कहलात बलशाली ना कोई,
भुजबल से...
कहलात ना कोई बुद्धिमान,
छल से...
दर्शन करो नारी का,
ना अश्लीलता से...
गुरुओं... शिक्षा को ना तौलो तुम,
चन्द सिक्कों से...
देश की जीवन रेखा हो तुम युवा,
ना भटको बहकावों से...
भरण-पोषण के लिए, हमारी खुशियों के लिए,
प्राण ले लिए सपनों के,अपने ही हाथ से...
है कद बड़ा कई गुना उन मात-पिता का,
इस सृष्टि के ईश से...
इस सृष्टि के ईश से...
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें