
रविवार, 10 जुलाई 2011
झाँसी की रानी के बहाने.....

शनिवार, 9 जुलाई 2011
"विद्वानों में बहुत मतभेद है। कोई इसे हाथी कहता है और कोई इसे जामुन।"
इत्तेफाक से कुछ दिनों बाद गांव में एक हाथी आया। गांव वालों के लिए यह एक कौतुहल का विषय बन गया क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि यह जानवर है क्या। लोगों ने सोच कि क्यों न चतुर्वेदी जी के पास चलते है। वह पढ़े लिखे हैं। जगह-जगह घूमते रहते हैं। उन्हें जरूर पता होगा इस जानवर के बारे में। लोगों के बुलावे पर चतुर्वेदी जी हाथी के पास पहुंचे। हाथी को देखने के बाद फौरन उसे याद आया कि इसे पहले कहीं देखा है। तत्काल उन्होंने अपनी डायरी निकाली। डायरी में दो चीजें लिखी थी- हाथी और जामुन। अब चतुर्वेदी जी दुविधा में पड़ गए कि यह हाथी है या जामुन? क्योंकि किसी का विवरण तो उन्होंने लिखा था नहीं। पूरे गांव की भीड़ एकत्र थी और चतुर्वेदी जी को उस जानवर के बारे में बताना था। काफी विचार-विमर्श करन के बाद भी चतुर्वेदी जी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए कि यह हाथी है या जामुन। अंतत: उन्होंने गांव वालों को संबोधित करते हुए कहा- "देखिए विद्वानों में बहुत मतभेद है। कोई इसे हाथी कहता है और कोई इसे जामुन।"
गुरुवार, 7 जुलाई 2011
तो इत्तेफाक से मै भी खानदानी पत्रकार हो गया........

दरअसल इस वर्ष 2011 की होली में मैंने माखनलाल युनिवर्सिटी ( कैव्स ) के अपने दोस्तों के बारे में..... बुरा न मानो होली है... शीर्षक से कुछ खट्टी मीठी बातों को लिखा था....कोई गंभीर मुद्दा नही था....जिसने भी पढ़ा खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया.....अपने एक दोस्त अभिषेक पाण्डेय के बारे में भी मैने बस यही लिखा था कि-
अभिषेक (गजनी ).....युवा रचनाकार पुरष्कार विजेता फ़िलहाल "खानदानी पत्रकार"
....... अब संयोग देखिये कि मेरा भाई भी इस बार महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में पत्रकारिता में एड्मिशन ले लिया.....( हालांकि मैने उससे कहा था कि यार- बैंक की तैयारी करलो....रेलवे की तैयारी करलो एक बार हो गया तो लाइफ टाइम मौज करोगे....लेकिन नही माना )
चलिए यहां तक तो ठीक था.....बोले तो मैने अपने कुछ दोस्तों को मैसेज के जरिये ये सूचना दे दी....क्योंकि 5 जुलाइ को मै खुद वर्धा गया था उसका एडमिशन कराने....वहां का माहौल....कैम्पस की खुबसुरती.....देखकर मै खुश हो गया...और यह समाचार मैने अपने चहेते लोगों तक पहुंचा दी......उन्ही चहेते लोगों की लिस्ट में एक प्रमुख नाम अभिषेक पाण्डेय का भी है.......मैसेज भेजने के बाद मै भूल गया.....वर्धा से वापस हैदराबाद लौटा......तेलंगाना बंद कि वजह से बड़ी मुसीबत से अपने ऱुम तक पहुंचा.....मुसीबत बोले तो तेलगू भाषी भाई लोग आंध्रप्रदेश के बंटवारे के लिए तड़प रहे हैं.....बस बंद था....किसी तरह डरते-डराते एक न्यूज पेपर वाले से काफी रिक्वे्स्ट करके अपना आई कार्ड दिखाकर बोले तो मालवाहक गाड़ी से अपने रुम तक सही सलामत पहुंच गये....साथ में मेरा भाई भी था......मुझे एक दिन पहले ही मैसेज मिल गया था कि 5-6 जुलाई को तेलंगाना बंद रहेगा....सभीको चैनल के ही होटल में दो दिन रुकना है..बस सेवा बंद रहेगा....... खैर 6 जुलाई को तेलंगाना बंद के बावजूद दोपहर में मै अपने ड्यूटी के लिए निकला.....चुंकि सुबह मै एक बार रिस्क ले चुका था....दुसरी बार भी रिस्क लिया.....और कामयाब रहा...........अब मेन बात जो मै बताना चाह रहा हूं वो ये है कि रास्ते में अभिषेक पाण्डेय द्वारा बधाई संदेश मिला....आदित्य भाई - भाई के एड्मिशन की बधाई.... मैने भी रिवाज के अनुसार धन्यवाद भेज दिया.....फिर उस भाई ने एक मैसेज भेज दिया----,,,,अब तुम भी हो गये खानदानी पत्रकार,,,, तुरंत मुझे होली में उनके बारे में लिखा गया कमेंट याद आ गया.....मुझे बहुत हंसी आ रही थी....शर्म भी लग रहा था.....कि मैने उसक मजा क्यों लिया था...अब वो मजा ले रहा है....अंत में मैने कह दिया हां यार अपने ही शब्दों में फंस गया.....अब तो अपने ही बारे में ब्लाग लिखना पड़ेगा.......खैर अभिषेक पाण्डेय के बहाने मै सभी को बतादूं कि आज के जमाने में भाई- भाई रह ही नही गया है--कसाई हो गया है....कोई बात ही नही मानता.....कम से कम अपने भाई के बारे में तो मै ये बात कह ही सकता हूं....