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सोमवार, 21 मार्च 2011

कैव्स के सभी दोस्तों होली मुबारक.......


--आज मुबारक कल मुबारक होली का हर पल मुबारक.-- 


बुरा न मानो होली है...................


०-सौरभ सक्सेना....सर- "एक क्वेश्चन पूछना चाहता हूँ सर"

१- तुनीर.....खीर पकाया जतन से, चरखा दिया चलाय "आया कुत्ता खा  गया  तू, बैठा ढोल  बजाय"

२-सनसनी....एक सपेरा जंगल में 'बीन' लिए बैठा  है "नागिन बहुत चालक है, दूरबीन लिए बैठी है"

३-आशु प्रज्ञा मिश्र....पत्रकार कम नेता ज्यादा......इ हम नही  कह रहे हैं ...संविधान वाली मैडम ने कहा था ....

४-कुनाल....दोस्ताना फिल्म में भी एक कुनाल था....मगर अपना कुनाल तो इंग्लिश चैनल में एंकर बनेगा....गो अहेड..

५ - फरहान....चच्चा का  नाम तो पुलिस में तैर रहा है.........और जब तक कैव्स   २००८-१०-११ के बच्चे जिन्दा रहेंगे तब तक .....युगों-युगों तक तैरता रहेगा....

६-अन्शुमान.....बैड ब्वाय  -एमसीयू का -कैव्स का -बैड ब्वाय , जो न रहता तो एमसीयू में पक गये होते........


६-रूबी....कुलपति महोदय-"मंच पर एक महिला पत्रकार भी होनी चाहिए"....


7-अभिषेक (गजनी ).....युवा रचनाकार पुरष्कार विजेता  फ़िलहाल "खानदानी पत्रकार"


8-सौरभ श्रीवास्तव ( अभिनेता )......भईया पर्दे पर कब दिखेगा.... गुरूजी ( आलोक चटर्जी सर )  तो आरक्षण फिल्म में आ रहे हैं... 
9-ललित कुचालिया......विहान मैगजीन में देहरादून की जबरदस्त खबर दिया.... चैनल वाले पहचान नहीं  पा रहे हैं....विधान सभा और लाल परेड ग्राउंड  की तरफ से गुजरने वाला ऐसा कौन सा बारात था जिसमे हम दोनों ने उट-पटांग डांस नही किया  था.......बेगानों की शादी में हम दो मुल्ले दीवाने हो जाते थे.....

10-शक्ति.....अटल बिहारी वाजपई जी  ने अपने पिताजी के  साथ कानून की  पढ़ाई (एलएलबी  ) किया था....लेकिन अपने शक्ति चचा ने तो कैव्स के १०१ भतीजों-भतीजियों  को अपने साथ पढ़ने का मौका  प्रदान किया....सुधान्सू रंजन दूरदर्शन समाचार पटना वाले  ने २०म -बीसा नही चलाया तो क्या हुआ....शक्ति एक दिन बहुत बड़ा पत्रकार बनेगा.....

10-शंकर......गुड ब्वाय .....राज एक्सप्रेस भोपाल में राज कर रहा है.....कहता है लोक सभा में 
                  जाऊंगा......


११...नलिन....भाई तुम कैमरे के पीछे कब तक रहोगे...कैमरे के आगे आओ....तुम कैमरे के आगे ज्यादा अच्छे लगोगे...थोडा दिन पैर जमालो....अगर तुमने विडिओग्राफी का कोर्स किया है...तो तुमने एमएससी इएम् भी किया है....

12-जितेश....महान दार्शनिक बेन्थम कहते हैं.....व्यक्ति को "अधिकतम  व्यक्तियों के  अधिकतम सुख" के सिद्धांत के अनुसार कार्य करना चाहिए.....विवेक मिश्रा के उत्तराधिकारी ....


12-मुदिता.....कौन कहता है तूफान आएगा और हम  मर जायेंगे ....हम गोरखपुर वाले है, पेंड़ पर चढ़ जायेंगे ......  



१३-आशुतोष चतुर्वेदी.....पहले ब्रेड को उठाते हैं....फिर मक्खन लगाते हैं ....फिर खाते हैं....


१४-आशुतोष शुक्ल.....चतुर्वेदी सर मुझे भी ब्रेड में मक्खन लगाना सिखा दिजियेना....मई भी खाऊंगा........( आशुतोष जूनियर - परफेक्ट इंडियन ब्वाय...)


१५-राकेश त्रिपाठी....."गोरखपुर से भोपाल तक" -"आईबीएन-7 से ईटीवी" तक हम साथ-साथ हैं.....


१६-विवेक मिश्रा.....पत्रकारों के नेता---१००० गाँव  घुमाने का वादा अधुरा है......


17-भूपेंद्र....शिक्षक दिवस पर टीचर की गजब एक्टिंग किये थे.....तालमेल बिठाने का काम बढ़ियाँ करते हो---बचकर रहना ...कोई चैनल वाला गेस्ट-को आर्डिनेटर न बनादे...


१८-हर्ष....बड़े-बड़े सम्पादकों का छोटे-छोटे चैनलों के कैम्पस में बैठना अच्छा नही लगता...डर के आगे जीत है....इस बार विहान  का सम्पादकीय बहुत अच्छा लगा...




 सुनील वर्मा ---स्वेक्षा-----निधि  -जैन -मोदी---अमित सेन------रत्नेश----प्रीती --दीपा  --शिवांगी --अक्षर --अनूप---रंगोली--उमा --श्रीलता ---सर्जना---शोभित---भवानी---प्रवीन एंड आल केव्स ......हैप्पी होली २ आल ऑफ़ यु.



                

शुक्रवार, 18 मार्च 2011


बच्चों के हाथ में चाकू और मूर्खों के हाथ में कलम  अच्छा नही लगता ...........


 
किसीने खूब कहा है कि धंधा तो कफ़न बेचने का भी अच्छा है---अगर मरने वाले साथ दें......भैया जीने के लिए कोई न कोई धंधा या पेशा तो अपनाना ही पड़ेगा.........लेकिन खबरदार ------यहाँ मै ये कहना चाहूँगा कि पत्रकारिता ऐसी चीज या धंधा  या पेशा बिलकुल नही है.....कि कोई उम्मीद करे कि पढ़ने वाले साथ दें या देंगे.....आज मार्केट में सैकड़ो न्यूज पेपर और मैग्जीन पड़े हुए हैं....लोगो के पास आप्शन है....अगर आप बहुत अच्छा  मैटर या कंटेंट लिखना नही जानते हो...तथ्यों को सही ढंग से प्रस्तुत नही कर सकते हो .....तो इस धंधे में मत आओ...गलती से डिग्री ले भी लिए हो तो प्रैक्टिस  करो....बोले तो...पढ़ो...पहले से जो पत्रकार या लेखक कुछ लिखते आ रहे हैं...उसे पढ़ो....अपने पसंद के लेखक को ही पढ़ो...लेकिन भैया पढ़ो....आई एम द  बेस्ट का गुमान कत्तई मत करना.........मै खुद अभी पत्रकारिता के फिल्ड में बच्चा हूँ..... मै किसी को उपदेश देने कि स्थिति में नही हूँ.....लेकिन माफ़ कीजियेगा मै पढ़ता हूँ --खुद को आई एम द बेस्ट कभी नही समझता ....और अगर मुझे कुछ बुरा लगा तो अपनी राय व्यक्त करने में कोई बुराई भी नही समझता....

लो अब मुद्दे कि बात भी कह देता हूँ जिस वजह से मुझे ये सब लिखना पड़  रहा है.........
                 १-कुछ दिन पहले ही में मैंने एक लेख पढ़ा, ---उसमे लिखा था
 "  वरुण गाँधी जल्द ही विवाद करने वाले हैं.....और उनकी माँ मेनका गाँधी ने उनके लिए एक लड़की ढूंढ़ ली है"....
                 २- इसके आगे उन्होंने जो कुछ  लिखा है...उसका छोटा सा अंश ये है --------
           "योगी आदित्यनाथ ऐसे युवा सांसद हैं जिनके सिर पर अभी तक सेहरा नही बंधा है या जिनके हाथ अभी पीले नही हुए हैं".....
  

      ""जबकि योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ मंदिर गोरखपुर  के पीठाधीश्वर  हैं....उस पद पर बैठा व्यक्ति विवाह नही करता...यह एक सार्वभौमिक सत्य
 ( universal  truth ) है ""
..... 
 विवाह कि जगह लिखा गया है-----"विवाद करने वाले हैं "----चलिए इसमें उनकी गलती  हो न हो--- पत्रिका के प्रूफ रीडर और सम्पादक भी सो रहे थे क्या----नींद में बिना पढ़े ही लेख को ओके  कर दिया ----तो भैया फिर कह रहा हूँ  कि  पढ़ो.....लेखक महोदय -सम्पादक महोदय ---आई एम द बेस्ट के ख्वाब से जागो----आप अपने लेख को--अपने मैग्जीन को खुद नही पढ़ोगे तो जनता--पाठक----या कह लिया जाये कि ग्राहक क्या खाक खरीदेगा और पढ़ेगा----अगर आपके पास २ नम्बर का पैसा हो, और लुटाना हो तो ऐसी चीजों को बार -बार लिखो और छापो---और अगर २ नम्बर का  पैसा नही है तो........पहले पढ़ो फिर लिखो और छापो......
                      सब कुछ के बाद सभी पाठकों को होली की शुभकामना देते हुए तथा लेखक बंधू , प्रूफ रीडर साहब और सम्पादक महोदय से "बुरा न मानो होली है" कहकर मै अपने बात को समाप्त करता हूँ........जय राम जी की.......          
                            "HAPPY HOLI "


