१-लाल घेरे में दसवी का छात्र सिरपुरम यादेयाह
२-बांयी तरफ घेरे में कैमरामैन जिसने मौत के मंजर को दृश्य में कैद किया
(ये फोटो छात्र के आत्मदाह के पहले की है आप चाहे तो २१ फरवरी के उस दर्दनाक फोटो को किसी भी समाचारपत्र में देख सकते है | )
विवेक मिश्र
ज़रा रुकिए !
हम आपको दिखाते है की किस तरह
तेलंगाना राज्य को अलग करने के मुद्दे पर एक छात्र ने किया आत्मदाह |
और फिर खेल ,ड्रामा .इंटरटेनमेंट ,कला की सारी विधाए हो जाती हैं शुरू |
और जब खास ऐसी घटना घटी हो,
न्यूज़ रूम में हो या शाम को पेज सेट करने वाले कथित बुद्धिजीवी दिमाग हो , सब जगह एक अजीब सी हलचल शुरू हो जाती है ,
अपने कला के जौहर को दिखाते हुए ये दिखा देते है की ये
मानवता की जलती तस्वीर हो या दम तोड़ते ,छटपटाते हुए दृश्यों का खेल ये उसे बखूबी सजा सकते है , जिसे दर्शक और पाठक देखकर या तो आह! भरते है या और ध्यान से देखने लगते है और कार्यक्रम के बाद मिली टी आर पी और बढ़ी हुई सर्कुलेशन , न्यूज़ रूम और न्यूज़ पेपरों का मकसद पूरा कर देती है जो इनका वास्तविक लक्ष्य हो गया है
21 फरवरी 2010 को सभी प्रिंट मीडिया के फ्रंट पेज पर
उस्मानिया विश्वविद्यालय में स्कूल के छात्र ने खुद को आग लगाई
(जनसत्ता की हेडिंग )
यह हेडिंग जो मैंने ऊपर लिखा है उसी तरह की हेडिंग तमाम समाचार पत्रों में भी थी|
एक अबोध छात्र सिरपुरम यादेयाह ने हैदराबाद में तेलंगाना के समर्थन में खुद को आग लगा लिया और पुलिस खड़ी मुंह ताकती रही मीडिया वालो ने एक हाई स्कूल के एक छात्र को जलते हुए तस्वीरों और दृश्यों में कैद किया जिसको जनसत्ता जैसे समाचार पत्र में एक दर्दनाक फोटो के साथ जगह मिली जिसकी आधारशिला एक ऐसे {पत्रकार प्रभाष जोशी}ने रखी जो आज भी प्रेरणादायक है
सवाल यह है की प्रभाष जोशी जी होते तो क्या करते ?
यह एक इंटरव्यू का अंश जो प्रभाष जी ने मीडिया खबर में दिया था जो शायद यह स्पष्ट कर दे की प्रभाष जोशी जी होते तो क्या करते ?
पत्रकारिता पहले मिशन हुआ करती थी अब प्रोफेशन में बदल रही है इस पर आप क्या कहेंगे ?
प्रभाष जोशी जी -पत्रकारिता प्रोफेशन भी हो जाए तो कोई खराबी नहीं क्योंकि जिस जमाने में पत्रकारिता देश की आजादी के लिए काम करने में लगी थी उस समय चूंकि आजादी एक राष्ट्रीय मिशन था ,इसलिए उसका काम करने वाली पत्रकारिता भी राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक स्वंत्रता प्राप्त करने का मिशन बन गयी
अब उसमे कम से कम राजनैतिक स्वंत्रता प्राप्त कर ली गयी है
कुछ हद तक सामाजिक स्वतंत्रता भी प्राप्त कर ली गई है
लेकिन पूरी सामाजिक और आर्थिक आज़ादी नहीं मिल पायी है ,अब उसके लिए अगर आप ठीक से पूरी व्यवसयिकता के साथ काम करे तो पत्रकारिता का ही काम आप करेंगे ,लेकिन यह हुनर का काम सुचना का होगा ,लोकमत बनाने का होगा ,मनोरंजन का होगा
यदि मनोरंजन का होगा तो आप मीडिया का काम कर रहे है
"प्रोफेशनल जर्नलिजम पर जो सबसे बड़ा आरोप लगता है की इसमें मानवीय तत्वों का अभाव होता है जैसा की पिछले कुछ समय पहले एक नामी चैनल के पत्रकारों ने १५ august की पूर्व संध्या पर एक अदद न्यूज़ की चाह में एक व्यक्ति को न केवल जलकर आत्महत्या करने में सहायता की बल्कि उसे उकसाया भी ,
आदमी को जलाकर उसकी खबर बनाना कभी पत्रकारिता नहीं हो सकती, यह तो स्केंडल है ,यह माफिया का काम है |
ऐसा हो तो आप कुछ भी कर दे जाकर मर्डर कर दे और कहे यह हमने पत्रकारिता के लिए किया है क्योंकि मुझे मर्डर की कहानी लिखनी थी "
यदि एक पत्रकार ने यह न भी किया हो फिर भी किसी जलते हुए आदमी को कोवर कर रहा हो तो उसे क्या करना चाहिए ?
प्रभाष जोशी जी -पहले उस आदमी को बचाना चाहिए
यह तो उसके प्रोफेशन में अवरोध है ?
प्रभाष जोशी जी -नहीं, वह उसको बचाकर ,उसने क्यों मरने की कोशिश की ,इसकी वजह पता लगाकर उसकी खबर मजे में लिख सकता है |
शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010
सर्वेश्वर दयाल, गुलजार, और इब्नबतूता.........
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने अपनी कविता मै मोरक्को यात्री इब्नबतूता जो वर्णन किया है उसको कभी भी कवियों ने अपनी रचनाओं मै जगह नही दी थी और जब सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने इसको अपनी कविता मै जगह दी थी इतिहास बताता है की उसने सर्वाधिक देशों की यात्रा की थी उसने एशिया के भारत ,चीन , म्यांमार, नेपाल तथा और भी पडोसी देशों की और उसने अपनी पुस्तक मै वर्णन भी किया है लेकिन सर्वेश्वर जी को पता नहीं था की इब्नबतूता इतना चर्चित हो जायगा लेकिन हमारी बोलीबुड का तो चुराने का इतिहास रहा है और जब गुलजार ने कविता की दो पंक्तिया चुरा ली तो बे कहते है की हमने गुनाह क्या किया है उन्होंने इश्किया फिल्म मै जो गीत दिया है
"इब्नबतूता बगल मै जूता , पहनो तो करता है चुर्र चुर्र ................
उड़ गयी चिड़ियाँ फुर्रजबकि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता थी"
इब्नबतूता पहन कर जूता ,
निकल पड़े तूफ़ान मैथोड़ी हवा नक् मै भर गयी,
थोड़ी भर गयी कान मैकभी नाक को,
कभी कान को ,मलते इब्नबतूताइसी बीच मै निकल गया
उनके पैर का जूता उड़ते-उड़ते उनका जूता
जा पहुंचा जापान मै इब्नबतूता खड़े रह गए
मोची की दुकान मै
हमारे भारत देश मै जो शब्दों एवं कविता को चुराने का इक लम्बा इतिहास रहा है और गुलजार जी इसमे बहुत ही माहिर इंसान है इसलिए उन्होंने कविता की सिर्फ दो लेने ही चुराई है ताकि सर्वेश्वर दयाल को भी कुछ न देना पड़े और कापीराईटी अधिकार से भी बचा जा सके सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का भले ही इतिहास न रहा हो लेकिन इब्नबतूता का एक घुम्मकड़ यात्री के रूप मै इतिहास रहा है तथा हमारे गुलजार जी का भी उनसे बड़ा चुराने का (कविता ,पंक्तिया ,)इतिहास रहा है सो सर्वेश्वर दयाल जी इतिहास मै हर गये है
"इब्नबतूता बगल मै जूता , पहनो तो करता है चुर्र चुर्र ................
उड़ गयी चिड़ियाँ फुर्रजबकि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता थी"
इब्नबतूता पहन कर जूता ,
निकल पड़े तूफ़ान मैथोड़ी हवा नक् मै भर गयी,
थोड़ी भर गयी कान मैकभी नाक को,
कभी कान को ,मलते इब्नबतूताइसी बीच मै निकल गया
उनके पैर का जूता उड़ते-उड़ते उनका जूता
जा पहुंचा जापान मै इब्नबतूता खड़े रह गए
मोची की दुकान मै
हमारे भारत देश मै जो शब्दों एवं कविता को चुराने का इक लम्बा इतिहास रहा है और गुलजार जी इसमे बहुत ही माहिर इंसान है इसलिए उन्होंने कविता की सिर्फ दो लेने ही चुराई है ताकि सर्वेश्वर दयाल को भी कुछ न देना पड़े और कापीराईटी अधिकार से भी बचा जा सके सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का भले ही इतिहास न रहा हो लेकिन इब्नबतूता का एक घुम्मकड़ यात्री के रूप मै इतिहास रहा है तथा हमारे गुलजार जी का भी उनसे बड़ा चुराने का (कविता ,पंक्तिया ,)इतिहास रहा है सो सर्वेश्वर दयाल जी इतिहास मै हर गये है
गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010
आखिर रेलवे कर्मचारी कब होगे काम के प्रति सजग ..............
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तन्मय जैन
आखिर रेल कर्मचारी कब होंगे काम के प्रति सजग............ अभी कुछ दिन पहले ही मेरा मन भोपाल में नहीं लग रहा था.........सोचा था घर को चला जाये तो थोडा मन लग जायेगा ................लेकिन रास्तेमें एक अजब बाकया हुआ ...............उस बाकये में मेरी भी गलत थी लेकिन रेलवे प्रशासन की लापरबाहीभी सामने आई ..................हुआ यु की ट्रेन से सफर करते समय दोपहर में ज्यादा गर्मी लग रही थी सोचा की जेकेट को उतार दिया जाये लेकिन क्या पता था की में जेकेट उतार नहीं रहा बल्कि रेलवे प्रशासन को दान में दे रहा हु .................उतारते बक्त में जेकेट ट्रेन में ही भूल गया ...............और जब तक मुझे दयां आया ट्रेन जा चुकी थी...............मैंने टी टी से कहा की मेरी जेकेट ट्रेन में ही रह गयी है और जहा बह रखी है उसकी लोकेसन ये है ......................तो पहले तो उन्होंने टिकिट की मांग की दिखाने बेपारबह बोले की आपकी जेकेट मिलने के चांस न के बराबर ही है .............या तो अगले स्टेशन पर रेलवे कर्मचारी जाएगे ही नहीं अगर जायेगे भी तो जेकेट को स्वयं ही रख लेंगे ................यह सुनकर मुझे हंसी भी आई और दुःख भी हुआ ....दुःख इस बात का की जब तक हमारे कर्मचारी सुधरेंगे नहीं तब तक हम एक सम्पन्न देश की कल्पना नहीं कर सकते........और हंसी इस बात की की जब बह यह कह रहे थे कि जेकेट मिलना मुश्किल है उनके चेहरे पर मुश्कान थी अब आप इससे ही अंदाजा लगा सकते है कि बह पहले ही समझ चुके थे कि जेकेट मिलना मुश्किल है................ एक और जहा ममता जी रेलवे में बदलाब कि बात करती है .....बही दूसरी और इस तरह कि करामत हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि जब इस तरह का माहोल है तो bakayi me बदलाब हो पायेगा या सिर्फ बदलाब कि बाते ही होती रहेगी.............................
आखिर रेल कर्मचारी कब होंगे काम के प्रति सजग............ अभी कुछ दिन पहले ही मेरा मन भोपाल में नहीं लग रहा था.........सोचा था घर को चला जाये तो थोडा मन लग जायेगा ................लेकिन रास्तेमें एक अजब बाकया हुआ ...............उस बाकये में मेरी भी गलत थी लेकिन रेलवे प्रशासन की लापरबाहीभी सामने आई ..................हुआ यु की ट्रेन से सफर करते समय दोपहर में ज्यादा गर्मी लग रही थी सोचा की जेकेट को उतार दिया जाये लेकिन क्या पता था की में जेकेट उतार नहीं रहा बल्कि रेलवे प्रशासन को दान में दे रहा हु .................उतारते बक्त में जेकेट ट्रेन में ही भूल गया ...............और जब तक मुझे दयां आया ट्रेन जा चुकी थी...............मैंने टी टी से कहा की मेरी जेकेट ट्रेन में ही रह गयी है और जहा बह रखी है उसकी लोकेसन ये है ......................तो पहले तो उन्होंने टिकिट की मांग की दिखाने बेपारबह बोले की आपकी जेकेट मिलने के चांस न के बराबर ही है .............या तो अगले स्टेशन पर रेलवे कर्मचारी जाएगे ही नहीं अगर जायेगे भी तो जेकेट को स्वयं ही रख लेंगे ................यह सुनकर मुझे हंसी भी आई और दुःख भी हुआ ....दुःख इस बात का की जब तक हमारे कर्मचारी सुधरेंगे नहीं तब तक हम एक सम्पन्न देश की कल्पना नहीं कर सकते........और हंसी इस बात की की जब बह यह कह रहे थे कि जेकेट मिलना मुश्किल है उनके चेहरे पर मुश्कान थी अब आप इससे ही अंदाजा लगा सकते है कि बह पहले ही समझ चुके थे कि जेकेट मिलना मुश्किल है................ एक और जहा ममता जी रेलवे में बदलाब कि बात करती है .....बही दूसरी और इस तरह कि करामत हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि जब इस तरह का माहोल है तो bakayi me बदलाब हो पायेगा या सिर्फ बदलाब कि बाते ही होती रहेगी.............................
अहिंसक सत्याग्रहियों पर हमला ...
महादेव विद्रोही महामंत्री सर्व सेवा संघ
भावनगर 20 फरवरी 2010। गुजरात के भावनगर जिले के महुआ तहसील में हरे-भरे उपजाऊ कृषि जमीन पर प्रस्तावित निरमा सिमेंट फैक्टरी के खिलाफ गांधीवादी स्थानीय विधायक कनू भाई कलसारिया के अगुवाई में मौन जुलूस मार्च कर रही जनता पर निरमा कंपनी के दलालों और पुलिस द्वारा कातिलाना हमला किया गया जिसमें वे और उनकी पत्नी दोनों घायल हैं। हमले में सैकड़ों लोग घायल हुए हैं। और दर्जनों लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। निरमा सिमेंट फैक्टरी के खिलाफ चल रहे आंदोलन को प्रख्यात गांधीवादी चुन्नी भाई वैद का समर्थन प्राप्त है।
उधर आसाम की राजधानी गुवाहाटी में सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष डॉ. सुगन बरंठ की अध्यक्षता में सम्पन्न राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सर्वसम्मति से गुजरात पुलिस एवं निरमा कंपनी द्वारा किये गये इस जघन्य कृत्य का कड़े शब्दों में विरोध करते हुए इस आंदोलन के प्रति समर्थन व्यक्त किया गया। प्रस्ताव में सभी हमलावरों पर शीघ्रातिशीघ्र कानूनी कार्रवाई करने, सभी गिरफ्तार सत्याग्रहियों को रिहा करने एवं सीमेंट कंपनी को दी गयी मंजूरी को रद्द करने की मांग की गयी है।
ज्ञातव्य है कि भावनगर जिले के महुआ तहसील में गुजरात सरकार निरमा सीमेंट फैक्ट्री के लिए 15 गांवों की करीब 10 हजार एकड़ जमीन अधिग्रहित कर रही है। अधिग्रहण के कारण करीब 40 हजार लोगों की आजीविका छिन जायेगी एवं पर्यावरण पर गंभीर संकट उपस्थित होगा। कुछ ही वर्ष पहले इस क्षेत्र में गुजरात सरकार द्वारा 60 करोड़ रुपये खर्च कर चार छोटे बांध बनाये गये हैं, जिससे वर्षा-जल का संचय होता है और लोगों को पेयजल व कृषि के लिए पानी मिलता है। इस सीमेंट फैक्ट्री के बनने से यह सारा समाप्त हो जायेगा।
सर्व सेवा संघ मानता है कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने एवं अहिंसक विरोध करने का संवैधानिक अधिकार है। ऐसे में किसी के द्वारा भी इसपर किया गया हमला संविधान पर हमला है।
25 फरवरी 2010 को प्रभावित गांवों के ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह लोग साबरमती गांधी आश्रम, अहमदाबाद से गुजरात की राजधानी गांधीनगर तक मार्च करेंगे, जहां वे अपने रक्तों के हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन गुजरात सरकार को सौंपेंगे। सर्व सेवा संघ इस मार्च में शामिल होकर समर्थन करेगा।
साभार : इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) Nai Azadi naiazadi@gmail. से इस ब्लॉग पर छापने हेतु भेजा गया
http://hindi.indiawaterportal.org/ पर यह लेख उपलब्ध है |
भावनगर 20 फरवरी 2010। गुजरात के भावनगर जिले के महुआ तहसील में हरे-भरे उपजाऊ कृषि जमीन पर प्रस्तावित निरमा सिमेंट फैक्टरी के खिलाफ गांधीवादी स्थानीय विधायक कनू भाई कलसारिया के अगुवाई में मौन जुलूस मार्च कर रही जनता पर निरमा कंपनी के दलालों और पुलिस द्वारा कातिलाना हमला किया गया जिसमें वे और उनकी पत्नी दोनों घायल हैं। हमले में सैकड़ों लोग घायल हुए हैं। और दर्जनों लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। निरमा सिमेंट फैक्टरी के खिलाफ चल रहे आंदोलन को प्रख्यात गांधीवादी चुन्नी भाई वैद का समर्थन प्राप्त है।
उधर आसाम की राजधानी गुवाहाटी में सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष डॉ. सुगन बरंठ की अध्यक्षता में सम्पन्न राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सर्वसम्मति से गुजरात पुलिस एवं निरमा कंपनी द्वारा किये गये इस जघन्य कृत्य का कड़े शब्दों में विरोध करते हुए इस आंदोलन के प्रति समर्थन व्यक्त किया गया। प्रस्ताव में सभी हमलावरों पर शीघ्रातिशीघ्र कानूनी कार्रवाई करने, सभी गिरफ्तार सत्याग्रहियों को रिहा करने एवं सीमेंट कंपनी को दी गयी मंजूरी को रद्द करने की मांग की गयी है।
ज्ञातव्य है कि भावनगर जिले के महुआ तहसील में गुजरात सरकार निरमा सीमेंट फैक्ट्री के लिए 15 गांवों की करीब 10 हजार एकड़ जमीन अधिग्रहित कर रही है। अधिग्रहण के कारण करीब 40 हजार लोगों की आजीविका छिन जायेगी एवं पर्यावरण पर गंभीर संकट उपस्थित होगा। कुछ ही वर्ष पहले इस क्षेत्र में गुजरात सरकार द्वारा 60 करोड़ रुपये खर्च कर चार छोटे बांध बनाये गये हैं, जिससे वर्षा-जल का संचय होता है और लोगों को पेयजल व कृषि के लिए पानी मिलता है। इस सीमेंट फैक्ट्री के बनने से यह सारा समाप्त हो जायेगा।
सर्व सेवा संघ मानता है कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने एवं अहिंसक विरोध करने का संवैधानिक अधिकार है। ऐसे में किसी के द्वारा भी इसपर किया गया हमला संविधान पर हमला है।
25 फरवरी 2010 को प्रभावित गांवों के ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह लोग साबरमती गांधी आश्रम, अहमदाबाद से गुजरात की राजधानी गांधीनगर तक मार्च करेंगे, जहां वे अपने रक्तों के हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन गुजरात सरकार को सौंपेंगे। सर्व सेवा संघ इस मार्च में शामिल होकर समर्थन करेगा।
साभार : इंडिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) Nai Azadi naiazadi@gmail. से इस ब्लॉग पर छापने हेतु भेजा गया
http://hindi.indiawaterportal.org/ पर यह लेख उपलब्ध है |
बुधवार, 24 फ़रवरी 2010
सचिन तुस्सी ग्रेट हो.........................
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क्रिकेट का भगबान ,खुदा अगर हम इन शब्दों से उस चमत्कारिक व्यक्ति को नवाजे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी...........इतना सब कहकर उस व्यक्ति का नाम लेना गुस्ताखी होगी तो नाम न लेना नादानी...............जी हा ,हम बात कर रहे है .....सचिन रमेश तेंन्दुलकर .........................जब इस सख्सने पहली बार १९८९ में खेल के मैदान में कदम रखा तो शायद ही किसी ने सोचा होगा की एक दिन यह सख्स उस मुकाम परपहुचेगा जहा से उसे पूरी दुनिया देखेगी...................लेकिन सचिन ने न सिर्फ कदम दर कदम बढ़ाते हुए क्रिकेट के सर्बोच्चशिखर हो छुआ बल्कि बन्दे क्रिकेट इतिहास की अद्वितीय पारी खेलकर यह जाता दिया की उन्हें क्रिकेट का भगबान क्यों कहा जाता है .............अपनी २०० रन की शानदार पारी ने अफ्रीकियों को नतमस्तक होने को मजबूर कर दिया........अपनी इस पारी में में सचिने ने पच्चीस चुके और तीन छक्केलगाये ... वही १९९७ में बने सईद अनवर के तथा काउवेंट्री के १९४ रनों को ध्वस्त करते हुए एक बार फिर जता दिया की सचिने तुस्सी ग्रेट हो.........
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