क्योंकि अगर मेरा भाई मेरी बात मान गया होता और रेलवे या बैंक की तैयारी करता.....तो शायद मुझे यहां ब्लाग लिखकर सफाई नही देनी पड़ती......खैर अभिषेक पाण्डेय जो आमतौर पर मेरी बातों का सही अर्थ समझ जाते हैं....उनको बताना चाहूंगा कि भले ही मै भी उनकी तरह खानदानी पत्रकार हो गया हूं......लेकिन मेरा पत्रकारिता बाला परिवार उनके परिवार से छोटा है.....लेकिन एक डर और है मेरा एक छोटा भाई और है.....जो गोरखपुर के सेंट्रड्यूज डिग्री कालेज से बीएससी कर रहा है......कहीं उसके दिमाग में भी पत्रकारिता की खुजली ना होने लगे......खैर आप लोग दुआ किजिएगा ऐसा न हो....और मै भी अपनी जान लगा दूंगा कि ऐसा न हो.....लेकिन एक बात मैं फिर से कहना चाहूंगा....भाई तो आज को जमाने में भाई रह ही नही गये हैं......कसाई हो गये हैं..... कोई बात नही मानते....जहां जाओ पीछे-पीछे चल देते हैं......हां माखनलाल के विवेक भाई, अंशुमान भाई, फरहान भाई, ललित भाई, हर्ष भाई, सौरभ भाई और आज के डेट में सबसे बड़े भाई अभिषेक भाई की बात कुछ और है...
मंगलवार, 5 जुलाई 2011
ये लडकिया .......
भीड़ में हों तो लोगों का डर
अकेले में हों तो सुनसान राहों का डर
गर्मी में हों तो पसीने से भीगने का डर
हवा चले तो दुपट्टे के उड़ने का डर
कोई न देखे तो अपने चेहरे से डर
कोई देखे तो देखने वाले की आँखों से डर
बचपन हो तो माता-पिता का डर
किशोर हो तो भाइयों का डर
यौवन आये तो दुनिया वालो का डर
राह में कड़ी धुप हो तो,चेहरे के मुरझाने का डर
बारिश आ जाये तो उसमें भीग जाने का डर
वो डरती हैं और तब तक डरती हैं
जब तक उन्हें कोई जीवन साथी नहीं मिल जाता
और वही वो व्यक्ति होता हैं जिसे वो सबसे ज्यादा डराती hai....
रविवार, 3 जुलाई 2011
मां.........माही.......सेफिया........नंदनी!!!
अगर समय और परिस्थिति ने किसी को नहीं बदला तो वो है मेरी मां। सेफिया और नंदनी का संबोधन भले ही बदल गया हो, पर मां का संबोधन आज तक नहीं बदला। नंदनी और सेफिया की तरह और भी आएंगी। पर शायद ही किसी का माही संबोधन मेरी मां की तरह दीर्घकालिक हो।
शनिवार, 2 जुलाई 2011
तो हम दीपक चौरसिया कभी नही बन सकते...........

गुरुवार, 30 जून 2011
हुनर हमने भी सीख लिया है फर्जी रिश्ता बनाने का
अनजान था अपनी सूरत से मैं
दर्पण नैन के उसने दिखलाई
एहसास-ए-मोहब्बत से था खाली
प्रेम फूल के उसने खिलाई
इरादे उसकी समझ न पाया जो था मुझको मिटाने का
हुनर हमने भी सीख लिया है फर्जी रिश्ता बनाने का
चारों तरफ था अंधियारा
वो आशा की एक किरण थी
रौशनी ने दस्तक दी थी
वो सूरज की एक किरण थी
रौशनी का खेल असल में खेल था मुझको मिटाने का
हुनर हमने भी सीख लिया है फर्जी रिश्ता बनाने का
प्यार न करना तुम यारो
न पड़ना तुम इस चक्कर में
तेरा ही दिल टूटेगा
दो दिलों की इस टक्कर में
फिर भी यदि तुम कर बैठो तो कोशिश न करने निभाने का
हुनर तुम भी अब सीख लो यारो फर्जी रिश्ता बनाने का
रविवार, 19 जून 2011
भाजपा को अलविदा कहने के मूड में मुंडे.............

(लेखक युवा पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है.... वर्तमान में भोपाल से प्रकाशित हो रही मासिक पत्रिका "विहान " में स्थानीय संपादक है .... इनके विचारो को बोलती कलम ब्लॉग पर जाकर भी पड़ा जा सकता है )
शनिवार, 18 जून 2011
सीरीज जीता, दिल नहीं
www.gunjj.blogspot.com
एक चैंपियन टीम कौन होती है? पूर्व आस्ट्रेलियाई कप्तान एलन बोर्डर ने एक बार कहा था कि चैंपियन टीम वह होती है जो जीत के हालात न होने के बाद भी जीत के आसार पैदा कर दे। भारतीय टीम सीरीज भले ही जीत गई हो पर प्रभावित करने में नाकाम रही। पांच मैचों में अंतिम दो हार ने जीत की खुशी फीकी कर दी। कहां तो शुरूआती जीत से भारत की वाहवाही हो रही थी, पर आखरी दो मैचों में तो भारत मुकाबले में था ही नहीं। शुरूआती जीत को भी धमाकेदार नहीं कहा जा सकता। यह सच है कि भारत के प्रमुख खिलाड़ी इस श्रृंखला में नहीं थे, पर वेस्टइंडीज की टीम भी तो दोयम दर्जे की थी। शुरू में तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा, पर सीरीज में 3-0 की बढ़त के बाद भारत की पुरानी आदत फिर से जगजाहिर हो गई। प्रयोग किये जाने लगे। हरभजन और मुनाफ को विश्राम क्या दिया गया, गेंदबाजी पूरी तरह से बेदम हो गई। इन प्रयोगों को आत्मघाती के सिवा कुछ नहीं कहा जा सकता।
सोमवार, 6 जून 2011
छत्तीसगढ़ में बेटे के लिए राजनीतिक जमीन खोजते जोगी.... ..

१ नवम्बर २००० की सुबह जोगी के लिए सुकून भरी साबित हुई... अविभाजित मध्य प्रदेश में कांग्रेस के विधायको की संख्या ज्यादा थी लिहाजा वहां की अंतरिम सरकार कांग्रेस की बनी....... इस दौर में तकरीबन तीन साल जोगी को राजपाट सँभालने का मौका मिल गया ........
2003 के चुनावो ने करवट बदली और जोगी के हाथ से सत्ता फिसल गई......यही वह दौर था जब अजित के बेटे अमित जोगी की दिलीप सिंह जूदेव प्रकरण के कारण खासी किरकिरी हुई .... जूदेव के समय आरोप लगे , जूदेव प्रकरण को हवा देने में अमित जोगी की खासी अहम् भूमिका है ..इसके बाद एक मर्डर के सिलसिले में अमित जोगी को जेल की हवा भी खानी पड़ी.....
राजनीती संभावनाओ का खेल है॥ यहाँ चीजे हमेशा एक जैसी नही रहती..... उतार चदाव आते रहते है.... बेटे का नाम मर्डर केस में आने के बाद छत्तीसगढ़ में २००३ के आम चुनाव में पार्टी ने जोगी को आगे किया परन्तु उसके हाथ से सत्ता फिसल गई ..... मजबूर होकर जोगी को विपक्ष में बैठना पड़ा ....
इसके बाद से लगातार राज्य में कांग्रेस का ग्राफ घटता जा रहा है.... खुद अजित जोगी की राजनीती पर अब संकट पैदा हो गया है...उनको करीब से जाने वाले कहते है वर्तमान दौर में उनकी राजनीती के दिन ढलने लगे है....खुद राज्य में जोगी अपने विरोधियो से पार नही पा रहे है.....
इसी के चलते अब कई लोग और कांग्रेस के जानकार यह मानने लगे है अगर समय रहते राज्य में जोगी का विकल्प नही खोजा गया तो राज्य में रमन सिंह तीसरी बार अपनी सरकार बना लेंगे.....
२००४ में अजित जोगी एक कार दुर्घटना में घायल हो गए जिसके चलते आज तक वह व्हील चेयर में है परन्तु लचर स्वास्थ्य के बाद भी अभी जोगी का राजनीती से मोह नही छूट रहा है ... जानकार बताते है कि जोगी एक दौर में आदिवासियों के बीच खासे लोकप्रिय थे , आज आलम यह है कि छत्तीसगढ़ में " चावल वाले बाबा जी " के मुकाबले जोगी की कोई पूछ परख तक नही होती .....
यह बात धीरे धीरे अब जोगी भी समझ रहे है शायद तभी वो राज्य में वंशवाद को बढाने में लगे है ....पिछले चुनाव में जोगी ने राज्य के कोने कोने में पार्टी के लिए वोट मांगे थे जनता ने उनके नेतृत्व को नकार दिया ....२००८ के चुनावो में आदिवासी बाहुल्य इलाको में कांग्रेस को केवल ११ सीट मिल सकी .....
यह घटना ये बताने के लिए काफी है कि किस तरह जोगी अपने राज्य के आदिवासियों के बीच ठुकराए जा रहे है..... जबकि जोगी खुद को आदिवासियों का बड़ा हिमायती बताया करते थे ......
भारतीय राजनीती में वंशवाद से कोई अछूता नही है ......फिर जोगी उस पार्टी की उपज है जहाँ सबसे ज्यादा वंशवाद की अमर बेल फैली है.... इसकी परछाई जोगी पर स्वाभाविक पढनी थी ... शायद इसी के चलते उन्होंने १५ वी लोक सभा के चुनावो में अपनी पत्नी डॉक्टर रेनू जोगी को लोक सभा का चुनाव लड़ाया लेकिन वहां पर भी जोगी की नाक कट गई .....
इसके बाद भी उनकी राजनीती के प्रति उनका मोह कम नही हुआ .....राज्य सभा के जरिये केंद्र वाली सियासत करने में रूचि दिखाई लेकिन असफलता ही हाथ लगी......
अब जोगी यह बात भली भांति शायद जान गए है मौजूदा समय में उनका राज्य में बड़े पैमाने पर सक्रिय हो पाना असंभव लगता है ॥ साथ ही पार्टी आलाकमान ने उन पर घास डालनी बंद कर दी है... प्रदेश राजनीती में उनके विरोधियो ने उनको हाशिये पर धकेल दिया है इस लिहाज से वह अपना खुद का वजूद बचाने में लगे हुए है......
राजनीती पर पैनी नजर रखने वाले जानकार अब इस बात को स्वीकारने लगे है .... हाँ , यह अलग बात है जोगी अब भी अपने को आदिवासियों का हिमायती मानने से परहेज नही करते है........
इसी बात को जानते और वक़्त की नजाकत को भापते हुए अब उन्होंने आदिवासी इलाको में अपने बेटे अमित के लिए सम्भावना तलाशनी शुरू कर दी है.....आदिवासी कार्ड खेलकर वह राज्य में अपने बेटे अमित को जनता के सामने लाकर उनके राज्य की राजनीती में अपनी विरासत सौपने की दिशा में जल्द ही कदम बढ़ाकर फैसला ले सकते है......
"जग्गी " हत्या कांड में जेल की यात्रा कर चुके अमित भी अब पिता के पग चिन्हों पर चलकर अपनी छवि बदलने की तैयारियों में जुट गए है .... वह इस बात को जानते है चाहे राज्य के कांग्रेसी नेता उनके पिता को आने वाले दिनों में किनारे करने के मूड में है लेकिन पिता आदिवासी इलाके में उनको स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है.....
अजित जोगी भी इस बात को बखूबी जान रहे है॥शायद तभी उनकी नजर आदिवासियों के एक बड़े वोट बैंक पर आज भी लगी हुई है..... ये अलग बात है हाल में बस्तर में लोक सभा के चुनाव में वह पार्टी के लिए खास करिश्मा नही कर पाये .....
इस चुनाव में बलिराम कश्यप के निधन से रिक्त हुई सीट भाजपा के पाले में चली गई.....लेकिन आदिवासियों की सभा में आज भी जोगी की एहमियत कम नही हुई है .... उनकी सभाओ में लोगो की भारी भीड़ उमड़ आती है....अब जोगी की कोशिश है कि इस भीड़ को अमित के पक्ष में किसी भी तरह किया जाए.....और आने वाले विधान सभा चुनाव में किसी भी तरह अमित को कांग्रेस पार्टी टिकट दे जिससे राज्य में वह उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा सके.....
देखना होगा अजित जोगी का ये दाव छत्तीसगढ़ में कितना कारगर साबित होता है...... इस बहाने अजित जोगी जहाँ अपने बेटे को आगे कर अपनी विरासत को आगे बदाएगे वही आदिवासियों के बीच अपनी लोकप्रियता के मद्देनजर अपने बेटे अमित जोगी की राजनीतिक राह आसान कर देंगे..... देखना होगा उनका यह कदम आने वाले समय में कितना कारगर साबित होता है?
(लेखक युवा पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है.... वर्तमान में भोपाल से प्रकाशित हो रही मासिक पत्रिका "विहान " में स्थानीय संपादक है .... इनके विचारो को बोलती कलम ब्लॉग पर जाकर भी पड़ा जा सकता है )
सोमवार, 23 मई 2011
माखनलाल के 10 लाल ........सबसे चर्चित.....सबसे सफल


1 -संजय सलिल----- संजय माखनलाल के पहले बैच के छात्र रहे हैं......संजय सलिल दुनिया के पहले हाई डेफिनेशन न्यूज चैनल तेलगु ( आंध्रप्रदेश ) में ''साक्षी'' चैनल को लांच कराने वाली मीडिया कंसल्टेंसी '' मीडिया गुरु '' के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं.....IBN7 जिसे पहले जागरण ग्रुप के चैनल- 7 के नाम से जाना जाता था को भी लांच कराने वालों में से एक नाम संजय सलिल का भी है......इन्ही के कंसल्टेंसी मीडिया गुरु ने बांगलादेश में २४ घंटे का पहला न्यूज चैनल CSB लांच कराया..........MCU - में ये संजय कुमार के नाम से जाने जाते थे....और MCU - से निकलने के बाद संजय कुमार - संजय सलिल बन गये.......किसी जमाने में नई दिल्ली से प्रकाशित '' पब्लिक एशिया अख़बार '' में चीफ सब एडिटर के पद पर २५०० प्रति माह पर काम करने वाले सलिल आज करोडो के मालिक हैं.....सलिल देश विदेश में रेडियो-टीवी के चैनल खड़ा करवाते हैं....चैनलों के लिए स्टाफ की भर्तियाँ करते हैं............ नेम -फेम और मनी की चाहत लेकर पत्रकारिता में कैरियर बनाने का सपना देखने वालो के लिए संजय सलिल एक बेमिसाल उदाहरण हैं.......
२- श्यामलाल यादव--- श्यामलाल माखनलाल के दुसरे बैच के स्टुडेंट रहे हैं.....वर्तमान में इंडिया टुडे में विशेष संवाददाता/एसोसियेट एडिटर के पद पर काम कर रहे हैं.... 19 -25 मई 2011 के इण्डिया टुडे के अंक में भट्टा परसौल की स्टोरी को पढ़कर इनके कलम की धार को जाना जा सकता है.....
३-प्रवीन दुबे---21 मई को भोपाल में मिनाल रेजीडेंसी की खबर को पुरे देश की मीडिया ने हेड लाइन के तौर पर प्रमुखता से दिखाया था.....अगर आपने न्यूज 24 स्विच किया होगा तो प्रवीन दुबे अपने चैनल का आईडी लिए हंगामे के बीच ख़बरों को प्रस्तुत करते जरुर दिखाई दिए होंगे......प्रवीन न्यूज 24 के- एम.पी - ब्यूरो चीफ हैं.....
४-- यामिनी ठाकुर....... मशहूर टीवी सीरियल पवित्र रिश्ता में बंदू की भूमिका निभाने वाली कोई और नही माखनलाल की यामिनी ही थीं......पत्रकारिता की पढ़ाई के साथ एक्टिंग की तरफ झुकाव रखने वालों के लिए यामिनी एक आदर्श हैं.......
५- सौरव मालवीय---राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को छोड़कर झीलों के शहर भोपाल में लौटने वाले सौरव मालवीय वर्तमान में माखनलाल में प्रकाशन अधिकारी के पद पर काम कर रहे हैं.... सौरव मालवीय मिलनसार व्यक्ति हैं.....
६-स्मृति जोशी.....एमसीयु पास आउट स्मृति विश्व के पहले हिंदी पोर्टल वेब दुनिया डोट कॉम में फीचर सम्पादक हैं.....नये पत्रकारों के लिए इनका पत्रकारिता जीवन संघर्ष एक सन्देश है.....डटे रहने की सिख देती है इनकी कलम....इनका ब्लॉग है..........SMRITI .MYWEBDUNIYA .कॉम
७-- संजय द्विवेदी--- नीली कार में चलने वाले संजय द्विवेदी की उपलब्धियों की श्रिंखला इतनी लम्बी है कि माखनलाल के लालों में उन्हें अनदेखा नही किया जा सकता.......दैनिक जागरण भोपाल के सम्पादकीय पेज पर इनके लेखों के दर्शन खूब होते हैं.........कभी-कभी बहुत अच्छा भी लिख देते हैं.....फिरोजाबाद लोकसभा सीट के उपचुनाव में मुलायम की बहु डिम्पल यादव के हार जाने के बाद इन्होने '' समाजवादी नही कार्पोरेट मुलायम की हार '' शीर्षक से लेख लिखकर उस दिन दैनिक जागरण के सम्पादकीय पेज को खास बना दिया था.....उम्मीद है कि श्री संजय द्विवेदी आगे भी जागरण समेत तमाम अख़बारों के सम्पादकीय पेज को खास बनाते रहेंगे.......
८--पूर्णेंदु शुक्ला--- पूर्णेंदु शुक्ला C-VOTER में काम करते है ....अपने जूनियर्स को हमेशा सपोर्ट करने वाले पूर्णेंदु एक प्रैक्टिकल इन्सान हैं.....डेल्ही जाने पर सबसे पहले इनकी याद आती है.....पढ़ाई के दौरान और पढ़ाई के बाद नौकरी के दौरान पूर्णेंदु शुक्ला ने अपने जूनियर्स के लिए हमेशा एक बड़े भाई की-एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाई है...... पूर्णेंदु शुक्ला माखनलाल के टॉप १० लालों में से एक लाल हैं....
९---अनुराग अमिताभ मिश्र--- CNEB - भोपाल के ब्यूरो प्रमुख अनुराग अमिताभ काफी हैंडसम PERSONALITY वाले व्यक्ति हैं.... यूँ तो वे बार-बार माखनलाल आते रहते हैं.....लेकिन पहली बार जब मैंने उन्हें देखा था तो वे अपने चैनल के लिए फ़ोनों कर रहे थे.....गोविन्दाचार्य की भाजश में शामिल होने की अफवाह या खबर पर फ़ोनों चल रहा था....वो चलते-चलते फ़ोनों दे रहे थे...फिर वो लिफ्ट में आ गये... धारा प्रवाह फ़ोनों जारी था....मै भी उनके पीछे लग गया ....और सुनता रहा..... मै सोच रहा था ये तो टीवी में काम करने वाले लोगों की तरह फोन पर बात कर रहा है..ये है कौन ......मै मीडिया में नया ही था.... बहुत दिन बाद उनसे परिचय हुआ मालूम पड़ गया ...वो CNEB -के ब्यूरो चीफ हैं...अपने काम में दक्ष अनुराग अमिताभ भी अपने जूनियर्स को मदद देने में पीछे नही रहते.... वह mcu -केव्स में आकर दीवारों पर लगी कविताओं को पढ़ने तक का टाईम निकाल लेने वाले व्यक्ति हैं......कुल मिलाकर माखनलाल के दस लालों में से एक चर्चित लाल हैं....अनुराग अमिताभ.....
10 -- ये स्थान अभी ख़ाली है....नई पीढ़ी अपने सीनियर्स से भी आगे बढ़ती रही है बढ़ती रहेगी........कुछ वेटिंग लिस्ट में जरुर हैं.......मेरा मतलब अपने बैच 2008 -2010 से है .....( इस बैच में भी कुछ प्रतिभावान और अपने धुन के पक्के लोग थे....जिनमे सौरव श्रीवास्तव, आशु प्रज्ञा , आशुतोष चतुर्वेदी, अभिषेक पाण्डेय जैसे लोग हैं.......ये भी एक दिन माखनलाल के लालों में अपनी गिनती करवाएंगे..... होने को और भी लोग हो सकते हैं लेकिन इन लोगों को मैंने करीब से देखा है.........जो एक न एक दिन अपना नाम करेंगे....
सौरव श्रीवास्तव वो सख्स हैं जो अपनी पढ़ाई और एक्टिंग के शौक को साथ-साथ लेकर चले.....अलोक चटर्जी के एक्टिंग स्कूल न्यू हाईट में एडमिशन लिए....सेमेस्टर के exam में भी नो पढ़ाई ओनली एक्टिंग.....रात १०-११ बजे एक्टिंग सीखकर आते थे--- छीना झपटी करके थोडा बहुत पढ़ लिए.....सुबह 9 बजे exam हॉल में.....वो थी एक्टिंग की दीवानगी.....5 के 5 पेपर एक ढंग से दिया.....
आशु प्रज्ञा --- मै पहले से ही कहता आया हूँ पत्रकार कम नेता ज्यादा ....हालाँकि मै उनके बारे में ये बात अपनी एक टीचर से सुना था.....उनके पास जानकारी बहुत है..... बस नियत ठीक रखें.....
आशुतोष चतुर्वेदी---- एमसीयु के आशुतोष चतुर्वेदी.....के बारे में क्या कहना.....एक वक़्त था लोग इन्टर्न की व्यवस्था में जुटे थे....और आशुतोष भगवा कुर्ता में चमक बिखेर रहे थे......सुविधा की राजनीती में माहिर आशुतोष अरुण जेटली की तरह शातिर हैं......देश भक्ति भी है...कुछ करने का जज्बा है............उम्मीद है एक दिन इनकी माखनलाल के चमकते सितारों में गिनती होगी.....फ़िलहाल UP में हैं.....जल्द ही कम बैक होने की बात कर रहे हैं....
अभिषेक पाण्डेय--- पढ़ने-लिखने का शौक रखने वाले अभिषेक एक प्रोफेशनल आदमी है....नयी सडक बनाना तो नही सीखे ....लेकिन बनी बनाई सडक पर चलना खूब जानते हैं.....कब तक स्ट्रेट जाना है कब U टर्न लेना है कोई अभिषेक पाण्डेय से सीखे......खुद तो तरक्की की राह पर चलते ही है....अपने हम राहियों को भी प्रोत्साहित करने से नही चुकते........
( निवेदन है ------इस लेख को हलके में लें....इस लेख के माध्यम से न तो किसी को उठाने की कोशिश की गई है और ना ही किसीको गिराने की....और ऐसा भी नही है कि जिनका नाम इसमें नही है वे किसी से कम है.......मेरी जानकारी थोड़ी सीमित हो सकती है...लेकिन माखनलाल के पास आउट लोगों कि सफलता कि कोई सीमा नही है....मैंने माखनलाल यूनिवर्सिटी में कुछ समय बिताया है.....माखनलाल के दोस्तों-सहयोगियों-सीनियरों से मिला हूँ......टच में रहता हूँ.....इस वजह से अपना नजरिया व्यक्त कर रहा हूँ.....विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग फुर्सत से कर रहा हूँ.....जय हिंद. )
रविवार, 22 मई 2011
मै करूँ तो साला ..... कैरेक्टर ढीला है .....
मैं उजला ललित उजाला हूँ............

मैं उजला ललित उजाला हूँ!
मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!
तेरे मन के तम से लड़ता हूँ
तेरी राहें उजागर करता हूँ
आओ मुझे बाहों में भर लो!
मुझ सा कोई प्यार नहीं है
मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!
तेरे रोम-रोम में भर जाता हूँ
तेरे दर्द को मैं सहलाता हूँ
आओ मुझे देह में भर लो!
मुझ सा कोई उपचार नहीं है
मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!
यूं तो नहीं मेरा कोई भी रूप
हूँ मैं ही चांदनी, मैं ही धूप
आओ मुझे अंजुली में भर लो!
मुझ में कोई भार नहीं है
मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!
क्यों मन में भय को भरते हो
क्यों अंधियारे से डरते हो
आओ मुझे अंखियों में भर लो
मुझ सा कोई दीदार नहीं है
मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!
मैं उजला ललित उजाला हूँ!
ललित कुमार दुवारा …
शुक्रवार, 20 मई 2011
माखनलाल युनिवर्सिटी और मई-जून का महीना..........
बुधवार, 18 मई 2011
एक तुम्हारे सिवा कुछ भी दिखता नहीं.
![]() |
फोटो गूगल से साभार |
सोमवार, 16 मई 2011
नई राहें
मानव जीवन संघर्षों से भरा है!हर सिक्के के दो पहलू होते है,और हर पहलू की बराबर प्रायिकता!आज दुःख है तो कल सुख भी आएगा,और आज सुख है कल दुःख भी आएगा!जो पत्ते पेड़ पर लगे हैं उन्हें जमीं पर गिरना ही है!बसंत में फिर से नई कोंपलें खिलती हैं,फिर पतझड़ में सरे पत्ते धरती चूम लेते हैं!जो फूल खिला है उसे मुरझाना ही है!लेकिन नई कलियाँ खिलती हैं तो जीवन में एक आस जगाती है!जीवन के बाद मृत्यु,और मृत्यु के बाद जीवन,एक नया जन्म!एक नया रूप,नया नाम,नया चेहरा!लेकिन इन सबसे जूझते हुए सभी एक नए जीवन के लिए संघर्ष करते है,बनाते है नई राहें!
ममता और जयललिता की जय के बाद दोनों के सामने कई चुनौतियां हैं...जहां जयललिता को भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आवाज उठानी है और कार्यवाही करनी है तो ममता को भी कई परेशानियां झेलनी पड़ेगी...रेल मंत्री की कुर्सी पर कौन बैठेगा..सबसे बड़ा सवाल....दोनों को राज्य में कई काम करने हैं...बनानी हैं नई राहें!
हमारे विभाग के सीनियर्स का बैच अपने कॉलेज जीवन से निकलकर पत्रकारिता के क्षेत्र में पदार्पण कर रहा है!सभी जोश से लबरेज,अटूट उत्साह,एक नई उमंग!कई छात्र पहले ही पदार्पण कर चुके हैं!जिनकी धमक से पूरा भोपाल और हिंदुस्तान गूंज रहा है!और बाकी भी अपनी चमक बिखेरने को व्याकुल है!सभी पाँचवे वेद की सेवा के लिए कमर कस चुके है!ये सभी नित नई-नई ऊचाइयों को छूकर अपने क़दमों को आगे बढाते रहें!संसार के तिमिर को चीरने वाले ज्ञान के दिव्य दीपक बनें!
कहते है "चिराग तले अँधेरा"
लेकिन ये सभी उस चिराग के नीचे के तम् को दूर करेंगे,ऐसी इनसे अपेक्षा!
खैर जीव में पाना और खोना तो लगा ही रहता है,लेकिन कठिन परिस्थितियों में भी अपने कर्त्तव्य पथ से न डिग कर मानव मात्र की सेवा करें!क्यों कि किसी ने कहा है
"कुछ खोना है कुछ पाना है
जीवन का खेल पुराना है
जब तक ये सांस चलेगी
यारा यूँ ही चलते जाना है"
सभी अपना प्रकाश पूरे हिन्दुस्तान में फैलाएं,इनकी प्रखर रश्मियों से सारा जग आलोकित हो,ऐसी हमारी आशा है!सभी पुरे संसार में बिखर जाएँ,ऐसा में इसलिए कह रहा हूँ क्यों कि मुझे महात्मा बुद्ध कि कहानी याद आ गयी!
"एक बार महात्मा बुद्ध एक गाँव में पहुचे!वहां के लोगों ने उनको गालियाँ दी,उनका अनादर किया!जाते समय भगवान् बुद्ध ने कहा-संगठित रहो!फिर दुसरे गाँव में पहुचे वहां के लोगों ने उनका आदर सत्कार किया,अच्छे लोग थे,रहने खाने की व्यवस्था की!चलते समय भगवान् ने कहा की पुरे विश्व में फ़ैल जाओ!यह सुनकर उनका एक शिष्य नाराज हो गया!भगवान् समझ गए!उन्होंने कहा कि एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है,मैंने ख़राब लोगों को इसलिए संगठित होने कहा जिससे दूसरे लोग उनसे प्रभावित न हो पायें और अच्छे लोगों को इसलिए बिखरने को कहा जिससे वे अपना प्रकाश सारे विश्व में फैला सकें!
यही मेरी हार्दिक इच्छा!
पत्रकारिता के क्षेत्र में पहला कदम रखने के लिए सभी लोगों को मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनायें!
खैर आप लोगों से बिछुड़ने का दुःख हमेशा महसूस होगा,क्यों कि आप हमारे सीनियर ही नहीं बड़े भाई भी हैं,लेकिन कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है!इसलिए बस अपनी क्षत्र छाया सदा बनायें रखे,और जीवन के हर कदम पर हिमालय के उतुंग शिखर की भांति उचाइयां तय करें!बनाये अपनी नई राहें ......
इन्हीं शुभकामनाओं के साथ.............
-कृष्ण कुमार द्विवेदी
शनिवार, 14 मई 2011
ईद पर भी सवईयों में तेरी खुशबू नहीं होती
मंगलवार, 10 मई 2011
पूरी धरा जो साथ दे तो और बात है........
शर्मा जी, क्रिकेट और उनके बर्फ के गोले.......

शर्मा जी क्रिकेट का बड़ा शौक रखते है..... उनसे मेरी पहली मुलाकात वर्ल्ड कप के मैचो के दौरान हुई....उन दिनों देश वासी भारत की जीत के लिए जहाँ कामना किये जा रहे थे वही शर्मा जी ने टीम इंडिया के वर्ल्ड कप जीतने पर अपनी दुकान का सारा सामान तक फ्री कर दिया था.... मुकेश शर्मा वर्षो से भोपाल में आइस क्रीम बेचने का काम किया करते आ रहे है.... शादियों के मौसम में आप शर्मा जी की इस आइस क्रीम का लुफ्त उठाये बिना नही रह सकते॥ हमारे बोट हाउस वाले शर्मा जी भी अपनी आइस क्रीम की सेवा शादियों के सदाबहार मौसम में दिया करते है.....
शर्मा जी की क्रिकेट की दीवानगी को देखकर मैं भी चौक गया .... बचपन में कभी मैं क्रिकेट का कीड़ा हुआ करता था..... लेकिन मैच फिक्सिंग के बाद मेरा खेल को लेकर लगाव ख़त्म सा हो गया .... लेकिन वर्ल्ड कप के मैचो को लेकर मेरा दीवानापन फिक्सिंग के बाद भी कम नही हुआ क्युकि पिता जी से लड़ झगड़कर एक कलर टीवी की व्यवस्था उस दौर में घर में करवा ली....शायद ये ८ साल पहले की बात होगी.... टी वी देखने पर घर वाले डांट दिया करते थे.....कहते थे पदाई लिखाई नही करनी है क्या? हर समय क्रिकेट क्रिकेट करते हो.... टी वी से चिपके रहते हो या हर समय पेपर पड़ते रहते हो .... दरअसल हमारे पूरे परिवार में पत्रकारिता को लेकर किसी के मन में उतना लगाव नही था... क्युकि उत्तराखंड जैसे राज्य में सेना के अलावा किसी फील्ड में बेहतर सम्भावना नही दिखती थी..... ...उस समय उम्र कच्ची थी इसी कारन अक्ल का कमजोर था... समझ नही पाया मेरे जैसे कई लोग है इस देश में जो क्रिकेट को लेकर उत्सुकता रखते है.... आज बड़ा होने पर जब शर्मा जी का शौक देखा तो अपने बचपन की यादो में कही खो सा गया........
शर्मा जी ने भारत की टीम के वर्ल्ड कप जीतने पर भोपाल वासियों को निशुल्क आईस क्रीम की सौगात देने की बात कही .....जिसे उन्होंने पूरा भी किया.... बोट क्लब में फ्री में खाने वालो की लाइन लग गई....मुकेश से जब मैंने बात की तो उसने बताया उसे बचपन से क्रिकेट का शौक है ....सचिन की टीम में खेलने की तमन्ना थी वह तमन्ना तो पूरी नही हो पायी अब क्रिकेट के नाम पर आईस क्रीम का कारोबार कर गुजर बरस कर रहा है ..... आई पी एल जैसी स्पर्धाओ में भी शर्मा जैसे क्रिकेट के शौकीनों का खवाब पूरा नही हो पाया....भले ही टीम इंडिया के लिए खेल नही पाये लेकीन आई पी एल के मैचो में अपना स्टाल लगाकर अपना शौक पूरा कर लेते.... 20- २० के दौर में जहाँ तमाशा क्रिकेट खेली जा रही हो वहां खिलाडियों की तो मंडियों में बोली लग रही है शर्मा जी की कोई पूछ होगी क्या ?
शर्मा १९८३ में भारत की टीम के जीत के नज़ारे को नही देख पाये लेकिन इस बार २८ साल के जीत को उन्होंने अपनी आखो के सामने देखा तो ख़ुशी के आंसू छलक आये.....जब युवराज सचिन अपने को नही रोक पाये तो भला शर्मा जी जैसे लोगो की क्या बिसात जिन्होंने अपने रोल मॉडल नायक के लिए आईस क्रीम के सेण्टर तक खोल डाले और उनके वर्ल्ड कप जीतने की ख़ुशी में सबको आईस क्रीम खिलवाये जा रहे थे.....
मुझे भी शर्मा जी ने अपनी दुकान से उस दिन आईस क्रीम खिलवायी.....इस आईस क्रीम की याद और क्रिकेट के प्रति ऐसे जूनून को कभी नही भूल पाऊंगा .....कम से कम जब तक भोपाल में हूँ और झील की छठा का आनंद लूँगा तब तक शर्मा जी की याद मेरे जेहन में बसी रहेगी .... ये अलग बात है ललित के साथ देहरादून की गलियों में शर्मा जी की मिठास वाली आईस क्रीम अपन को नसीब नही हो सकेगी ......साथ ही शब्बन चौराहे और लिली टाकीज के पास मिलने वाले केले और पपीते मुझे नसीब नही हो पाएंगे .....हाँ हरिद्वार में गंगा के घाट पर आध्यात्मिक शांति जरुर मिलेगी.......
वर्ल्ड कप जीतने के बाद जब भी शर्मा जी के ढाबे में जाता हूँ तो वह बड़ी आत्मीयता से आज भी मुझे आईस क्रीम और कोल्ड ड्रिंक पिलाते है .....बदले में जब रुपये देता हू तो लेने से इनकार कर देते है.... शर्मा जी की इस कहानी तो मैंने सभी समाचार चैनलों और पेपरों में पहुचाने की कोशिश की .... एक आध चैनलों को छोड़कर किसी ने उनकी खबर नही चलायी......
दरअसल हमारा मीडिया भी बिकाऊ हो गया है..... अपना विवेक ठीक कहता है पेड़ न्यूज़ का जमाना है......जनसरोकारो वाली पत्रकारिता नही हो रही है......राखी सावंत की चुम्मा चाटी और हसी के रसगुल्लों वाली पत्रकारिता आज हो रही है .....ऐसे में शर्मा जी की खबर को सुर्खिया नही मिल पाती है ..... लेकिन इन सब के बाद भी शर्मा जी के मन में किसी तरह की निराशा नही है... कुछ लोग होते है जिन्हें प्रचार की जरुरत होती है परन्तु कुछ ऐसे होते है जो प्रचार प्रसार माध्यमो के मोहताज नही होते ... वह अपना काम बेरोकटोक करते रहते है.... शर्मा जी की इसी अदा का मै कायल हो गया हूँ ..........मीडिया को कवरेज के लिए प्रलोभन देने वाले लोगो को शर्मा जी से आज प्रेरणा लेने की जरुरत है........
सोमवार, 9 मई 2011
माँ....... तेरी ऊँगली पकड़ के चला ....

माँ... तेरी ऊँगली पकड़ कर चला ------
ललित कुमार कुचालिया..... (देहरादून )
शुक्रवार, 6 मई 2011
क्लिक ..क्लिक ..क्लिक ......
वीभत्स सच देखना हम लोगो ने छोड़ दिया हैं...
दरअसल नए ज़माने
(रांची में घटी यह घटना को कुछ दिन हुए हैं)