बड़े दिनों के बाद अचनाक आई उनकी याद
प्रभाष जोशी एक पत्रकार, जिसने हिन्दी
पत्रकारिता को एक अयाम तक पहुंचाया
हिन्दी पत्रकारिता के युग पुरूष
प्रभाष जी का जन्म मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल
के नजदीक आश्ता में पंडारीनाथ जोशी और लीला बाई के यहां 15 जुलाई 1937 को हुआ. जोशी
जी को हिन्दी पत्रकारिता के स्तम्भ पुरूष के रूप में जाना गया. सरल स्वभाव और सजग
निष्पक्ष लेखनी उनका औजार बना. वो हमेशा पारदर्शिया की बात करते रहे. उनका मानना
था कि बिना पारदर्शी सोच और लेखन के कोई भी पत्रकार एक पग भी नहीं चल सकता है.
गांधीवादी सोच ने उन्हें हमेशा आगे बढ़ाने का काम किया. खाली के समयों में जोशी जी
अकसर वर्धा का रूख करते थे. आपात के समय उनकी ओर से बिहड़ में किए गए कार्यों और
डकैतों के समर्पण ने उन्हें और फिर ख्याति दी लाई.
परिवारिक परिचय
प्रभाष जोशी का ब्याह उषा जी के साथ हुआ था. वो
अपनी पत्नी उषा जी के साथ यूपी के ग़ाज़ियाबाद के जनसत्ता अपार्टमेंट में रहते थे.
उनके दो लड़के सोपान और संदीप और लड़की सोनल हैं. सोपान जोशी डाउन टू अर्थ मैग्जिन के मैनेजिग एडिटर हैं तो
बेटी सोनल जोशी एनडीटीवी में एग्जिक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं. जो वर्तमान में मुम्बई
में कार्यरत हैं. बड़े बेटे संदीप जोशी एयर इंडिया में है.
प्रभाष जी का पत्रकारिता में आगमन
प्रभाष जी ने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत नई
दुनिया से की और साल 1983 में इंडियन एक्सप्रेस समूह की ओर से हिन्दी अख़बार जनसत्ता
के शुरू होने पर एक एडिटर की हैसियत से जुड़े. कहा जाता है कि जोशी के अथक
प्रयासों का ही परिणाम है कि आज हिन्दी पत्रकारिता को वो सम्मान हाशिल हुआ, जिसे
लम्बे अरसे से नाकारा जाता रहा. जनसत्ता में रहते हुए जोशी जी ने उन सभी विषयों पर
लिखा जो कभी अख़बारों का एक कॉलम भी नहीं बन पाता था. खेल से लेकर सियासत और
सियासत से लेकर भूख,गरीबी और वो तमाम समस्याएं जो आजादी के बाद की पत्रकारता से
कुछ अलग सी हो गई थी. आपात के समय उन्होंने मुखर होकर जीपी के पक्ष में लिखा,
जिसका आम अवाम के बीच असर भी देखने को मिला. रामनाथ गोयनका जैसे शख्सियत का उनको
खूब साथ भी मिला और उन्हें उनकी बातें कहने के लिए अख़बार में जगह भी. पत्रकारिता
जगत में उनकी खेल के प्रति रूचि और लेखनी को लोगों ने हाथों हाथ लिया. इसके इतर
अच्छी राजनीतिक समझ और देश दुनिया की ख़बरों पर पैनी नज़र ने उन्हें सियासी
विशेषज्ञ बना दिया. अकसर लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान वो एक विशलेषक की
हैसियत से तमाम टीवी चैनलों पर बुलाए जाते रहे, और उनकी सियासी पकड़ और जमीनी सोच
ने हमेशा आम का सही आकलन किया और उनकी आवाज़ को नेताओं के कानों तक पहुंचाने का
काम किया. जनसत्ता के रविवारिय में उनके ‘कागद कारे’ कॉलम को लोगों ने खूब पसंद किया. लोग उनके
सम्पादकीय से तो प्रभावित होते ही थे, उससे ज्यादा सम्पादकीय के उस हिस्से से
प्रभावित होते थे,जिसे पत्रकारिता की भाषा में स्लग कहते हैं यानि स्टोरी हेडर. आखिर
के दिनों में उन्होंने लोकप्रिय हिन्दी मैग्जिन तहलका के लिए भी अगस्ता घाट नाम से
कॉलम लिखना शुरू किया था. जनसत्ता में रहते हुए उन्होंने अहमदाबाद,दिल्ली,चंडीगढ़
एडिशन के मुख्य के पद पर काम किया. 1995 में जोशी जी नौकरी से रिटायरमेंट हुए,
जिसके बाद उन्हें इंडियन एक्सप्रेस समूह ने चीफ एडिटोरियल एडवाइजर बनाया. इस दौरान
उन्होंने हिन्दुइज्म पर एक किताब भी लिखी. मालवा क्षेत्र यानि कुमार गंधर्व के इलाके
से होने के कारण उनके अंदर संगीत की भी बड़ी अच्छी समझ थी. स्थानीय गीतों से लेकर
शास्रीय संगीत तक में उनकी रूचि थी. लेकिन हिन्दी पत्रकारिता के युग पुरूष ने
हमारा साथ 5 नवंबर 2009 को छोड़ दिया. और उनके निधन के साथ ही स्वच्छ पत्रकारिता
की एक युग का अंत हो गया.
प्रकाश पाण्डेय
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