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रविवार, 28 अक्तूबर 2012

कोर्ट के आदेश से मध्यप्रदेश में चुनावी पेंच हुए ढीले


कहते हैं कि राजनीति में किसी भी चीज को तुच्छ नहीं समझा जाता। एक छोटा सा कारण राजनैतिक पार्टी को सत्ता भी दिला सकता है और सत्ता से बेदखल भी कर सकता है। कुछ ऐसी ही परिस्थितियां मध्यप्रदेश सरकार के सामने बन रही हैं।
हाल ही हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाया है। फैसले के तहत 40 एकड़ जमीन में बसे लोगों के अवैध आशियानों को हटाया जाएगा। 23 साल बाद आए इस फैसले से 3 हजार परिवारों में रह रही करीब 24 हजार की आबादी संकट में आ गई है। वैसे नोटिस में यह भी कहा गया है कि जो परिवार बोर्ड को किराएदारी देते हैं उन्हें बेघर नहीं किया जाएगा लेकिन बोर्ड के कागजात बताते हैं कि आरिफ नगर में रह रहे कुछ चुनिंदा लोगों की ही बोर्ड से किराएदारी है बाकी सब अवैध रूप से रह रहे हैं।
दरअसल मामला आरिफ नगर का है। गैस त्रासदी के बाद सन् 1988 में मुसलिम समुदाय के लोगों के लिए यह बस्ती बसाई गई थी। उस समय कांग्रेस के नेता आरिफ अकील ने उन पीडि़तों को बसाने के लिए 40 एकड़ की जमीन दी थी। जिसके बाद से उस बस्ती का नाम नेता आरिफ के नाम पर पड़ गया। आरिफ पिछले चार बार के कांग्रेस से विधायक और मंत्री भी रह चुके हैं।
मामले ने उस समय तूल पकड़ा जब वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि उक्त जमीन उसकी है। जिसके बाद बोर्ड ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट द्वारा हाल ही में 1995 की धारा 54 के तहत अतिक्रमण हटाने का नोटिस इसी मामले पर निर्णय स्वरूप दिया था।
वर्तमान में बोर्ड का अध्यक्ष गुफरान-ए-आजम है। ये भी कांग्रेस के ही नेता हैं, लेकिन भाजपा सरकार ने इन्हें सर्वसम्मति से बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया। हालांकि अध्यक्ष पद धारण करने के बाद से ही यह अटकलें लगाई जाने लगीं थीं कि शायद गुफरान पार्टी बदल लेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
वैसे तो आरिफ और गुफरान एक ही पार्टी के नेता हैं लेकिन दोनों विरोधी गुटों में शामिल हैं। कोर्ट के इस नोटिस ने दोनों के बीच आग में घी डालने जैसा काम किया है। आरिफ का हजारों का मुस्लिम वोट बैंक खतरे में आ गया है। हमेशा से आरिफ की जीत का सबब बनते आए ये मुस्लिम परिवार आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी नियति के आधार पर इनका भविष्य निर्धारित करेंगे। अगर इन लोगों को आरिफ नगर से हटा दिया जाता है तो आरिफ के लिए अगले साल सत्ता का सुख भोगना मुश्किल हो सकता है। बहरहाल आरिफ वर्तमान में मुम्बई में अपना इलाज करा रहे हैं।
उधर गुफरान के सामने ये समस्या आ खड़ी हुई है कि अगर वे इन लोगों को हटा देते हैं तो जो बचा कुचा मुस्लिम वोट इन्हें मिलता था वो भी आरिफ के नाम हो जाएगा और अगर नहीं हटाते हैं तो वो 3 हजार परिवार आरिफ के हैं ही। इतना ही नहीं इस मामले में प्रदेश शासित सरकार जो कि पिछले पांच सालों से इस मामले से बचने की कोशिश कर रही है। अंत में न चाहते हुए भी उसे टांग अड़ानी पड़ेगी। इस समय भाजपा सरकार विस चुनाव आने के चलते अपने हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही है। ऐसे में कोर्ट ने आदेश दिया है कि सरकार प्रशासन के साथ मिलकर अवैध अतिक्रमण हटाने में बोर्ड की मदद करे। सरकार उहापोह की स्थिति में है। अगर वह अतिक्रमण हटाने में साथ नहीं देती है तो कोर्ट के आदेश की अवमानना होगी और यदि साथ देती है तो वह 20 हजार लोगों से दुश्मनी मोल लेती है। अब देखना यह है कि कोर्ट के नोटिस से बने इस चक्रव्यूह की राजनीति में ये राजनेता कैसे उभरते हैं?

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