समाज में जो उजागर होता है उसे ही जनता सच मान लेती है और जो जैसे तैसे छिप गया वह खुद ब खुद इतिहास के पन्नों में कहीं खो जाता है। अब इसे अखिलेश सरकार का दुर्भाग्य कहिए या वाकई इन्हीं के कार्यकर्ताओं का गुण्डाराज जिनकी बदौलत अपराध का ग्राफ दिन ब दिन चढ़ता ही जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने कार्यकाल का सैंकड़ा पूरा कर लिया है। इतने ही दिन में प्रदेश की स्थिति यह है कि हत्या जैसे संगीन अपराधों की 1150 से ज्यादा घटनाएं प्रकाश में आ चुकी हैं। पिछले वर्ष से डेढ़ गुना ज्यादा अपराध मात्र 100 दिनों में ही हो चुका है। मायावती सरकार में अपराध काफी बढ़ा था लेकिन जिस रफ्तार से अपराध ने अखिलेश सरकार में अपने पैर पसारे हैं, स्थिति सोचनीय बनती ही जा रही है। हालांकि अब तक की उत्तर प्रदेश की दशा यह साबित कर चुकी है कि पालने में खेलने वाले शिशु को सत्ता सौंपना मूर्खता का परिचय देने के समान ही है। खिलौने की भांति वह समाज के साथ खिलवाड़ करता है और उन लोगों की तरफ ज्यादा आकर्षक होता है जो तमंचे-पिस्तौल से कारनामे दिखाया करते हैं। ठीक यही काम अनुभवहीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के कुख्यात बदमाशों के साथ गलबहियां करते फिर रहे हैं।
खैर अखिलेश सरकार ने अभी तक यह जानने की ज़हमत नहीं उठायी कि क्यों समाज में अपराध असामान्य से आम होता जा रहा है? ऐसा माना जाता है कि जब सरकार और अपराध एक मुंह खाना खाने लगें तो अपराध का आम होना कोई अजूबा नहीं रह जाता। सुशासन का चोला ओढ़ कर 13वीं विधान सभा चुनाव में सिर्फ अपराध और अपराधी को समाज में शह न देने की तर्ज पर अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल की बात को अनसुना कर बहुबली लल्लू सिंह को टिकट नहीं दिया था। जनता को रिझाने के लिए, यह विश्वास दिलाने के लिए कि सपा की गुण्डई सिर्फ गुण्डों के लिए होगी न कि जनता के लिए यह आवरण अखिलेश ने ओढ़ा था। दिखावे का चोला आखिर कब तक चढ़ा रहता। कभी न कभी तो उतरना ही था, सो उतर गया।
इस बात को बहुत से अवसरों पर उन्होंने साबित भी कर दिखाया। राष्ट्रपति पद के लिए यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के घर भोजन करने गए तो यह देखकर दंग रह गए कि बहुबली विधायक मुख्तार अंसारी जिन पर करीब 15 व विजय मिश्रा जिन पर लगभग 25 अपराधिक मामले चल रहे हैं, मुख्यमंत्री के निवास स्थान पर शेखी बखार रहे हैं जबकि कारावास की सजा काट रहे इन दोनों ही अपराधियों को जेल से बाहर सिर्फ विधानसभा में भाग लेने तक की ही इजाजत है। यही नहीं कई वर्षों से जेल की हवा काट रहे राजा भइय्या को जेलमंत्री बना डाला। इन्हीं कई नामों में एक नाम और है अमरमणी त्रिपाठी। मधुमिता हत्याकांड का एकमात्र सूत्रधार। 58 वर्षीय यह शख्स मधुमिता शुक्ला की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा काट रहा है। मधुमिता (22 वर्ष) एक नवोदित कवयित्री थी जिसकी मई 2003 को लखनऊ स्थित उसके घर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। मधुमिता के पेट में अमरमणि त्रिपाठी का बच्चा पल रहा था। अमरमणि त्रिपाठी के कहने के बावजूद जब मधुमिता ने बच्चे को गिराने से इनकार कर दिया तो उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गयी। उस वक्त त्रिपाठी बसपा सरकार में मंत्री थे। हत्याकांड पर बवाल मचने के बाद मायावती ने त्रिपाठी को पार्टी से रुखसत कर दिया था साथ ही इस मामले को सीबीआई के सुपुर्द भी कर दिया था। जांच में त्रिपाठी को दोषी पाया गया और उसे उम्रकैद की सजा सुना दी गयी लेकिन जब से अखिलेश यादव ने राज्य के नए मुख्यमंत्री के तौर पर सत्ता संभाली है तब से त्रिपाठी की पांचों उंगलियां घी में हैं। सपा के सत्ता में आने के बाद त्रिपाठी की सजा सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गयी है। ये अब समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता हैं। पिछले तीन महीने से हर दोपहर त्रिपाठी जेल से बाहर विचरण करने जा रहे हैं। पुलिस महकमा उन्हें इलाज के बहाने बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर ले जाता है। मेडिकल कॉलेज में त्रिपाठी को एक प्राइवेट लक्जरी रूम मिला हुआ है जहां वे अपने गुर्गों के साथ चटिया लगाते हैं। हर दिन लगने वाले इस दरबार में त्रिपाठी लोगों की शिकायतें दूर करते हैं, प्रॉपर्टी व जमीन के विवादों को सुलझाते हैं। शाम को दरबार खत्म होते ही उन्हें बाइज्जत वापस जेल पहुंचा दिया जाता है ताकि उम्र कैद के इस दिखावटी सिलसिले पर कोई उंगली न उठा सके।
ये किसी फिल्म की पटकथा नहीं बल्कि एक वास्तविकता है जिसमें अपराधियों को न केवल उस प्रदेश का प्रशासन बल्कि प्रदेश के मुख्यमंत्री भी सिर चढ़ाए बैठे हैं। इस सच्चाई का हमेशा से यही इतिहास रहा है। कुख्यात बदमाशों को पार्टी में दामाद की तरह पूजा जाता है। सरकार अपने वोट बैंक व धन उगाही के लिए अपने दल में बड़े बड़े अपराधिक छवि वाले मठाधीशों को अपनी छाती पर चढ़ाए ले रही है लेकिन प्रश्न ये उठता है कि इन अराजक तत्वों द्वारा समाज में अपराध के चढ़ते पारे को आखिर कौन रोकेगा? अखिलेश सरकार का अगर यही रवैया बना रहा तो जल्द ही उन्हें मुख की खानी पड़ सकती है वैसे भी पार्टी के अन्दर बैठे बहुत से वरिष्ठ उन्हें खाने को बेताब हैं।
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