जॉर्ज फ्लॉयड-अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक
दोष-बेरोजगार होने पर 20 डॉलर के नकली नोट से सिगरेट खरीदना
दुकानदार ने पुलिस बुलाई, फ्लॉयड भागे नहीं, मिनियापोलिस ने किया गिरफ्तार, पुलिस अफसर डेरेक चौवेन ने 8 मिनट 46 सेकेंड गले पर घुटने के बल बैठे रहे। इस दौरान वे सांस न ले पाने की और छोड़ने की बात करते रहे। इसका वीडियो बनाने वाले नागरिक भी छोड़ने का अनुरोध करते रहे। चिल्लाते रहे। बाद में उनकी मौत हो गयी। यह घटना आग की तरह फैल गयी। चार पुलिस अफसरों को बर्खास्त किया साथ ही डेरेक पर हत्या का मामला दर्ज हुआ।
अमेरिकी नागरिक इसको नस्लभेदी मानकर सड़कों पर उतरे, 40 शहरों में कर्फ्यू लगाना पड़ा। लोग न्याय और समानता के पोस्टर के साथ प्रदर्शन किया और जारी है।
वैसे तो नस्लभेदी की यह पहली घटना नहीं। अमेरिका में गोरे लोगों ने काले लोगों पर लंबे समय तक अत्याचार किया। उनको गुलाम या दास बनाकर रखा जाता रहा था। इसके शिकार मार्टिन लूथर किंग जूनियर भी हुये। आंदोलन भी हुए और समाज ने नस्लभेद को नकारा भी। यही बजह थी कि अमेरिका समानता के बल पर शक्तिशाली राष्ट्र बना। वैसे तो साल भर में 2-4 घटनाएं हुईं। लेकिन जॉर्ज फ्लॉयड हत्या और कोरोना महामारी का डर भी लोगों को नहीं डिगा पाये। बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरे और ये कह रहे कि अब ये भेदभाव खत्म हो, अब ये सहन नहीं करेंगे। इसमें सभी काले, गोरे बुद्धिजीवी, छात्र और हर वर्ग के नागरिक हैं। यही अमेरिकी समाज की खासियत और श्रेष्ठता है कि अन्याय के खिलाफ सभी एकजुट होकर विरोध करते हैं। कई जगह पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के सामने घुटनों के बल पर बैठकर माफ़ी मांगने का प्रयास किया। यह प्रायश्चित करने का बेहतर तरीका लगा मुझे। पुलिस हो या कोई भी संस्था किसी को भी ज्यादती करने का अधिकार नहीं होना चाहिये। ,,,,हमें अभी हजारों कदम चलना है।
दोष-बेरोजगार होने पर 20 डॉलर के नकली नोट से सिगरेट खरीदना
दुकानदार ने पुलिस बुलाई, फ्लॉयड भागे नहीं, मिनियापोलिस ने किया गिरफ्तार, पुलिस अफसर डेरेक चौवेन ने 8 मिनट 46 सेकेंड गले पर घुटने के बल बैठे रहे। इस दौरान वे सांस न ले पाने की और छोड़ने की बात करते रहे। इसका वीडियो बनाने वाले नागरिक भी छोड़ने का अनुरोध करते रहे। चिल्लाते रहे। बाद में उनकी मौत हो गयी। यह घटना आग की तरह फैल गयी। चार पुलिस अफसरों को बर्खास्त किया साथ ही डेरेक पर हत्या का मामला दर्ज हुआ।
अमेरिकी नागरिक इसको नस्लभेदी मानकर सड़कों पर उतरे, 40 शहरों में कर्फ्यू लगाना पड़ा। लोग न्याय और समानता के पोस्टर के साथ प्रदर्शन किया और जारी है।
वैसे तो नस्लभेदी की यह पहली घटना नहीं। अमेरिका में गोरे लोगों ने काले लोगों पर लंबे समय तक अत्याचार किया। उनको गुलाम या दास बनाकर रखा जाता रहा था। इसके शिकार मार्टिन लूथर किंग जूनियर भी हुये। आंदोलन भी हुए और समाज ने नस्लभेद को नकारा भी। यही बजह थी कि अमेरिका समानता के बल पर शक्तिशाली राष्ट्र बना। वैसे तो साल भर में 2-4 घटनाएं हुईं। लेकिन जॉर्ज फ्लॉयड हत्या और कोरोना महामारी का डर भी लोगों को नहीं डिगा पाये। बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरे और ये कह रहे कि अब ये भेदभाव खत्म हो, अब ये सहन नहीं करेंगे। इसमें सभी काले, गोरे बुद्धिजीवी, छात्र और हर वर्ग के नागरिक हैं। यही अमेरिकी समाज की खासियत और श्रेष्ठता है कि अन्याय के खिलाफ सभी एकजुट होकर विरोध करते हैं। कई जगह पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के सामने घुटनों के बल पर बैठकर माफ़ी मांगने का प्रयास किया। यह प्रायश्चित करने का बेहतर तरीका लगा मुझे। पुलिस हो या कोई भी संस्था किसी को भी ज्यादती करने का अधिकार नहीं होना चाहिये। ,,,,हमें अभी हजारों कदम चलना है।