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सोमवार, 2 अगस्त 2010

यायावर



आशुतोष शुक्ला के द्वारा ये कविता लिखी गयी है ....
दृश्य श्रव्य अध्यन केंद्र में प्रसारण पत्रकारिता के तृतीय समेस्टर के छात्र हैं .......
मेरे द्वारा लिखी हुई ये कविता किसी साहित्यिक योगदान के लिए हीं है , अपितु केवल एक भावना ैदा करती हैउस व्यक्ति में जो    माम तरह की बुराइयों में फंस कर अपने मूल लक्ष्य से भटक गया हो और एक आवाज़ चाहता होजो उसे नींद से जगा दे ...........

'
ये कविता एक आवाज़ है'.............

यायावर था मै कभी ,

ठहर गया हूँ अभी अभी

जैसे बाँध के सामने रुक जाती है कोई नदी ,

कुछ क्लेश था मन में बचा अभी

क्यों बंध सीमा में गया अभी

सत्यान्वेषण की राह में बाधाएं आती है कितनी

यह ज्ञात हुआ है मुझे अभी

मुझको दिखता है सत्यांश उस बंधन के कोने से कही

मुझमे दृढ़ता मुझमे भुजबल मुझ में नवयौवन का प्रवाह ,

मै भरा हुआ उत्साह से था उस बंधन ने जाना अभी

यह बंधन कुटिल बेड़ियों का लालच की जिसमे गाँठ पड़ी

जब मैंने वहां प्रहार किया बंधन टूटे गांठे जा उडी

फिर चल पड़ा मै उधर

जिसको लक्ष्य बनाया था कभी

तोड़ के साड़ी सीमओं को निकल पड़ा हूँ अभी अभी

यायावर हूँ मै अभी .....................

यायावर हूँ मै अभी ...............................

रविवार, 1 अगस्त 2010

ये दोस्ती दिवस या फिर कोई और दिवस ...जरा सोचये..............


दोस्ती दिवस यानि फ़्रेन्डशिप डे.... दोस्तों इन दिनों मेरा देहरादून किसी काम से आना हुआ है ॥ ०१ अगस्त कों मेरे परम मित्र विवेक मिश्रा का सुबह -सुबह मेरे पास फोन आया....... और उसने sidhe -sidhe मुझे फोन पर दोस्ती divas की बधाई de dali और कहा मित्र आपको फ्रेंडशिप डे की लख लख बधाईया एक बार तो में सोच में पड गया की मेरा मित्र किस लिए मुझे बधाई दे रहा है। जब उसने कहा मित्र आज आज दोस्ती दिवस है । इस लिए आपको बधाई दे रहा हूँ । ..... क्या आपको नहीं पता आज फ्रेंडशिप डे है ........? मैंने कहा नहीं तो ।........................ फिर मैंने उसको सीधे- सीधे बताया की मित्र देखो एक दिन के लिए फ्रेंडशिप डे कह देने से लोग सदा के लिए दोस्त नहीं बनते दोस्ती होती है तो बस दिल से ............ अगर आपके लिए किसी के प्रति ज़रा सा भी प्रेम , इसनेह , दया , जैसी भावना है तभी आपकी दोस्ती आगे बढ़ सकती है .................

.........खेर .... मैंने मदर डे, फादर डे, किस्सडे, रोज़ डे। परेंट्स डे ...................... इन सभी के बारे मैंने अक्सर सुना है पर इस फ्रेंडशिप डे कों पहिले बार सुना (मेरे लिए तो पहिले बार लेकिन ओरो के लिए शायद कितने ही बार हो ..........)मुझे नहीं पता मेरे भारत में कितने दिवस रोज़ मनाये जाते है... जैसे १ अगस्त कों मेरा किसे काम से सिटी के अंदर जाना हुआ तो तो मैंने देखा शहर की तमाम सिटी बसों में नव युवक जोड़ो की भीड़ देखने कों मिली, साथ ही साथ शहर की तमाम दुकाने और रेस्टोरेंट कों सजते हुए देखा गया । जंहा पर हर नव युवक अपनी महिला मित्र के लिए हैण्डबैंड और फूल जैसी चीज़े खरीदते हुए दिखाई पड़े ............परेड ग्राउंड (देहरादून ) के पास गाँधी पार्क आज इन लोगो के लिए ये मीटिंग पॉइंट बना हुआ था । जब में इस गार्डन में गया तो मैंने देखा की park के हर एक में नव युवक अपनी महिला मित्र कों लेकर बेठे थे ..............पार्क की ऐसी कोई भी भी जंगह नहीं थी जंहा पर में बेठ सकता ..... लेकिन मेरे बेठने के लिए वह पर जंगह नहीं थी । देहरादून का गाँधी पार्क शहर का सबसे बड़ा पार्क माना जाता है। अब इस बात से अंदाज़ा लगा सकते है की की पार्क में कितनी भीड़ होगी और बगीचे के अंदर नव युवक जोड़ो की चहल कदमी करते हुए देखे गया । एक दुसरे से बात करके कहते की आप बहुत ही अच्छे हो। तो कोई कहता की आप मेरा ज़िन्दगी भर साथ दोगी न इस परकार के तमाम वाकये सुनने कों मिले ............. लेकिन मेरे भारत की इस यंग ब्लड जेनरेसन कों आखिर हो क्या गया .... जो देश की संस्क्रती कों डूबने पर तुली है .... अगर उनमे से में किसे ये पूछ लेता की देश में कुछ चले रहा है तो शायद ही कोई बता पाता .... लेकिन नहीं वेस्टर्न कल्चर कों आगे बढ़ने में लगे हुए है .......... देहरादून में मेने यंहा के युवको में एक अलग सा ट्रेंड देखा जो मैंने भोपाल में भी नहीं देखा .........भारतीय कल्चर की धजजी उड़ाते ये युवक क्या आपनी साख बचा पाएंगे या फिर प्रेम की चाह रखने वाले ये युवक डिप्रेसन का शिकार होंगे बिलकुल हमारे दोस्त सनसनी की तरह ? इन का भविष्य क्या होगा कहना मुश्किल है ................ मेरे नज़र जब वंहा पर बेठे गेर महिला मित्र युवको पर गयी तो मैंने पाया की ये युवक अपनी मानसिकता के साथ गुना भाग लगा रहे थे .....

शनिवार, 31 जुलाई 2010

अज्ञातवास में जॉर्ज..........................




"कोई हम दम ना रहा .....

कोई सहारा ना रहा......................

हम किसी के ना रहे ...........

कोई हमारा ना रहा........................

शाम तन्हाई की है .........

आएगी मंजिल कैसे.........

जो मुझे राह दिखाए.......

वही तारा ना रहा ...............

क्या बताऊ मैं कहाँ............

यू ही चला जाता हू.......

जो मुझे फिर से बुला ले..........

वो इशारा ना रहा........."
झुमरू की याद जेहन में आ रही है ............. मजरूह सुल्तानपुरी और किशोर की गायकी इस गाने में चार चाँद लगा देती है........... पुराने गीतों के बारे में प्रायः कहा जाता है "ओल्ड इस गोल्ड ".......इसका सही से पता अब चल रहा है............ ७० के दशक की राजनीती के सबसे बड़े महानायक पर यह जुमला फिट बैठ रहा है........ कभी ट्रेड यूनियनों के आंदोलनों के अगवा रहे जार्ज की कहानी जीवन के अंतिम समय में ऐसी हो जायेगी , ऐसी कल्पना शायद किसी ने नही की होगी.......कभी समाजवाद का झंडा बुलंद करने वाला यह शेर आज बीमार पड़ा है ....वह खुद अपने साथियो को नही पहचान पा रहा ......यह बीमारी संपत्ति विवाद में एक बड़ा अवरोध बन गयी है..........."प्रशांत झा" मेरे सीनियर है.........अभी मध्य प्रदेश के नम्बर १ समाचार पत्र से जुड़े है........... बिहार के मुज्जफरपुर से वह ताल्लुक रखते है ......... जब भी उनसे मेरी मुलाकात होती है तो खुद के हाल चाल कम राजनीती के मैदान के हाल चाल ज्यादा लिया करता हूँ ....... एक बार हम दोनों की मुलाक़ात में मुजफ्फरपुर आ गया ... देश की राजनीती का असली बैरोमीटर यही मुजफ्फरपुर बीते कुछ वर्षो से हुआ करता था....... पिछले लोक सभा चुनावो में यह सिलसिला टूट गया...... यहाँ से जार्ज फर्नांडीज चुनाव लड़ा करते थे..... लेकिन १५ वी लोक सभा में उनका पत्ता कट गया.....नीतीश और शरद यादव ने उनको टिकट देने से साफ़ मन कर दिया........... इसके बाद यह संसदीय इलाका पूरे देश में चर्चा में आ गया था... नीतीश ने तो साफ़ कह दिया था अगर जार्ज यहाँ से चुनाव लड़ते है तो वह चुनाव लड़कर अपनी भद करवाएंगे......... पर जार्ज कहाँ मानते? उन्होंने निर्दलीय चुनाव में कूदने की ठान ली....... आखिरकार इस बार उनकी नही चल पायी और उनको पराजय का मुह देखना पड़ा........... इन परिणामो को लेकर मेरा मन शुरू से आशंकित था...... इस चुनाव के विषय में प्रशांत जी से अक्सर बात हुआ करती थी..... वह कहा करते थे जार्ज के चलते मुजफ्फरपुर में विकास कार्य तेजी से हुए है... लेकिन निर्दलीय मैदान में उतरने से उनकी राह आसान नही हो सकती ...उनका आकलन सही निकला ... जार्ज को हार का मुह देखना पड़ा.... हाँ ,यह अलग बात है इसके बाद भी शरद और नीतीश की जोड़ी ने उनको राज्य सभा के जरिये बेक दूर से इंट्री दिलवा दी .........आज वही जार्ज अस्वस्थ है...... अल्जायीमार्स से पीड़ित है........ उनकी संपत्ति को लेकर विवाद इस बार तेज हो गया है..... पर दुःख की बात यह है इस मामले को मीडिया नही उठा रहा है.... जार्ज को भी शायद इस बात का पता नही होगा , कभी भविष्य में उनकी संपत्ति पर कई लोग अपनी गिद्ध दृष्टी लगाए बैठे होंगे..... पर हो तो ऐसा ही रहा है.... जार्ज असहाय है... बीमारी भी ऐसी लगी है कि वह किसी को पहचान नही सकते ... ना बात कर पाते है...... शायद इसी का फायदा कुछ लोग उठाना चाहते है.......कहते है पैसा ऐसी चीज है जो विवादों को खड़ा करती है.......... जार्ज मामले में भी यही हो रहा है.... उनकी पहली पत्नी लैला के आने से कहानी में नया मोड़ आ गया है.... वह अपनेबेटे को साथ लेकर आई है जो जार्ज के स्वास्थ्य लाभ की कामना कर रही है... बताया जाता है जार्ज की पहली पत्नी लैला पिछले २५ सालो से उनके साथ नही रह रही है.... वह इसी साल नए वर्ष में उनके साथ बिगड़े स्वास्थ्य का हवाला देकर चली आई..... यहाँ पर यह बताते चले जार्ज और लैला के बीच किसी तरह का तलाक भी नही हुआ है...अभी तक जार्ज की निकटता जया जेटली के साथ थी....वह इस बीमारी में भी उनकी मदद को आगे आई और उनके इलाज की व्यवस्था करने में जुटी थी पर अचानक शान और लैला के आगमन ने उनका अमन ले लिया .... जैसे ही जार्ज को इलाज के लिए ले जाया गया वैसे ही बेटे और माँ की इंट्री मनमोहन देसाई के सेट पर हो गयी ..... लैला का आरोप है जार्ज मेरा है तो वही जया का कहना है इतने सालो से वह उनके साथ नही है लिहाजा जार्ज पर पहला हक़ उनका बनता है.... अब बड़ा सवाल यह है कि दोनों में कौन संपत्ति का असली हकदार है...?जार्ज के पेंच को समझने ले लिए हमको ५० के दशक की तरफ रुख करना होगा.... यही वह दौर था जब उन्होंने कर्नाटक की धरती को अपने जन्म से पवित्र कर दिया था॥3 जून 1930 को जान और एलिस फर्नांडीज के घर उनका जन्म मंगलौर में हुआ था.....५० के दशक में एक मजदूर नेता के तौर पर उन्होंने अपना परचम महाराष्ट्र की राजनीती में लहराया ... यही वह दौर था जब उनकी राजनीती परवान पर गयी ......कहा तो यहाँ तक जाता है हिंदी फिल्मो के "ट्रेजिडी किंग " दिलीप कुमार को उनसे बहुत प्रेरणा मिला करती थी अपनी फिल्मो की शूटिंग से पहले वह जार्ज कि सभाओ में जाकर अपने को तैयार करते थे... जार्ज को असली पहचान उस समय मिली जब १९६७ में उन्होंने मुंबई में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता एस के पाटिल को पराजित कर दिया ... लोक सभा में पाटिल जैसे बड़े नेता को हराकर उन्होंने उस समय लोक सभा में दस्तक दी ... इस जीत ने जार्ज को नायक बना दिया... बाद में अपने समाजवाद का झंडा बुलंद करते हुए १९७४ में वह रेलवे संघ के मुखिया बना दिए गए...उस समय उनकी ताकत को देखकर तत्कालीन सरकार के भी होश उड़ गए थे... जार्ज जब सामने हड़ताल के नेतृत्व के लिए आगे आते थे तो उनको सुनने के लिए मजदूर कामगारों की टोली से सड़के जाम हो जाया करती थी....आपातकाल के दौरान उन्होंने मुजफ्फरपुर की जेल से अपना नामांकन भरा और जेपीका समर्थन किया॥ तब जॉर्ज के पोस्टर मुजफ्फरपुर के हर घर में लगा करते थे ... लोग उनके लिए मन्नते माँगा करते थे और कहा करते थे जेल का ताला टूटेगा हमारा जॉर्ज छूटेगा... १९७७ में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उनको उद्योग मंत्री बनाया गया... उस समय उनके मंत्रालय में जया जेटली के पति अशोक जेटली हुआ करते थे ... उसी समय उनकी जया जेटली से पहचान हुई ...बाद में यह दोस्ती में बदल गयी और वे उनके साथ रहने लगी....हालाँकि लैला कबीर उनकी जिन्दगी में उस समय आ गयी थी जब वह मुम्बई में संघर्ष कर रहे थे...तभी उनकी मुलाकात तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री हुमायु कबीर की पुत्री लैला कबीर से हुई जो उस समय समाज सेवा से जुडी हुई थी... लैला के पास नर्सिंग का डिप्लोमा था और वह इसी में अपना करियर बनाना चाहती थी ...बताया जाता है तब जार्ज ने उनकी मदद की...उनके साथ यही निकटता प्रेम सम्बन्ध में बदल गयी और २१ जुलाई १९७१ को वे परिणय सूत्र में बढ़ गए...इसके बाद कुछ वर्षो तक दोनों के बीच सब कुछ ठीक चला...परन्तु जैसे ही जॉर्ज मोरार जी की सरकार में उद्योग मंत्री बनाये गए तो लैला जॉर्ज से दूर होती गई... जॉर्ज अपने निजी सचिव अशोक जेटली कि पत्नी जया जेटली के ज्यादा निकट चली गई... इस प्रेम को देखते हुए लैला ने अपने को जॉर्ज से दूर कर लिया और ३१ अक्तूबर १९८४ से दोनों अलग अलग रहने लगे..इसके बाद लैला दिल्ली के पंचशील पार्क में रहने लगी वही जॉर्ज कृष्ण मेनन मार्ग में...अब इस साल की शुरुवात से संपत्ति को लेकर विवाद गरमा गया है..इसे पाने के लिए जया और लैला जोर लगा रहे है..चुनावो के दौरान जