भारत एक लोकतान्त्रिक देश है .....यहाँ प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार दिए गये हैं....इसी समान अधिकार की वजह से नरेंद्र मोदी ( जो शायद कभी चाय की दुकान चलाते थे )..आज गुजरात में गद्दी सम्भाल रहे हैं...और मायावती जैसी सामान्य शिक्षिका आज यूपी में राजकाज देख रही हैं..... मुझे इस देश की व्यवस्था से कोई शिकायत नहीं है.....क्योंकि इसे कायम रखने या सुधारने की जिम्मेदारी मेरी भी उतनी ही है.....जितनी राहुल गाँधी या मनमोहन सिंह की है.....
लेकिन मुझे दुःख इस बात का है कि जहाँ एक ओर एक आम मजदुर आठ घंटे काम करके सौ रूपया कमाता है और महीने में बमुश्किल तीन हजार में अपने पांच -छः सदस्यों को पाल रहा है ....बच्चों को पढ़ा-लिखा रहा है.....वहीँ दूसरी ओर मायावती ,मुलायम सिंह ,लालू यादव ,जय ललिता और मधु कोड़ा जैसे लोग गद्दी पर बैठते ही अरबों -खरबों के मालिक बन जाते हैं .....इनके खिलाफ सीबीआई की जाँच चलती है .....करोड़ो तो ये लोग कमा चुके हैं और करोड़ो इनके जाँच में खर्च हो जाता है....नतीजा क्या निकलता है......कभी मायावती के सांसदों के वोट के लालच में केंद्र सरकार सीबीआई की पकड़ कमजोर करती है तो कभी मुलायम और लालू के सांसदों के वोट के लालच में....वैसे केंद्र सरकार में भी दूध के धुले लोग बैठे होते तो कुछ उम्मीद भी किया जाता....मगर वहां भी खानदानी लोगों का राज चल रहा है ...जो सिर्फ इसी जुगाड़ में रहते हैं की शासन की लगाम खानदान से बाहर न जाये...भले ही दर्जनों मायावती पैदा हो जाये और अपनी मूर्तियाँ लगवाएं ----भले ही सैकड़ो लालू और कोड़ा हो जाये और चारा और कोयला निगलते जाये... ऐसी बात नहीं है की इन लोगो का इलाज नहीं है......इलाज है मेरे पास है...आपके पास है ....
मगर सवाल ये है कि बिल्ली के गले में घंटा कौन
बाँधेगा .........................................................................................
.ऊपर मैंने जो कुछ भी लिखा है वो सब अपनी एक कविता की भूमिका के लिए लिखा है............कविता कुछ इस तरह से है
अगर मुझे कानून का डर न होता
अगर मुझे कानून का डर न होता
अगर मुझे समाज का डर न होता
अगर मुझे ऊपर वाले का डर न होता
तो मै जाने क्या-क्या कर गया होता
मगर इस कानून से , इस समाज से
और ऊपर वाले से मुझे ही डर क्यों
....................... लगता है
उन्हें डर क्यों नही लगता
जो जुर्म पर जुर्म किये जा रहे हैं
कुर्सी पर बैठकर हमारा खून
................... पीये जा रहे हैं
अरे कोई जरा कह दो उनसे कि समाज
से ,कानून से और ऊपर वाले से डरे
अगर हम भी डरना छोड़ देंगे तो
उन्हें तो दुनिया ही छोड़नी पड़ेगी
..............ईमान से... ................
बुधवार, 28 अप्रैल 2010
शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010
मीडिया को कोसना बंद करो
जाने माने फ़िल्मकार महेश भट्ट ने मीडिया पर अपनी भड़ास निकलते हुआ दैनिक जागरण के सम्पादकीय में लिखा हैकि मीडिया खबरे देते हुए अपने सीमओं और कर्तब्यो को भूल जाता है। आपको इस बात का बहुत कष्ट है की मीडिया निजी जीवन में घुस रहा है, हमारे बेडरूम तक घुस रहा है , आम आदमी को रिपोर्टर की तरह प्रयोग कर रहा है । खैर गलत कुछ नहीं है ।
पिछले कुछ दिनों से मीडिया के खिलाफ लिखना एक फैसन सा बनता जा रहा है और खास करके इलेक्ट्रोनिक मीडिया के खिलाफ, लेकिन मै यह नहीं समझ पा रहा हूँ की इन लोगो को मीडिया के बेडरूम में घुसने से दिक्कत क्यों है भारत के लोग तो परेशां है की मीडिया उनके बेडरूम में नहीं पहुच रही है । क्योकी उनका बेड रूम ही उनका किचेन है, वही खाना बनाते है वही कपडे रखते है वाहे सोते है कोई बहार सर मिलने आजाये तो वही बैठ कर मिलते भी है और उन्हें दुःख इस बात का है कीखुद गलत काम करना बंद करो मीडिया अपने आप तुम्हारा पीछा छोड़ देगी और बहुत हो चुका अब मीडिया को कोसना बंद करो और बैठ कर आत्ममंथन करोमै चाहता हू मै चाहता हू की मीडिया मेरे पीछे आये पर आती ही नहीं मेरे गाँव का बदलू भी चाह्ता है की मीडिया आये पर आती ही नहीं क्या करे भाई. जरी रहेगा मीडिया हकमारी निजी जिन्दगी में नहीं झाकता है। वो कहते है मीडिया दिखाए की आज हम बिना खाए सो गए है, आज मालिक नाराज थे तो पैसा नहीं मांग सका खाना नहीं बना बच्चे भी भूखे है, पर ऐसा हो नहीं रहा है।
साहब लिखते है की मीडिया को अपना खुद का कोड ऑफ़ सेंसरशिप तीयआर करना चाहिए , लोगो को ऐसी खबरों का वहिष्कार करना चाहिए जो मानवीय सम्बेदानाओ को और भावनाओ को आहात करने वाली होसाहब अपनी फिल्मे बनाते वक्त ऐसा कई नहीं सोचते है । तब तो आप कहते है जो डिमांड है मै उसकी पूर्ती कर रहा हू , आप कहते है की मै फिल्मो पर पैसा लगता हू पैसा कमाने के लिए उस समय इनके जेहन में यह ख्याल नहीं आता की उनके इस कृत्य का समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा ।
पिछले दिनों मीडिया ने कुछ गलतिया की लेकिन वो नियोजित नहीं था और उसके बाद लगत आलोचनों का शिकार होकर उसने सुधार भी किया , पर आज परेशानी इण्डिया के लोगो को है उन १० से २० प्रतिशत लोगो को है जो आम जनता पर शाशन कर रहे है इनके चहरे बाहर से जितने साफ दीखते है ये अन्दर उतने ही गंदे है पर ये चाहते है की इनकी गंदगी छुपी रहे और ये आराम से शाशन करते रहे , इनके बेडरूम में गड़बड़ी है इसलिए ये वहा मीडिया का आना नहीं पसंद करते है पर मुझे खुशी है की मीडिया अपना काम कर रही है, गरीबो की गरीबी दिखा नहीं पा रही है काम से काम अमीरों की ऐयाशी तो दिखती है , ये लोग मीडिया को गली देंगे की की यह नहीं दिखाना चाहिए पर खुद नहीं सोचेंगे की यह नहीं करना चाहिए ।
मुझे समाज के इन कथित बुधिजीवियो से यही कहना है की मीडिया पर अंकुश लगाने से पहले खुद पर अंकुश लगाओ , खुद गलत काम करना बंद करो मीडिया अपने आप तुम्हारा पीछा छोड़ देगी और बहुत हो चुका अब मीडिया को कोसना बंद करो और बैठ कर आत्ममंथन करोमै चाहता हू मै चाहता हू की मीडिया मेरे पीछे आये पर आती ही नहीं मेरे गाँव का बदलू भी चाह्ता है की मीडिया आये पर आती ही नहीं क्या करे भाई? जरी रहेगा .............
पिछले कुछ दिनों से मीडिया के खिलाफ लिखना एक फैसन सा बनता जा रहा है और खास करके इलेक्ट्रोनिक मीडिया के खिलाफ, लेकिन मै यह नहीं समझ पा रहा हूँ की इन लोगो को मीडिया के बेडरूम में घुसने से दिक्कत क्यों है भारत के लोग तो परेशां है की मीडिया उनके बेडरूम में नहीं पहुच रही है । क्योकी उनका बेड रूम ही उनका किचेन है, वही खाना बनाते है वही कपडे रखते है वाहे सोते है कोई बहार सर मिलने आजाये तो वही बैठ कर मिलते भी है और उन्हें दुःख इस बात का है कीखुद गलत काम करना बंद करो मीडिया अपने आप तुम्हारा पीछा छोड़ देगी और बहुत हो चुका अब मीडिया को कोसना बंद करो और बैठ कर आत्ममंथन करोमै चाहता हू मै चाहता हू की मीडिया मेरे पीछे आये पर आती ही नहीं मेरे गाँव का बदलू भी चाह्ता है की मीडिया आये पर आती ही नहीं क्या करे भाई. जरी रहेगा मीडिया हकमारी निजी जिन्दगी में नहीं झाकता है। वो कहते है मीडिया दिखाए की आज हम बिना खाए सो गए है, आज मालिक नाराज थे तो पैसा नहीं मांग सका खाना नहीं बना बच्चे भी भूखे है, पर ऐसा हो नहीं रहा है।
साहब लिखते है की मीडिया को अपना खुद का कोड ऑफ़ सेंसरशिप तीयआर करना चाहिए , लोगो को ऐसी खबरों का वहिष्कार करना चाहिए जो मानवीय सम्बेदानाओ को और भावनाओ को आहात करने वाली होसाहब अपनी फिल्मे बनाते वक्त ऐसा कई नहीं सोचते है । तब तो आप कहते है जो डिमांड है मै उसकी पूर्ती कर रहा हू , आप कहते है की मै फिल्मो पर पैसा लगता हू पैसा कमाने के लिए उस समय इनके जेहन में यह ख्याल नहीं आता की उनके इस कृत्य का समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा ।
पिछले दिनों मीडिया ने कुछ गलतिया की लेकिन वो नियोजित नहीं था और उसके बाद लगत आलोचनों का शिकार होकर उसने सुधार भी किया , पर आज परेशानी इण्डिया के लोगो को है उन १० से २० प्रतिशत लोगो को है जो आम जनता पर शाशन कर रहे है इनके चहरे बाहर से जितने साफ दीखते है ये अन्दर उतने ही गंदे है पर ये चाहते है की इनकी गंदगी छुपी रहे और ये आराम से शाशन करते रहे , इनके बेडरूम में गड़बड़ी है इसलिए ये वहा मीडिया का आना नहीं पसंद करते है पर मुझे खुशी है की मीडिया अपना काम कर रही है, गरीबो की गरीबी दिखा नहीं पा रही है काम से काम अमीरों की ऐयाशी तो दिखती है , ये लोग मीडिया को गली देंगे की की यह नहीं दिखाना चाहिए पर खुद नहीं सोचेंगे की यह नहीं करना चाहिए ।
मुझे समाज के इन कथित बुधिजीवियो से यही कहना है की मीडिया पर अंकुश लगाने से पहले खुद पर अंकुश लगाओ , खुद गलत काम करना बंद करो मीडिया अपने आप तुम्हारा पीछा छोड़ देगी और बहुत हो चुका अब मीडिया को कोसना बंद करो और बैठ कर आत्ममंथन करोमै चाहता हू मै चाहता हू की मीडिया मेरे पीछे आये पर आती ही नहीं मेरे गाँव का बदलू भी चाह्ता है की मीडिया आये पर आती ही नहीं क्या करे भाई? जरी रहेगा .............
बुधवार, 14 अप्रैल 2010
ऐतराज किसको हैं ................
खबरों की दुनिया में चल चला चल ही ठहर गया हैं .आप के जो आलाकमान कमीने किस्म के बैठे मिलेगे वो मेरे भाई कुछ नहीं जानते हम उनसे १००% जादा जानते हैं पर उनके पास नौकरी हैं और हम झक मर कर इंटर्न की आड़ में खुद को पिसवाते हैं और मजबूरन ही कहे ये तो शब्दों की महिमा हैं की हमे काम सिखाया जाता हैं ......
............................................................................................पर ये भी तय हैं की जब हम आयेगे तो लात मरकर इन हराम के पिलो को पत्रिकारता से निकल बहार कर देगे ये पत्रिकारता का संक्रमण काल हैं हम तो उस चौथे इस्ताम्भ के लिए जिए और मरेगे जो इसके मूल केंद्र में रखा गया हैं ...........हम आन्दोलन भी करेगी गलत करने वालो को सजाय मौत तो नहीं केवल उसके उनके हाथ और जुबान जरूर कटेगे ............................................
.................................ये वादा हैं पत्रकारिता धर्म से जिसको हमने विश्वविधालय से पाया हैं ...अपना नारा छीनो मरो लोटो ...........
............................................................................................पर ये भी तय हैं की जब हम आयेगे तो लात मरकर इन हराम के पिलो को पत्रिकारता से निकल बहार कर देगे ये पत्रिकारता का संक्रमण काल हैं हम तो उस चौथे इस्ताम्भ के लिए जिए और मरेगे जो इसके मूल केंद्र में रखा गया हैं ...........हम आन्दोलन भी करेगी गलत करने वालो को सजाय मौत तो नहीं केवल उसके उनके हाथ और जुबान जरूर कटेगे ............................................
.................................ये वादा हैं पत्रकारिता धर्म से जिसको हमने विश्वविधालय से पाया हैं ...अपना नारा छीनो मरो लोटो ...........
बुधवार, 7 अप्रैल 2010
शान से परेशान हूँ
काल के जंजाल सा लगता हैं ये इंटर्नशिप पर क्या कहू सवाल हैं कहा से पाऊ नौकरी .....गम तो इतना हैं की आज छोड़ दू...... ये जाल का जंजाल ....पर हैं अगर कोई सोलुसन बताओ वरना चुप चाप तुम भी भटको खैर हम तो भटक रहे ही हैं .........अगर कोई पूछे क्या हैं नोकरी तेरे पास तनकर उठो कहो,,,,,,, हैं कोई व्यवस्था तेरे पास नहीं तो चल चलता बन ......और सुन अभागो के शूख स्वप्न सचे नही बहुत आच्छे होते हैं ..................कल तो मैं आई बी अंन , आजतक ,का मालिक बन कर दिखाउगा ........चल अभी शांत रह .....कल की खबर में एंकर ने जो तुझे बना दिया ......जीरो से हीरो बनने वक्त ही लगता हैं ....चल आज ये तेरा हैं .....ये कल माकूल मेरा होगा .....
मंगलवार, 6 अप्रैल 2010
हमने राखी टाईप के एंकर को लाईन नहीं मारी, फिर भी...................
आई.बी.एन.में इंटर्न का वो भी एक दिन था। रोज़ की तरह एक बडे़ से हॉल के अन्दर ढेर सारे लोग अपने-अपने कम्प्यूटर पर काम कर रहे थे। हॉल के ही एक कोने में चैनल का स्टूडियो था। वह स्टूडियो क्या था......पूरे चैनल के आकर्षण का केन्द्र था। मै स्टूडियो के करीब आउटपुट विभाग में खड़ा हो गया। राकेश त्रिपाठी पहले से वहां मौजूद थे ,अपने काम में व्यस्त थे। मैने उन्हे अपनी ओर बुलाया और स्टूडियो की ओर देखने का इशारा किया। दरअसल स्टूडियो में एक महिला एंकर एंकरिंग कर रही थी। हम लोग कभी टी.वी. देख रहे थे ,कभी उस एंकर को......। मैने देखा कि एक साहब हम लोगों को घूर रहे थे....मैने त्रिपाठी जी से कहा कि देखिये ...वो हम लोगों को घूर रहा है। मेरा ख्याल है यहां से कट लिया जाए....। लेकिन (कॉन्फिडेंस का दूसरा नाम राकेश) त्रिपाठी जी नहीं समझे....वो बोले इसका कोई मतलब नहीं है । हम लोग एंकरिंग देख रहें हैं.....किसी को क्या प्राब्लम है ।लेकिन तभी वो साहब हमारे पास आ गये.....और बोल उठे...तुम लोग यहां इंटर्न करने आये हो...त्रिपाठी जी गर्व से बोले हां सर । वो साहब अजीब सा चेहरा बनाकर बोले....तुम दोनो दुबारा यहां दिखायी मत देना, जाकर कुछ काम करो...। मैने तुरन्त '' बाएं मुड़ आगे बढ़ '' वाला फन्डा अपनाया और वहां से वैसे ही गायब हुआ जैसे गुरुदेव के रूम से ललित और हर्ष उस समय गायब हुए थे , जब अपने विवेक भाई, फरहान साहब के लिये गुरूदेव के पास पूरी टीम लेकर वकालत करने करने गये थे.....और गुरूदेव ने डांट दिया था। ख़ैर अब हम लोग सुरक्षित इलाके में पहुंच चुके थे......मेरा मतलब स्पोर्ट डेस्क के पास..... जहाँ से आदिमानव टाईप के वो सर हम लोगों को देख नहीं सकते थे....। मैने त्रिपाठी जी से पूछा वो क्यों बकवास कर रहा था......वे बोले -पता नहीं मह.राज उसको क्या दिक्कत है........। मैने कहा --अरे यार उसको लग रहा था कि हम लोग एंकर को लाईन मार रहे हैं.........उस दिन के बाद से मै रोज वहीं जाकर खड़ा होता हूं ...लेकिन अकेला...। अब वो आदिमानव कुछ नहीं बोलता है.... शायद उसे हम दोनो के साथ-साथ खड़ा रहने से प्राब्लम है........और शायद इसी को तो कहते हैं कि डर के आगे जीत है......क्योंकि हमने एंकर को लाईन नहीं मारा था.....तो नहीं मारा था.......... भला एंकर भी कोई लाईन मारने की चीज है...वो भी ''राखी टाईप की एंकर'' लेकिन आदिमानव और महामानव को कौन समझाये .......
रविवार, 4 अप्रैल 2010
रात गयी , मगर बात नहीं गयी ....................
मगर नहीं
आज पूरे हिंदुस्तान में सानिया मिर्ज़ा के शादी का विवाद छाया हुआ है ..... टीवी चैनल भी अमिताभ - कांग्रेस प्रकरण दिखा दिखा कर बोर हो चले थे .... इसी बीच सानिया मिर्ज़ा ने टीवी चैंनलों को बैठे -बिठाये एक मुद्दा खेलनें को दे दिया ....इस खेल की भूमिका पाकिस्तान के क्रिकेटर शोएब मलिक ने सन २००२ में ही लिख दिया था ....... बात कुछ इस तरह से है कि शोएब मलिक और आयशा सिद्दीकी की मुलाकात तब हुई जब शोएब मलिक महज २० वर्ष के थे ...... वह पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के सदस्य थे ....... आयशा सिद्दीकी सेलिब्रिटी शोएब के आकर्षण से बच नहीं पायीं .......और खुद को शोएब के हाथो समर्पित कर दिया .... शोएब नें आयशा के साथ वही किया , जो उनके जैसे ढेरो रईशजादे सेलिब्रिटी करते हैं .... करके चले जाते है........... शोएब जब पाकिस्तान पहुंचे तो आयशा से फोन पर बातें जारी रही .......सुनने में यह आ रहा है कि इन्टरनेट और फ़ोन पर ही शोएब नें आयशा के साथ निकाह कर लिया...... शोएब को क्या मालूम था कि किस्मत उन पर कुछ इस तरह से मेहरबान होगी कि सानिया मिर्ज़ा जैसी मशहूर हस्ती का साथ उन्हें मिलेगा .......लेकिन यही तो कुदरत का करिश्मा है कि किसे कब क्या मिल जाये कोई नहीं जानता ..... वैसे शोएब पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान रह चुके हैं ...... मतलब प्रसिद्धि में वह सानिया से ज़रा भी कम नहीं है .......... शोएब की आयशा के साथ गुज़रे वो दिन आज उनके लिए मुसीबतों के पहाड़ बन चुके हैं........मतलब शोएब ने जिसे ""रात गयी बात गयी "" समझकर भुला दिया था...... वह उनके गले का फंदा बनता जा रहा है.......लेकिन सानिया मिर्ज़ा जिस बेशर्मी से शोएब के सुर से सुर मिलाकर १५ अप्रैल को शादी का ऐलान कर रहीं हैं ........वह आयशा के साथ ही साथ पूरे हिन्दुतान के मुंह पर तमाचा है ........लेकिन अफ़सोस इस बात का है की हमारे देश का कानून उन्हें ऐसा करने की पूरी इजाजत देता है.........सानिया को कम से कम कानूनन शोएब के वरी हो जाने का तो इन्तेजार करना चाहिए.......अब देखना यह है कि यह मामला कहाँ तक पहुँचता है....... जबकि स्टार न्यूज़ की ख़बरों के मुताबिक शोएब मलिक ने यह बात कबूल कर ली है कि उन्होंने फ़ोन पर निकाह किया है......लेकिन उन्हें गलत फोटो दिखाया गया था.......
अपने विशेष सहयोगी अंकित तिवारी ,गरिमा तिवारी ,रितू. रितेश और अभिनव तिवारी जी. डी.सलवान नई दिल्ली को धन्यवाद देते हुए इस विश्वास के साथ कि पीठ में छुरा घोंपने वाले देश पाकिस्तान के शोएब से सानिया मिर्ज़ा एक न एक दिन ज़रूर धोखा खायेंगी....और ये सानिया का निजी मामला नहीं है मेरे अपने देश का मामला है ...........मै अपनी बात को यहीं समाप्त करता हूँ ........
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