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मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

मुनुआ बोला पापा मंहगाई....

डाक-बँगला रोड- पटना , पर वर्ष २०११ में सजे दुर्गा पंडाल पर उमड़ी भीड़  
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जोर से बोलो जय माता दी. इस उदघोष के बाद मन्त्र-स्तुति सब समाप्त. लोगो का ध्यान शक्ति की भक्ति से टूट गया. मेले में लोग तितर-बितर भागने लगे. कभी मुनुआ, पापा से आगे निकलने की होड़ में रहता है, तो कभी अबोध मुनिया अपनी माँ के गोद में रंग-बिरंगे गुब्बारे को देखकर बस ललचा कर रह जाती है. पापा और मम्मी दोनों खुसफुसा रहे है, मै तो पहले ही कह रहा था, बहुत भीड़ होगी, मुनिया की माई गुस्से में, मुनिया को दाए कंधे से बाए कंधे पर लादते हुए- एक दिन तो मिलता है, कभी घुमाते है, नन्हे बच्चे है कम से कम यह घूम लिए, ई नहीं सोच रहे हैं. मुनुआ के पापा - सही कह रही हो बस घुमो, एक-एक रुपया खर्च करने में जान जा रही है. इतनी महगाई उफ़....इतने में उन्हें कुछ एहसास हुआ, जैसे उनकी पैंट कोई खीच रहा हो, नीचे नज़र दौड़ाई, ज़बरदस्त शोर के बीच नीचे से एक मासूम आवाज़ - एक रुपया दे दे... साहब! चल हट यहाँ से, हम खुद ही गरीब हैं, तुम्हे का देंगे, छोड़ता है पैंट की... एक रपट दूं इतना कहते ही गुस्से में जड़ दिया. मासूम आवाज़ धीमी हुई,  मंद पड़ी और गायब हो गयी. कुछ देर शांति रही. आगे बढ़ते हुए  मुनुआ की माई - मारने की क्या ज़रुरत थी.ऐसे नहीं किया जाता है. त्यौहार है. और आप.... हाँ तुम्हे तो जैसे दीन- दुनिया की पूरी समझ है. ई सब धंधा करता है. पैदा होते ही इन्हें छोड़ दिया जाता है, ट्रेंड है सब के सब. मारे तो कुछ हुआ, भाग गया दुम दबाकर. अब मुनिया रोने लगी. मुद्दा भी शोर में गुल हो गया. दम्पति ठहरी, ये जी! गुब्बारा कैसे दिए? जी पांच रुपया. दंपत्ति - सही पैसा लगाओ, एकदम सही पैसा है. पांच से कम न होगा. दंपत्ति - छोटी बच्ची है जी. कुछ कम कर लो. कितना गो लीजियेगा? अरे एगो लेंगे और कितना? पैसा कम न होगा बाबू जी. एकदम सही पैसा बता रहे हैं. मुनिया की माई. चलो जी नहीं लेंगे. मुनिया रोये जा रही है, कभी साड़ी संभालती तो कभी मुनिया.पिता पिघल गए, और फिर महंगाई की दुहाई.. पर्स से पांच का एक सिक्का, गुब्बारा हाथ में लिया मुनिया खुश  हुई, दंपत्ति आगे बढ़ गयी. पिता जी मुनुआ को निहारने लगे, कितना अच्छा है बेचारा कुछ नहीं मांगता, कुछ दूर चले की मुनुआ रुक गया. मम्मी चोवमिन..पिता बेटा यह सब मेले में नहीं खाया जाता. पेट खराब हो जाएगा. जिद के आगे माँ बाप की एक न चली. अब अकेले कैसे खाते सभी ने स्वास्थय की चिंता छोड़ चोवमिन का मज़ा लिया. हाथ धोते हुए मुनुआ के पिता दुकानदार से कितना हुआ? दुकानदार - तीन प्लेट ६० रुपया. दम्पति एक सुर में बोली - हाफ प्लेट है, दुकानदार- हाफ ही का बता रहे हैं. मुनुआ के पिता- साला इससे अच्छा घर पर ही बना लिए होते. दंपत्ति आगे बढ़ चली- हर तरह की तृप्ति फिलहाल हो चुकी थी. मुनुआ-  पापा हेलीकाप्टर....चुप चाप चल रहे हो की ........ मुनुआ चुप हो गया. मुनिया गुब्बारा पकडे- पकडे माँ के गोद में सो चुकी थी. भीड़ पीछे छूट चुकी थी . सब थक चुके थे. ये ऑटो वाले शेखपुरा चलोगे. हाँ कितनी सवारी, तीन लोग है. एक बच्ची है. कितना लोगे ४० रुपया लगेगा. इनकम टैक्स से  शेखपुरा का इतना पैसा, साहब मंहगाई है. देवी जी भी कुछ न कर रही है. चालिए, सभी मजबूरी में महंगाई को कोसते हुए बैठे , मुनुआ फिर बोला पापा मंहगाई.... चुप एकदम चुप चाप..न पढना, है न लिखना, स्कूल तो वैसे ही लूट रहा है, तीन दिन से मास्टर भी टूयुसन पढ़ाने नहीं आ रहे. पैसा ससुरा को पूरा चाहिए, मुनुआ की माई बोली - आप भी लड़का को हमेशा डांटते रहते है. पिता फिर गरज पड़े- अच्छा चुप रहती हो की नहीं, आमदनी अठन्नी है, साला खर्च रूपया . बहस चलती रही. मै बीच रास्ते उतर गया, वो चले गए, टैक्सी के पीछे लिखा था ओके- टाटा.        

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