क्यों कहा!......सिर्फ इसलिए क्योंकि मीडिया ने अन्ना के आन्दोलन को भरपूर कवरेज दिया.....नेताओं के खिलाफ जनता के गुस्से को प्रकट करने का मौका दिया.....भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे इस आन्दोलन को सफल करावाया.....लोगों को घर से बाहर निकालकर सड़क तक पहुंचाया....सांसदो के घरों तक लोगों को पहुंचाया....अन्ना की हर अपील को अंजाम तक पहुंचाया....शरद यादव ने मीडिया की ओर इशारा करके कहा कि "क्या समझ रहे हो आप, तुम्हारे ये जो बैठकर चर्चा करा रहे हो आप,,,,,,तो क्या आपकी चर्चा से देश चल रहा है......ये सदन से देश चल रहा है".....सवाल ये है कि घोटाला कहां से हो रहा है.....खुलेआम नोट कहां उछाला जा रहा है....अगर मीडिया दबाव न बनायी होती तो ए राजा, कनिमोझी और कलमाड़ी जैसे लोग आज तिहाड़ जेल न पहुंचे होते....खैर शरद यादव ने लगे हाथ लोकपाल में आरक्षण की मांग भी कर दी....गलतफहमी दूर कर दी कि वे एक अलग टाईप के नेता हैं......लोकसभा में पहुंचते ही 80000 रूपया सेलरी और लाखों का भत्ता तय हो जाता है....16 हजार से 80 हजार सेलरी तय कराने में समय नहीं लगा,,,,,,,लेकिन नरेगा के मजदूर की एक दिन की दिहाड़ी 100-सवा-100 से 500 होने में कितना वक्त लगेगा.....इसका जवाब शरद यादव जैसे लोग शायद नहीं दे पायेंगे......कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि शरद यादव और लालू जैसे नेताओं के रहते बिहार कभी आगे नहीं बढ़ सकता...हमेंशा विशेष राज्य का दर्जा और विशेष पैकेज की ही मांग रहेगी....शरद यादव जी को मालूम हो जाना चाहिए कि देश के कुछ डिब्बे बिकाऊ न होते तो देश आज कहीं और होता.....सरकारी विज्ञापन के लालच में कुछ डिब्बाधारी अपनी ड्यूटी भूल जाते हैं....लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ जिसका न जाने कितनो को मलाल है.....एक बात और इस डिब्बा.....मतलब मीडिया में जगह बनाना कितना मुश्किल है ..इस बात का अंदाजा झूठ बोलकर....दारू बांटकर....धांधली करके लोकसभा में पहुँचने वाले लोग क्या जानेंगे....
रविवार, 28 अगस्त 2011
टेलीविजन( इलेक्ट्रॉनिक मीडिया) डिब्बा - शरद यादव
क्यों कहा!......सिर्फ इसलिए क्योंकि मीडिया ने अन्ना के आन्दोलन को भरपूर कवरेज दिया.....नेताओं के खिलाफ जनता के गुस्से को प्रकट करने का मौका दिया.....भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे इस आन्दोलन को सफल करावाया.....लोगों को घर से बाहर निकालकर सड़क तक पहुंचाया....सांसदो के घरों तक लोगों को पहुंचाया....अन्ना की हर अपील को अंजाम तक पहुंचाया....शरद यादव ने मीडिया की ओर इशारा करके कहा कि "क्या समझ रहे हो आप, तुम्हारे ये जो बैठकर चर्चा करा रहे हो आप,,,,,,तो क्या आपकी चर्चा से देश चल रहा है......ये सदन से देश चल रहा है".....सवाल ये है कि घोटाला कहां से हो रहा है.....खुलेआम नोट कहां उछाला जा रहा है....अगर मीडिया दबाव न बनायी होती तो ए राजा, कनिमोझी और कलमाड़ी जैसे लोग आज तिहाड़ जेल न पहुंचे होते....खैर शरद यादव ने लगे हाथ लोकपाल में आरक्षण की मांग भी कर दी....गलतफहमी दूर कर दी कि वे एक अलग टाईप के नेता हैं......लोकसभा में पहुंचते ही 80000 रूपया सेलरी और लाखों का भत्ता तय हो जाता है....16 हजार से 80 हजार सेलरी तय कराने में समय नहीं लगा,,,,,,,लेकिन नरेगा के मजदूर की एक दिन की दिहाड़ी 100-सवा-100 से 500 होने में कितना वक्त लगेगा.....इसका जवाब शरद यादव जैसे लोग शायद नहीं दे पायेंगे......कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि शरद यादव और लालू जैसे नेताओं के रहते बिहार कभी आगे नहीं बढ़ सकता...हमेंशा विशेष राज्य का दर्जा और विशेष पैकेज की ही मांग रहेगी....शरद यादव जी को मालूम हो जाना चाहिए कि देश के कुछ डिब्बे बिकाऊ न होते तो देश आज कहीं और होता.....सरकारी विज्ञापन के लालच में कुछ डिब्बाधारी अपनी ड्यूटी भूल जाते हैं....लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ जिसका न जाने कितनो को मलाल है.....एक बात और इस डिब्बा.....मतलब मीडिया में जगह बनाना कितना मुश्किल है ..इस बात का अंदाजा झूठ बोलकर....दारू बांटकर....धांधली करके लोकसभा में पहुँचने वाले लोग क्या जानेंगे....
शनिवार, 27 अगस्त 2011
अन्ना ने लालू को दिया करारा जवाब..... कहा १०-१२ बच्चे पैदा करने वाले क्या जाने ब्रम्हचर्य का महत्व और अनशन की ताकत!
लालू जी ने अन्ना के लम्बे अनशन का राज जानना चाहा था ......रिसर्च करने की बात कह रहे थे.......एक तरह से लालू अन्ना का मजाक ही उड़ा रहे थे....अन्ना ने जवाब दे दिया .....देश कि एक बड़ी समस्या बढती हुई जनसँख्या है......जिसमे लालू जैसों का अमूल्य योगदान है.....अन्ना ने बता दिया ....खैर लालू जी को इससे कोई फर्क नही पड़ने वाला.....इतना ही नही अन्ना के मंच पर पहुंचकर आमिर खान ने इमाम बुखारी का बुखार छुड़ा दिया.... ओम पूरी ने भी जान पर खेल कर जनता को सच्चाई से अवगत कराया.....जिसका खामियाजा उन्हें नेताओं से भुगतना पड़ सकता है.........कुल मिलाकर अन्ना अभी जीवित हैं........मतलब कि आगे भी अपना पराक्रम दिखाते रहेंगे......."राइट टू रिजेक्ट" और "राइट टू रिकाल" की बात भी अन्ना ने की है......कुल मिलाकर ये ही कहा जा सकता है कि धरती अभी भी वीरों से खाली नही है......१९४८ में गाँधी जी इस दुनिया को छोडकर चले गए थे.......लेकिन जाने से पहले सत्य और अहिंसा का जो हथियार दे गए हैं......उसकी धार कभी कमजोर नही होगी.....एक अन्ना ने हजारों अन्ना पैदा कर दिया.....आगे भी जरुरत पड़ने शिवाजी कि भाषा बोलने वाले गाँधी जी हमें मिलते रहेंगे........क्या पता मुझमें और आपमें ही अगले गाँधी जी प्रकट हो जाएँ......क्योंकि अन्ना ने कहा है कि करवाने वाले तो भगवान होते हैं .....अन्ना जैसे लोग तो निमित्त मात्र हैं॥
गुरुवार, 25 अगस्त 2011
लोकसभा में प्रधानमंत्री के बयां से प्रेरित ...
बुधवार, 24 अगस्त 2011
अन्ना जी, मैंने सुना है लातों के भुत बातों से नहीं मानते और कुत्तो का पूंछ कभी सीधा नही होता....
अन्ना हजारे १६ अगस्त से तिहाड़ जेल से ही अनशन शुरू कर चुके हैं....आज ९ दिन हो गया क्या पता कल १० वें दिन भी जारी रहे...आगे ११-१२-१३...वें दिन भी जरी रहे....अन्ना जी पुराने चावल हैं....जिनकी खुशबु से देश की जनता जाग रही है.... वे कितने दिन अनशन पर बैठ सकते हैं......ये तो भगवान ही जानता है ....लेकिन इस अनशन से भी हमारे देश की राजनितिक पार्टियों पर कोई खास असर पड़ता नहीं दिख रहा है... अन्ना की अपील पर जब जनता सांसदों के घरों के सामने धरना देने पहुंची तो कुछ नेताओं का दिमाग खुला...कांग्रेस के सांसद संजय निरुपम ने तो जनता के सामने गांधी टोपी पहनकर जनलोकपाल का समर्थन करने की बात कही...बीजेपी के शत्रुहन सिंहा ने कहा कि मै तो पहले से जन लोकपाल के समर्थन में हूं....प्रिया दत्ता भी अपनी पार्टी लाईन से हटकर बात की...वरुण गांधी तो रामलीला मैदान में पहुंचकर अपना समर्थन अन्ना को जाहिर कर आए.........लेकिन भाजपा ने जाने क्यों अपना रुख स्पष्ट नहीं किया....यहां तक कि यशवंत सिंहा ने इस्तीफे तक की पेशकर कर दी कि भाजपा अपना ऱुख स्पष्ट करे...कांग्रेस का तो कहना ही क्या जब उसके नेता संजय निरूपम ने भरी संसद में कह दिया कि यहां सभी चोर बैठे हैं....किसी की कमीज थोड़ी सफेद जरूर हो सकती है लेकिन चोर सभी हैं.....अब मूल बात पर आईये कि भला लातों के भूत( भ्रष्टाचारी नेता) कभी बातोँ से मानते हैं क्या....लेकिन अन्ना जी हैं कि जिद पे अड़ गये हैं....खैर मेरा ही नहीं भारत के लाखों- करोड़ों लोगों का समर्थन अन्ना जी को हासिल है....इसीलिए वे इतने कांफिडेंस के साथ अनशन पर बैठे हैं.....लेकिन अन्ना जी को मैं कैसे समझाऊं की कुत्तों की पूंछ कभी सीधी नहीं होती....ये भ्रष्टाचारी नेता कुत्तों के पूंछ जैसे ही हैं.....इन पूंछो को काटना ही पड़ेगा.....और जनता हर कुत्ते को पहचानती है....एक बार इशारा कर दो तो कुत्तो के पूंछ गायब हो जायेंगे....अहिंसा, लोकतंत्र, भाईचारा यही तो वे आदर्श हैं जिनसे हम बंधे हैं और ये नेता लोग इसी का नाम लेकर हमें छलते रहे हैं.....हमारे पास 500 रुपये नहीं है कि हम रेलवे या बैंक का फार्म भर सकें और ये 80000 रूपया महीना घोंटने के बावजूद घोटाला करते हैं.... मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि ये सरकार और अधिकांशत: चोरों से भरी ये संसद अन्ना के साथ न्याय कर पायेगी....(मैं संसद का अपमान नहीं कर रहा हूं लेकिन जो चोर संसद में घुस गये हैं उनको मै गरियाने में पीछे भी हटने वाला नहीं हूं)...सुना है संसद के स्थायी समिती में लालू प्रसाद यादव और अमर सिंह जैसे महाराजाधिराज लोग विराजमान हैं...फिर तो कैसा लोकपाल बनेगा ये बताने की जरूरत भी नहीं है.....अन्ना जी आप ठीक ही कहते हो कि देश के जागिर को चोरों से नहीं पहरेदारों से डर हैं और देश को दुश्मनों से नही इन गद्दारों से डर है....आपका इशारा हम खुब समझ रहे हैं.....और इन नेताओं से हमें कोई उम्मीद भी नहीं है फिर भी आप जो तपस्या कर रहे हो....तो इन गद्दारों को वोट खिसकने का डर लग रहा है...इसलिए अन्ना जी बारगेनिंग कर लो.....पूरा देश आपके साथ है...हमें बांटने के लिए इमाम बुखारी आगे आया था....लेकिन इस बार हम नहीं बंटेंगे...और हमें बांटने के लिए आगे आने वाले हर बुखारी का बुखार छुड़ा देंगे....अन्ना आप अनशन मत तोड़ना....आप जैसे लोग मरते नहीं हैं....मरते तो मनमोहन सिंह जैसे मूकदर्शक, मनीष तिवारी जैसे झूठे, कपिल सिब्बल जैसे चालाक लोग, राहुल गांधी जैसे- तमाशाबीन और अपना रूख स्पष्ट न करने वाले विपक्षी दल हैं...क्योंकि इन्हें मरने की जरूरत भी नहीं पड़ती.....ये तो जितेजी मरने के बराबर हैं....जनता इनकी इज्जत नहीं करती है....
मंगलवार, 23 अगस्त 2011
जिद पर मत अड़ो सरकार............
रविवार, 21 अगस्त 2011
शुक्रवार, 19 अगस्त 2011
तहरीर चौक न बन जाये कही इंडिया ........
तहरीर चौक का नाम सुनते ही हमारे ही मन में एकदम मिस्र की क्रांति की याद ताज़ा होने लगती है.. मिस्र में जो भी हुआ वह भी काफी हद तक अपने आप में सही था क्योंकि मिस्र की जनता हुस्नी मुबारक की तानाशाही से उब चुकी थी...देश का एक ऐसा वर्ग हुस्नी मुबारक कों कड़ा जवाब देने के लिए एकदम तैयार था.... जब उनकी तानाशाही अपने उच्च शिखर पर पहुची ..तो काहिरा वो तहरीर चौक देशवासियों के लिए कही न कही उम्मीद की नई किरणों के साथ देहलीज की चोखट पर खड़ा था...... देश की जनता कों ज़रूरत थी एक आजद मिस्र की जो हुस्नी मुबारक के हाथो की कठपुतली बन चुका था .......देश जब लोकतंत्र की मांग कर पर अडिग था, तो उधर हुस्नी कों अपनी तानाशाही का गरूर हो रहा था ....इन सब के बीच मिस्र कों अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी समर्थन मिल रहा था ...कुछ इस्लामी देश इसका विरोध भी कर रहे थे ...माना ये भी जा रहा था कि कही मिस्र कों अमेरिका तो समर्थन नहीं कर रहा, मिस्र की सबसे बड़ी"कट्टर मुस्लिम बद्रहुद पार्टी" अमेरिका का विरोध कर रही थी .....
मिस्र की जनता जब तानाशाही सरकार के खिलाफ सडको पर उतरी... तो हिंसात्मक आन्दोलन के चलते बहुत से लोगो कों शहीद होना पड़ा ......अंत में मिस्र में लोकतान्त्रिक राज आया और तानाशाही सरकार कों झुकना पड़ा .......... सही मायने में देश कों बदलाव चाहिए था जिसको उस लम्बे समय से इंतज़ार था मिस्र की इसी क्रांति के साथ काहिरा का वो तहरीर चौक देश के इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गया .........मिस्र की जनता जब सडको पर अपनी मांगो कों लेकर आई, तो हुस्नी कों लगने लगा था कि जनता कों संभाल पाना मुश्किल है ...क्योकि जनता तानाशाही कों खत्म करके देश में लोकतंत्र चाहती थी .....जहा सभी लोगो कों अपना हक़ मिल सके और अपनी बातो कों सही से सबके सामने रख सके..... ताकि उनकी बातो कों दबाया या फिर कुचला न जा सके.......कही न कही एक सही लोकतंत्र की यही पहचान होती है ..... वहा की जनता सही मायने में यही चाहती थी... आज भारत मै इस समय जो हालात बने हुए है वो मिस्र कि परिस्थिति से एकदम उल्टा है....भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में सिर्फ उन नेताओ कि तानाशाही है .....या फिर यू कहे उन भ्रष्ट मंत्रियो, अधिकारियो की जो सरकार के नाम पर गलत ढंग से उगाही करते है .......सरकार जो भी काम करना चाहती है उनके मंत्री या फिर उनके दलाल उस काम कों सही से होने ही नहीं देते...... उन्हें सिर्फ अपनी जेब भरने से काम है .... मतलब साफ है कि " अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता " ... आज देश की कमर भ्रष्टाचार ने पूरी तरह से तोड़ दी है देश का कोई भी ऐसा कोना नहीं बचा है जहा भ्रष्टाचार न फेला हो........... जनता इन भ्रष्ट नेताओ से पूरी तरह से त्रस्त आ चुकी है ... इनके सभी वायदे खोखले साबित दिखाई पड़ते है ..जनता का विश्वास इनसे उठ चुका है ... ये समझकर इनको सांसद में भेजते है, ताकि हम लोगो का प्रतिनिधित्व करेगे लेकिन होता है एकदम उल्टा ......जब यही मंत्री जनता कि उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाते तो जनता कों मज़बूरी में सडको पर उतरना पड़ता है ..... अगर जनता इनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन या फिर जन आन्दोलन करे है तो उसमे क्या गलत करती है ?........
सिंघो कों संतान नहीं भरतवंश के इस पानी है, तुमको कों पहचान नहीं " " अबकी जंग छिड़ी तो सुन लो नाम निशान नहीं होगा, सरकारे तो होगी, पर भ्रष्टाचार नहीं होगा "
आज देश कों ज़रूरत है भ्रष्टाचारी सरकार कों जड़ से उखाड़ फेकने की देश में आज भ्रष्टाचार विधेयक यानी जन लोकपाल विधेयक कों लेकर सरकार और आमजन के बीच तलवारे खीची हुई है .... देश के कुछ चुनिन्दा लोग आगे आकर इसकी पेरवी कर रहे है जैसे अन्ना हजारे की टीम .......अन्ना की यही टीम सरकार कों एक बार पहले भी झुका चुकी है ......लेकिन इस बार के आन्दोलन से लगता है....कि अन्ना की अगस्त क्रांति एक फिर से देशवासियों कों मिस्र कि क्रांति कि याद दिला दे रही है ... दिल्ली की तिहाड़ जेल से लेकर इंडिया गेट या फिर जहा तक भी नज़र जाये वही तक अन्ना के ही समर्थको का ही सेलाब दिखाई दे रहा है और नारा लगा रहे है ...मै भी अन्ना तू भी अन्ना, अन्ना तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ है, अन्ना से जो टकराएगा, वो चूर-चूर हो जायेगा .... इस तरह के नारे दिल्ली की सडको पर चारो और सुनाई दे रहे है ....जिससे ये साफ दिखता है कि भ्रष्टाचार कों देश से खत्म करना है ........... इस भ्रष्टाचार के मायने और भी हो सकते है... जिस भ्रष्टाचार कों हम अन्ना के जनलोकपाल बिल के माध्यम से ख़त्म कराने के लिए इतना सब कुछ कर रहे है.... क्या ये जनलोकपाल बिल के मध्यम से खत्म हो जायेगा .. ये सबसे बड़ा सवाल लोगो के बीच बना हुआ है .....अन्ना हजारे जनलोकपाल के माध्यम से प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट के जजों कों इसके दायरे में लाना चाहते है ....जो सरकारी लोकपाल बिल से एकदम अलग है..... सरकार के लिए ये विधेयक पास न करना गले कि हड्डी बना हुआ है ..........
केंद्र सरकार कि यही तानाशाही अन्ना कि टीम कों रास नहीं आ रही है...... जिसके समर्थन में आज सेकड़ो की तादात में ये लोग अन्ना कों समर्थन करने के लिए उतर पड़े है ......अन्ना ने सरकार कों पहले ही चेता दिया था कि वो 16 अगस्त से अनशन करने वाले है ... जिसको लेकर सरकार की चिंताए लगातार बढती चली जा रही थी ....... जब अन्ना अपना अनशन करने के लिए जैसे ही जेपी पार्क के लिए निकले तो उनको दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार भी किया ........ पुलिस कारण तो नहीं बता पाई की उनको क्यों गिरफ्तार किया ....सीधे उन्हें तिहाड़ जेल में बंद कर दिया......तभी अन्ना के समर्थको का हुजूम सडको पर उतरकर भ्रष्टाचार में लिप्त सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के खिलाफ नारे लगाने लगा .......... जिससे केंद्र सरकार का सिंघासन डोलने लगा ........अन्ना की यह अगस्त क्रांति मिस्र की क्रांति से कही न कही मिलती जुलती है ........... दिल्ली की सडको पर सेकड़ो लोग सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते दिखाई पड़ रहे है ....... अन्ना की इस आंधी के सामने केंद्र सरकार झुकती नज़र आ रही है .... ठीक हुस्नी मुबारक की तरह ........... देशवासियों कों पूरा विश्वास है हमें कामयाबी ज़रूर मिलेगी ......
" स्याल भेडियो से दर सकती
और याद रखना
बुधवार, 17 अगस्त 2011
दीपक चौरसियाजी ! पैसा- बाहुबल से वोट अरेंज किया जाता है सरकार बनती है तो वह लोकतंत्र है, जब लोग अन्ना के साथ है तो वह भीड़तंत्र कैसे हो जाता है?
आरक्षण फिल्म में अमिताभ साहब ने सही कहा है इस देश में दो भारत रहते हैं.......कहा जा सकता है एक अन्ना जैसो के साथ हैं और दुसरे भ्रस्ताचारियों के साथ ..दीपक चौरसिया स्टार न्यूज से करोड़ो नही तो लाखों रूपये महीना तो पाते ही होंगे......अतीत में वे क्या रहे! वे जाने......लेकिन आज अगर उन्हें भ्रस्टाचार का सामना नही करना पड़ता है तो......इसका मतलब ये नही हो गया कि.....वे आम जनता के सहारे चल रहे अन्ना के आन्दोलन को कमजोर करने वाली बात करें......उनके भीड़ तन्त्र की बात से और कुछ हो न हो.....कपिल सिब्बल जैसो को तो बल मिलेगा ही........खैर मै दीपक चौरसिया और उन जैसे पत्रकारों से आग्रह करूंगा कि अगर टीम अन्ना ने सरकारी लोकपाल और जन लोकपाल के बीच का अंतर जनता को नही समझाया या समझाने में असमर्थ रहे तो भी वे भीड़ तंत्र के सहारे नही हैं..... मीडिया भी जनता को जागरूक करने का काम करे.......लेकिन सरकार के पक्ष में झुकाव मत दिखाए.....
मंगलवार, 16 अगस्त 2011
प्रगति पर राजनीति और परम्पराओं का प्रहार
" बीती ताहि बिशार दे अब आगे की सुधी ले " कुछ इसी अंदाज़ में दारुल उलूं के नवनियुक्त कुलपति गुलाम मोहम्मद वस्तानवी ने मुसलमानों को गुजरात के २००२ के दंगो को भूल कर आगे बढ़ने की बात कही थी जिसका खमियाजा उन्हें इस्तीफा दे कर चुकाना पड़ा.
दरअसल १० जनवरी २०११ को वस्तानवी को दारुल उल्लूम जो दुनिया के सबसे प्रभावशाली मदरसों में से एक है का कुलपति नियुक्त किया गया. इस मौके पर वस्तानवी ने ' द times औफ़ इंडिया ' को दिए एक साक्षात्कार में कहा की मुसलमानों को २००२ के दंगो को भूल कर आगे देखना चहिये.राज्य में मुसलमान तरक्की पर हैं, राज्य सरकार उनसे किसी भी तरह से भेदभाव नही कर रही हैं. वस्तानवी का ये प्रगतिशील बयां जंगल में आग की तरह फैला और मुसलमानों ने कड़ी pratikriya करनी शुरू कर दी. किसी ने वस्तानवी को आर.एस.एस. का मोहरा कहा तो किसी ने मोदी के गुणगान का आरोप लगाया. कइयों ने तो फत्बे जारी किये. हालाँकि अपनी सफाई में वस्तानवी ने सभी आरोपों का खंडन किया और उन्होंने कहां की मेरा साक्षात्कार गुजराती में था और इंग्लिश मीडिया ने मेरे बयां को तोड़-madod कर पेश किया है.मोदी को किसी भी तरह से मैंने क्लीन चिट नही दिया हैं. दारुल उलूम को परम्पराओं से आलग ले जाने के आरोप पर उन्होंने साफ कहा की मैं ऍम.बी.ए. के पहले दारुल उलूम का छात्र भी रहा हूँ. मैं दारुल उलूम और उसके उसूलो को अच्छे से जानता हु. मुझ पर लगाये गए सभी इलज़ाम बेबुनियाद हैं.
इन तमाम स्पश्तिकर्नो के बाबजूद उनका विरोध जमकर होता रहा. वस्तानवी के इस्तीफे और दारुल उलूम में फेरबदल की मांग को ले कर छात्रों का एक धरा हड़ताल पर चला गया. मामले को निपटाने के लिए मज्लिश-ए शूरा ने तीन सदस्यीय कमिटी का गठन किया जिसमें मालेगाव के मुफ्ती इस्माइल और चेन्नई के मोहम्मद इब्राहीम दोनों वस्तानावी के समर्थक थे और तीसरे सदस्य कानपूर के मुफ्ती मंजूर अहमद मज़ाहरी शुरू से ही वस्तानवी के खिलाफ थे. हालाँकि कमेटी ने २४ जुलाई २०११ को अपनी रिपोर्ट पेश की लेकिन कमेटी वस्तानवी को कसूरवार साबित करने में नाकामयाब रही. इसके बाद भी वस्तानवी पर इस्तीफे के लिए दबाव डाला जाता रहां जिसपर वस्तानवी ने साफ़ शब्दों में कहां की जब कमेटी अपनी रिपोर्ट में मुझ पर आरोप साबित नही कर पाई तो मैं क्यूँ इस्तीफा दू. गौरतलब वस्तानवी को हटाने के लिए दारुल उलूम ने हद ही पर कर दिया.एक तरफ कमेटी आरोप साबित नही कर पाई तो दूसरी तरफ शूरा ने बहुमत के आधार पर पद से बर्खास्त कर मौलना अबुल कासिम नोमानी को कुलपति के पद पर नियुक्त कर दिया.
असल में वस्तानवी की नियुक्ति के समय ही दारुल उलूम का एक धरा वस्तानवी से सहमत नही था, और ये असहमत धरा कुलपति के पद पर अपना व्यक्ति चाहत था. इस असहमत धरे को डर था की वस्तानवी जो की पशिच्म भारत में आधुनिक और पारम्परिक इस्लामिक शिक्षण की कई संस्थाए चलाते हैं, कही अपने सुधर और प्रगतिशील विचारधारा से सभी को अपने तरफ न करले. इस तरह असहमत धारे का ये डर प्रगतिशील विचारधारा के वस्तानवी को ले डूबा.१४५ साल का इतिहास रहां हैं दारुल उलूम का और देश की आज़ादी में इस धरे ने अहम् भूमिका अदा किया हैं. कांग्रेस के साथ भी इसके गहरे सम्बन्ध रहे है और इधर आते ही वस्तानवी ने गुजरात के मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी समर्थक बयां दे दिया हो की उनके लिए खतरनाक साबित हुआ. जिसका अंजाम ही था की वस्तानवी को कुलपति के पद से हटना पड़ा.
सियासत चाहे जो हो लेकिन गौर करने वाली बात ये हैं की मुस्लिम समाज में आज भी प्रगतिशील विचारधारा रखनेवाले मुसलमानों के लिए कोई जगह नही हैं तो सुधार की गुंजाईश कैसे संभव हैं ?
रविवार, 14 अगस्त 2011
भ्रष्टाचारियों के चिताओं पर शुशु करेंगे हर वर्ष कुत्ते.....गरीबों का पैसा डकारने वालों को हासिल यही मुकाम होगा...
देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल बन गया है... अन्ना हजारे तो सिर्फ एक बहाना मात्र हैं....दरअसल विगत कुछ वर्षों में भ्रष्टाचार ने इतनी ऊंचाईयां छू ली हैं....कि हर किसी का ध्यान इस ओर चला ही जाता है....हमने अखबारों में यहां तक पढ़ लिया कि 2-जी स्पेक्ट्रम के केस में एक न्यायधीश के मुंह से निकला कि बाप रे बाप ये कितना बड़ा घोटाला है.....जितने रूपये का ये घोटाला हुआ है उतना जीरो तो मैने कभी नहीं देखा....खैर ये भ्रष्टाचार एक सच्चाई है.....प्रेमचंद ने नमक का दरोगा कहानी में इसी भ्रष्टाचार को उजागर किया था....उस कहानी के अंत में भ्रष्टाचारी पं अपोलीदीन उस ईमानदार दरोगा वंशीधर के घर पर जाता है.....भले ही उसने वंशीधर को नौकरी से निकलवाया था.....लेकिन वह वंशीधर की कर्तव्य परायणता से प्रभावित हुए बिना नही रह पाता.....वह वंशीधर को प्रणाम करते हुए उसे अपने सम्पत्ति का मैनेजर नियुक्त कर देता है...... लेकिन आज स्थिति ही पलट गई है......आज का सिस्टम तो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले में ही खामी ढूंढना शुऱू कर देता है.....चाहें वह बाबा रामदेव का मामला हो या अब अन्ना हजारे का....जब तक इन लोगों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ नही कहा तब तक इन्हे कुछ नहीं कहा गया....वही लोग जो इन पर आज उल्टे-सीधे आरोप लगा रहे हैं....कल तक बाबा रामदेव के भक्त थे....उनके शिविर में जाते थे....योगा करने....उनको माला पहनाने....लेकिन ज्योंही बाबा रामदेव ने कान पकड़ने की कोशिश की तो बाबा के भक्त गिरगिट के माफिक रंग बदल लिये.....और बाबा को ठग कहने से नहीं चुके....उन्हें बाबा रामदेव की 1100 करोड़ का साम्राज्य अखड़ने लगा.....और आज वही लोग अन्ना हजारे पर भी ट्रस्ट के 2.2 लाख रूपये के दुरूपयोग का आरोप लगा रहें है....सवाल ये है कि ये लोग वर्षों तक चुप क्यों रहें....सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने पर ही बाबा रामदेव और अन्ना पर आरोप क्यों लगाया गया....मतलब साफ है....ये लोग देश के ज्यादातर राजनितिक पार्टियां चोर-चोर मौसेरे भाई के सिंद्धांत पर काम करती हैं.....और एक-दुसरे की गल्तियों को याद दिलाकर ही एक-दुसरे को शांत कर देती हैं.....लेकिन इस बार इन बेईमान शेरों को अन्ना के रूप में एक ईमानदार बब्बर शेर मिल गया है....आर-पार का निर्णायक समय आ गया है....अंत में हेडलाईन .... भ्रष्टाचारियों के चिताओं पर शुशु करेंगे हर वर्ष कुत्ते.....गरीबों का पैसा डकारने वालों को हासिल यही मुकाम होगा.....को दोहराते हुए अपनी बात को समाप्त करता हूं...
.जय हिंद......जय हिंद......जय हिंद.....अन्ना गो अहेड..... वे आर विद यु .
शुक्रवार, 12 अगस्त 2011
लालू जी को मालूम कि..... भीमराव अंबेडकर भी इंसान थे.....
ये लालू प्रसाद यादव ही थे जो संसद में सांसदों की सेलरी 16 हजार से सीधे ८० हजार करने के लिये दहाड़ रहे थे...और शेष सांसद भी अपने फायदे की बात देखकर थोड़ा बहुत शोर मचाकर शांत हो गये...और लालू प्रसाद 80 हजार सेलरी करवाकर ही दम लिये... उस समय लालू को नही याद आया कि देश मे दलित और पिछड़ा वर्ग भी है....उनमे से लाखो नही करोड़ों लोग 20 रुपये प्रतिदिन पर गुजारा कर रहे हैं.....भीमराव अंबेडकर ने जिस समानता की बात करते थे....उस समानता से लालू जैसों का कुछ लेना देना नही है.....ये तो वोट के सौदागर लोग हैं...जो समाज को गरीब-अमीर की बजाय दलित-पिछड़ा, हिंदू-मुसलमान में बांटकर सत्ता पर अपनी पकड़ बनाये रखना चाहते हैं...... जिस अंबेडकर जी का नाम लेकर लालू आरक्षण फिल्म का विरोध कर रहे हैं... उस भीमराव अंबेडकर साहब ने कब कहा था कि आरक्षण कभी खत्म नहीं होगा....अगर उन्होंने कुछ कानून बनाया है तो वह समय के साथ परिवर्तित हो सकता है...समीक्षा होनी चाहिए....क्योंकि बाबा साहब भी इंसान ही थे.....लालू-माया जैसे लोगों ने उनका नाम लेकर करोड़ों रूपया बनाया है....प्रकाश झा जैसे लोग तो बधाई के पात्र हैं....जो आज के समय में कुछ साहस का परिचय दिया....आज लालू जी को आरक्षण फिल्म के सदस्य और बालीवुड के सिरमौर अमिताभ साहब सबसे बुरे एक्टर नजर आ रहे हैं.....कारण क्या है ये तो वे ही जाने....लेकिन हाल ही में खबर आई थी कि अमिताभ जी बिहार में जाकर नितीश कुमार कि तारीफ कर आये......लालू जी को ये बात नागवार तो लगी ही होगी.....जनता ने वैसे ही लालू जी को ठुकरा रखा है....ऐसे में अमिताभ का बिहार दौरा और नितीश कुमार की तारीफ... लालू को अमिताभ और आरक्षण फिल्म का विरोध करने का कारण तो दे ही देती है....खैर लालू जी समेत बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर का नाम लेकर अपनी राजनीती चमकाने वाले सभी नेता पहले सांसदों का वेतन कम करवाएं.....तब समानता की बात करें तो अच्छा लगेगा.....वरना ढोंग करने की जरूरत नही है.....जनता सब समझती है.
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