हिंदी फिल्मों की सफलता में मीडिया की भूमिका  --

मीडिया अभिव्यक्ति का एक माध्यम है.... भारत में मीडिया किसी न किसी रूप में मानव सभ्यता के विकास से रही है...... प्राचीन समय की बात करे तो अशोक महान के समय में पत्थरों की शिलाओं और लाटों पर लिखे गए लेख भी मीडिया का ही एक रूप था....सूचना और प्रद्यौगिकी के विकास की वजह से वह आज समाचार पत्र,  पत्रिका, टेलीविजन , रेडियो,  ब्लॉग , और न्यूज पोर्टल  का रूप ले चुका है....आज यह हमारे जीवन का इतना महत्वपूर्ण अंग बन गया है कि सुबह नींद से जागने से लेकर रात को सोने तक हम मीडिया से किसी न किसी रूप से जुड़े रहते हैं....कोई नींद से जागते ही अख़बार ढूंढता है....तो किसी कि उंगलिया टेलीविजन के रिमोट पर घुमती रहती है.... कोई रेडियो के माध्यम से तो न्यूज पोर्टल के माध्यम से अपने इंटरेस्ट की जानकारी हासिल करने में लगा रहता  है.... मीडिया के मूल  उद्देश्य तीन हैं -१- सूचित करना,२- शिक्षित करना और ३- मनोरंजन करना... लेकिन हम देखे तो मीडिया अपने उद्देश्यों से भटकी हुई नजर आ रही है....सूचना देने और शिक्षित करने का कम मीडिया कम कर रही है.... इसके  बजाय मीडिया भ्रम फैला रही है...अनुमान के आधार पर  अपुष्ट ख़बरों को ब्रेकिंग के नाम पर परोसा जा रहा है.....  मीडिया का रूप आजकल सूचना और शिक्षा देने का  कम होता जा रहा है....लेकिन अपने तीसरे उद्देश्य में मीडिया जी जन से जुटी है..... मनोरंजन परोसने में मीडिया सशक्त भूमिका निभा रही है...... बात अगर बॉलीवुड अर्थात हिंदी फिल्मों की हो तो कहना ही क्या ....आजकल जहाँ न्यूज चैनल अपने न्यूज बुलेटिन को कटरीना और अभिषेक बच्चन  जैसे फ़िल्मी सितारों के फिल्मों की शूटिंग और उनके प्रमोशन से कर रहे हैं....वहीं न्यूज पेपर में भी फिल्मों के लिए विशेष कालम और  पेज सुरक्षित रखते हैं.....न्यूज पोर्टल की बात करे तो वहाँ भी मूवी मसाला और बॉलीवुड का विकल्प मौजूद रहता है..... बस एक क्लिक कीजिये और फ़िल्मी खबरों के समुन्द्र में गोता लगाइए..... सोचने वाली बात यह है की मीडिया  जहाँ अपने दो उद्देश्यों से भटक रही है....वहीं मनोरंजन परोसने विशेषकर फिल्मों की शूटिंग, उनके लागत, एक्टर , डाइरेक्टर , उनके प्रमोशन , हीरो और हीरोइनों के प्यार के किस्सों को इतना महत्व क्यों दे रही है..... गौर करने पर हम पाएंगे की दर असल मीडिया और हिंदी फिल्म उद्योग एक दुसरे के साथ एक अघोषित समझौता कर चुके हैं.....और एक दुसरे को लाभ पहुंचा रहे हैं...
''नो वन्स किल्ड जेसिका'' मूवी  की नायिकाओं रानी मुखर्जी और विद्या बालन का स्टार न्यूज पर आना, मीडिया और बॉलीवुड के अघोषित समझौते की कहानी या यूँ कहे कि एक दुसरे को लाभ पहुँचाने कि रणनीति को खुद बी खुद बयाँ कर देता है------- दरअसल रानी और विद्या अभिनीत यह मूवी जब रिलीज होने वाली थी तो...दोनों ही अभिनेत्रियों ने स्टार न्यूज पर जमकर गपशप किया था...वह गपशप भी उनकी फिल्म ''नो वन किल्ड  जेसिका'' को लेकर ही था....गपशप भी सामान्य गपशप न उत्प्तंग बातों और हरकतों से भरपूर था....यहाँ तक कि फिल्म के डाइरेक्टर के आने के बाद उनकी चुलबुली  हरकतें और बढ़ जाती हैं..... इस तरह के कार्यक्रम से जहाँ उनकी फिल्म का दर्शकों के बीच प्रचार होता है....फिल्म को अधिक से अधिक दर्शक मिलने कि सम्भावना बनती है....वहीं स्टार न्यूज कि टीआरपी भी हाई होने की सम्भावना रहती है....टीआरपी हाई होने से विज्ञापन ज्यादा मिलने और महंगे दर पर मिलने की सम्भावना रहती है...तो फिल्म के ज्यादा से ज्यादा दर्शकों के बीच पहुँचने से फिल्म यूनिट की मोटी कमाई का रास्ता खुल जाता है.....तो इस बात को डंके की चोट पर कहा जा सकता है की ये दोनों ही समूह एक दुसरे को लाभ पहुँचाने का काम  करते   हैं......
और फिल्मों की सफलता की बात करें तो मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है.....
नो वन किल्ड जेसिका इकलौता उदाहरन नही है.....
कैटरीना कैफ और इमरान खान अभिनीत  '' मेरे ब्रदर की दुल्हन '' फिल्म  की आगरा में हुई शूटिंग की झलकियों को मीडिया के सामने सुनियोजित  ढंग से पहुंचाना और न्यूज चैनलों की हेडलाइन बनना भी इसीका उदाहरण है......

बस आज इतना ही गुड नाईट...........................
  

शुक्रवार, 11 मार्च 2011

मजबूरी का नाम मनमोहन .............................................



(boltikalam.blogspot.कॉम)
दिल्ली से ताल्लुक रखने वाले मेरे एक करीबी मित्र देश के मौजूदा हालातो को लेकर खासे चिंतित है.... बीते दिनों फ़ोन पर बतियाते हुए उन्होंने अपने देश में बढ रहे भ्रष्टाचार की पीड़ा को मेरे सामने उजागर किया... उन्होंने इस बात को दोहराया कि आज हमारे देश को भी एक तहरीर चौक की आवश्यकता है...
मौजूदा दौर में बढ़ते भ्रष्टाचार के प्रति मेरे मित्र की पीड़ा को बखूबी समझा जा सकता है... आज हमारे देश के आम जनमानस इसको लेकर खासा व्यथित है... इस पीड़ा का एहसास शायद हमारे प्रधान मंत्री मनमोहन को भी है ....तभी बीते दिनों अपने आवास पर मनमोहन ने पत्रकार वार्ता बुलाई और भ्रष्टाचार को लेकर हमेशा की तरह अपना दुखड़ा सुनाया......

मनमोहन सिंह ने पत्रकारों से कहा वह गठबंधन धर्म के आगे लाचार है ..... इस दरमियाँ प्रधान मंत्री ने गठबंधन धर्म की तमाम मजबूरियां भी गिना डाली....साथ ही वह यह कहने से नही चुके कि वह इस बार का कार्यकाल भी सफलता पूर्वक पूरा कर लेंगे....... राजनीती संभावनाओ का खेल है ... यहाँ समीकरण बन्ने और बिगड़ने में देरी नही लगती.... ऐसे में पूर्वानुमान लगा पाना मुश्किल है क्या यू पी ऐ २ अपना कार्यकाल सफलता पूर्वक पूरा कर पायेगी....?

यू पी ऐ १ से ज्यादा भ्रष्ट्र यू पी ऐ २ नजर आता है ....एक से बढकर एक मंत्रियो की टोली मनमोहन सिंह की कबिनेट को सुशोभित कर रही है.... यू पी ऐ २ ने तो भ्रष्ट्राचार के कई कीर्तिमानो को ध्वस्त कर दिया है..... पी ऍम की छवि भी इससे ख़राब हो रही है....इसके अलावा सी वी सी पर थोमस की नियुक्ति से लेकर बोफोर्स में "क्वात्रोची " को क्लीन चित देने और महंगाई के डायन बन्ने तक की कहानी यू पीए २ की विफलता को उजागर कर रही है..... आदर्श सोसाइटी से लेकर कोमन वेल्थ , २ जी स्पेक्ट्रुम से लेकर इसरो में एस बैंड आवंटन तक के घोटाले केंद्र की सरकार की सेहत के लिए कतई अच्छे नही है .....

एक मछली पूरे तालाब को गन्दा कर देती है .... फिर भी हमारे देश के मुखिया मनमोहन अपनी लाचारी जताने में लगे हुए है...जबकि इस समय कोशिश इस बात की होनी चाहिए यू पी ऐ को कैसे मौजूदा चुनोती के दौर से बाहर निकाला जाए ....? मनमोहन भले ही अच्छे अर्थशास्त्री हो.....परन्तु वह एक कुशल राजनेता की केटेगरी में तो कतई नही रखे जा सकते ...... मैं तो उन्हें जननेता भी नही मानता .... ना ही वह भीड़ को खींचने वाले नेता है.....१५ वी लोक सभा चुनावो से पहले भाजपा के पी ऍम इन वेटिंग आडवानी ने मनमोहन के बारे में कहा था वह देश के सबसे कमजोर प्रधान मंत्री है.....उस समय कई लोगो ने आडवानी की बात को हलके में लिया था , आज मनमोहन सिंह पर यह बात सोलह आने सच साबित हो रही है ....

मनमोहन सारे फैसले खुद से नही लेते है....सत्ता का केंद्र दस जनपद बना रहता है .... मनमोहन को अगर मैं सोनिया का "यस बॉस" कहू तो गलत कुछ भी नही होगा..... व्यक्तिगत तौर पर भले ही मनमोहन की छवि इमानदार रही है परन्तु दिन पर दिन ख़राब हो रहे हालातो पर प्रधान मंत्री की चुप्पी से जनता में सही सन्देश नही जा पाटा ... "इकोनोमिक्स की तमाम खूबियाँ भले ही मनमोहन सिंह में रही हो पर सरकार चलाने की खूबियाँ तो उनमे कतई नही है.....

कुछ समय पहले उन्होंने अपना मंत्री मंडल विस्तार भी कर डाला.... उम्मीद थी भ्रष्ट नेताओ के पर कतरे जायेंगे.... पर ऐसा कुछ भी नही हुआ.... कई मंत्रियो को भारी भरकम मंत्रालय दे दिए गए ....नयी बोतल में पुराणी शराब दिखाई दी....इस पर सोनिया गाँधी ने भी अपनी कोई प्रतिक्रिया नही दी..... इसी तरह काला धन एक बदा मुद्दा है.... सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद भी हमारे प्रधानमंत्री इसे वापस लाने की दिशा में कोई प्रयास करते दिखाई दे रहे है..... उल्टा नाम सार्वजनिक किये जाने की बात पर " प्रणव बाबू " खासे नाराज हो जाते है.......

यू पी ऐ २ पर इस समय पूरी तरह से दस जनपद का नियंत्रण बना है.... मनमोहन को भले
ही सोनिया का "फ्री हैण्ड" मिला हो पर उन्हें अपने हर फैसले पर सोनिया की सहमती लेनी जरुरी हो जाती है.... दस जनपद में भी सोनिया के सिपैहसलार पूरी व्यवस्था को चला रहे है.... मनमोहन की साफ़ छवि घोटालो से ख़राब हो रही है ... साथ ही कांग्रेस को भी इससे बड़ा नुकसान झेलना पद रहा है...

मनमोहन की साफ़ छवि घोटालो से ख़राब हो रही है.....साथ ही कांग्रेस को भी इससे नुकसान पहुच रहा है.....बेहतर होता अगर हमारे प्रधान मंत्री गठबंधन धर्म पालन के बजाए राजधर्म का पालन बखूबी से करते.... हमारे प्रधानमंत्री को अटल बिहारी की सरकार से सीख लेनी चाहिए जिन्होंने १९९८ से २००४ तक २४ दलों की गठबंधन सरकार का नेतृत्व कुशलता पूर्वक किया..... बल्कि कभी किसी के दवाब में काम नही किया.....

मुझे याद है एक बार जयललिता ने उस दौर में अटल आडवानी से उस दौर में करूणानिधि सरकार को भंग करने का दवाब डाला था ... परन्तु वाजपेयी जयललिता की मांग के आगे बेबस नही हुए थे .... अटल की सरकार भले ही एक बोट से गिर गयी परन्तु अगले चुनाव में वह भारी सीट लेकर आये .....

यही नही तहलका जैसे प्रकरण के बाद उन्होंने जॉर्ज को कुछ समय रक्षा मंत्री के पद से मुक्त रखा था...परन्तु यहाँ तो मजबूरी का नाम मनमोहन बन गए है... वह न तो बदती कीमतों पर अंकुश ला सकते है और ना ही भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबे मंत्रियो से इस्तीफ़ा दिलवा सकते है.... उनके सामने गठबंधन धरम पालन की सबसे बड़ी मजबूरी है .....और मनमोहन की इसी अदा का फायदा ऐ राजा जैसे लोग उठा जाते है.....और मनमोहन धृत राष्ट्र की भांति आँखों में पट्टी बांधे रह जाते है..... ऐसी सूरत में देश का आम आदमी निराश और हताश नही हो तो क्या करे........?
"दुष्यंत " के शब्दों में कहू तो --------------

"कैसे कैसे मंजर सामने आने लगे है
गाते गाते लोग अब चिल्लाने लगे है
अब तो इस तालाब का पानी बदल दौ
यह कवल के फूल कुम्हलाने लगे है ......"

मंगलवार, 8 मार्च 2011

मां का दूध बिकाऊ है?

मां,एक ऐसा शब्द जिसमे संसार का हर गूढ़ सार निहित है..मां..जिसने भगवान को भी जन्म दिया है...मां की ममता अपार है..वेद,पुरानों में भी मां की महिमा का बखान किया गया है...कहा जाता है...पूत कपूत भले ही हो जाए,माता नहीं कुमाता होती...मां के दूध पान करने के बाद बच्चा स्वस्थ तो रहता ही है..साथ ही मां के दिल से भी जुड़ जाता है...मुझे एक फिल्म याद आती है...दूध का क़र्ज़..जिसमे एक मां सांप के बच्चे को अपना दूध पिलाकर पालती है...वो सपोला भी बड़ा होकर मां के दूध का क़र्ज़ चुकाता है...लेकिन वर्तमान में जैसी स्थिति देखने में आ रही है..उसे देखकर लगता है...शायद ही बच्चे अपनी मां का स्तनपान कर पायें...मां की कोख तो पहले ही बिक चुकी थी..अब मां का दूध भी बिकेगा..यानि मां के दूध की बनेगी आइसक्रीम...लन्दन में पिछले शुक्रवार से बेबिगागा नाम से ये आइसक्रीम मिलने लगी है..लन्दन के कोंवेंत गार्डेन में ये आइसक्रीम मिल रही है...इस सोच को इजाद किया मैट ओ कूनीर नाम के एक सज्जन ने..इसकी कीमत १४ पोंड रखी गई है...यानि १०२२ रुपये...इसके लिए ऑनलाइन फोरम मम्सनेट के ज़रिये विज्ञापन से दूध माँगा गया था..जिसमे १५ मांओं ने अपना दूध बेंचा....यदि इसकी बिक्री ने जोर पकड़ा तो शायद दूसरे देशों से भी दूध मंगाया जाएगा...सवाल ये नहीं कि मां का दूध बिक रहा है...सवाल है कि जब मां का दूध बिकेगा तो बच्चे क्या पियेंगे..और जब मां का दूध नहीं मिलेगा उन्हें..तो उनके भविष्य की दशा और दिशा क्या होगी?क्या वे उतनी ही आत्मीयता से अपनी मां को मां कहकर पुकारेंगे...या केवल शर्तों पर आधारित रह जाएगा ये रिश्ता भी?सवाल कई ज़ेहन में है...दिमाग में कीड़े की भांति खा रही ये घटना...लेकिन ये उन साहिबानों के लिए ज़रूर उपयोगी होगी जिन्होंने मां की ममता जानी ही नहीं...मां का प्यार उनको मिला ही नहीं...मां का दूध कभी हलक के नीचे गया ही नहीं...इसी बहाने कम से कम मां के दूध का पान तो कर ही लेंगे...एक सवाल हिंदुस्तान के सन्दर्भ में...इतनी मंहगी आइसक्रीम को खरीदेगा कौन?वही लोग जिनके पास अनाप सनाप पैसा है...शोहरत है...हर ऐशो आराम है...लेकिन मां का आँचल का सुख कभी नहीं ले पाए....क्या होगा इस आइसक्रीम का?जो भी इस आइसक्रीम का स्वाद लेगा निश्चित रूप से वो उस मां का बेटा अप्रत्यक्ष तौर पर हो जाएगा...क्यों कि अगर ऐसा नहीं होता तो शायद भगवान कृष्ण माता यशोदा को मैया नहीं कहते....निश्चित रूप से व्यावसायिक दिमाग रचनात्मक होता है....अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक सोच सकता है..और उसी का नतीजा....पता नहीं क्यों मेरे मस्तिष्क में रह रह कर एक विचार आ रहा है..कि ये हमारे कर्मों का नतीजा है...हमने ज्यादा दूध निकालने के फेर में गायों के बछड़ों को दूध नहीं पीने दिया...और शायद उसका प्रतिफल अब देखने को मिलेगा..कि समाज के बच्चे मां के दूध को तरसेंगे..और मां का दूध उनकी ही आँखों के सामने बिकने विदेश जा रहा होगा.....सवाल मां की ममता का है...सवाल मां की गरिमा का है...रोक सको तो रोक लो....