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शनिवार, 18 जून 2011

सीरीज जीता, दिल नहीं

 शकील जमशेद्पुरी 
www.gunjj.blogspot.com 

एक चैंपियन टीम कौन होती है? पूर्व आस्ट्रेलियाई कप्तान एलन बोर्डर ने एक बार कहा था कि चैंपियन टीम वह होती है जो जीत के  हालात न होने के  बाद भी जीत के  आसार पैदा कर दे। भारतीय टीम सीरीज भले ही जीत गई हो पर प्रभावित करने में नाकाम रही। पांच मैचों में अंतिम दो हार ने जीत की खुशी फीकी कर दी। कहां तो शुरूआती जीत से भारत की वाहवाही हो रही थी, पर आखरी दो मैचों में तो भारत मुकाबले में था ही नहीं। शुरूआती जीत को भी धमाकेदार नहीं कहा जा सकता। यह सच है कि भारत के प्रमुख खिलाड़ी इस श्रृंखला में नहीं थे, पर वेस्टइंडीज की टीम भी तो दोयम दर्जे की  थी। शुरू में तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा, पर सीरीज में 3-0 की बढ़त के बाद भारत की पुरानी आदत फिर से जगजाहिर हो गई। प्रयोग किये  जाने लगे। हरभजन और मुनाफ को  विश्राम क्या दिया गया, गेंदबाजी पूरी तरह से बेदम हो गई। इन प्रयोगों को आत्मघाती के सिवा कुछ नहीं कहा जा सकता।

कभी ऑस्ट्रलिया चैंपियन हुआ करती थी। और चैंपियन ही नहीं बल्कि उसे अजेय टीम का  दर्जा प्राप्त था। उनकी  कोशिश मैच दर मैच जीतने की  होती थी। वह विपक्षियों को  कोई  मौका  नहीं देते थे। लगातार जीत ने ही आष्ट्रेलिया को मारक क्षमता वाली टीम बना दिया था। चैंपियन का  खौफ सामने वाली टीम पर साफ दिखाई पड़ता था। पर पता नहीं क्यों भारत सीरीज जीत कर ही संतुष्ट हो गया? भारत के  हक में सिर्फ यही बात कही जा सकती है कि युवाओं ने दमदार प्रदर्शन किया। रोहित शर्मा और विराट कोहली जाने अनजाने ही भारतीय बल्लेबाजी क्रम की रीढ़ बनकर उभरे। वही अमित मिश्रा ने मौके का  फायदा उठाकर खुद को साबित किया तो हरभजन और मुनाफ का  अनुभव काम आया। कप्तानी में रैना की अपरिपक्वता साफ तौर पर दिखी। यूसुफ पठान ने हर दृष्टि से निराश किया। वहीं पार्थिव पटेल और शिखर धवन मिले मौके  को  भुनाने में नाकाम रहे।

 

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