिजली चोरी के केस हैं। यह आरोप नहीं है बल्कि सरकार की स्वीकारोक्ति है। ऊर्जा मंत्री ऊर्जा मंत्री राजेन्द्र शुक्ल विधानसभा में बताया था किए जनवरी 2009 से जनवरी 2011 तक उपभोक्ताओं पर कुल 2 लाख 13605 बिजली चोरी के प्रकरण बनाए गए हैं। बिजली चोरी के कुल प्रकरण में 17429 गिरफ्तारी वारंट जारी किये गए। इस समयावधि में किसानों के खिलाफ बिजली चोरी के सर्वाधिक 1 लाख 2994 प्रकरण दर्ज किये गए, जबकि घरेलू उपभोक्ताओं के खिलाफ 61976, व्यावसायिक 9796 और उद्योगों के खिलाफ 38839 प्रकरण दर्ज हुए। यानी किसानों को चुन-चुनकर पकड़ा गया और उद्योगपतियों को नजरअंदाज ·किया गया।
इसके अलावा आम आदमी के लिए आशियाने की चिंता कर रही सरकार वास्तव में आम आदमी को जमीन से दूर करती जा रही है और उद्योगपतियों, बिल्डरों को खासा लाभ दे रही है। पिछले कुछ वर्षों में भोपाल में जमीन के सरकारी दाम लगातार बढ़ाए जा रहे हैं। यह नियमानुसार होते तब भी गलीमत थी, कलेक्टर गाईड लाइन में कई गुना तक दाम बढ़ा दिए जाते हैं। संदेह है कि उद्योगपतियों और बिल्डरों को लाभ पहुंचाने की यह सुनियोजित चाल है। सत्ताधारी दल के विधायक धु्रवनारायण सिंह शहर में भू-माफियाओं की बढ़ती गतिविधियों का मामला उठा चुके हैं। दरअसल शहर में निजी बिल्डर तेजी से निर्माण कार्य में लगे हुए हैं। शहर के आसपास की जमीन बड़े पैमाने में खरीदी जा रही है। बिल्डर जो जमीन खरीदता है, सरकर की मेहरबानी से अगले साल उस जमीन के दाम दो-तीन गुना हो जाते हैं। इसका सीधा लाभ बिल्डर को मिलता है और आम आदमी को कई गुना ज्यादा कीमत अपने आशियाने के लिए चुकानी पड़ती है। एक और बड़ा संदेह है, जिस पर आम आदमी का अभी तक ध्यान ही नहीं गया है। पिछले दिनों कैबिनेट की बैठक में एक फैसला किया गया था कि उद्योगपति आवंटित सरकारी जमीन को गिरवी रखकर कर्ज ले सकते हैं। यह बेहद खतरनाक फैसला है। अव्वल तो उद्योगपति जमीन गिरवी रखकर कर्ज ले लेगा, और बढ़ी हुई जमीन की कीमत पर उसे और अधिक कर्ज मिल जाएगा, लेकिन आवंटित जमीन को गिरवी लेकर कर्ज लेने से तो प्रदेश की वह पूरी भूमि ही बंधक हो जाएगी जो उद्योगपतियों को दी गई है। यदि उद्योगपति अपना व्यवसाय विकसित नहीं करता है और कर्ज नहीं चुका पाता है तो सरकार के पास प्रदेश में उस उद्योगपति का ऐसा क्या है जिससे वह उद्योगपति से कर्ज वसूल सके? वैसे भी यह जिम्मेदारी फिर बैंकों के कन्धों पर आ जाएगी। खुद को विकास पुरुष और प्रदेश को औद्योगिक क्षेत्र प्रचारित करने की गरज से सरकार जो फैसले ले रही है वह अंतत: प्रदेश के लिए दुखदायी ही साबित होंगे।
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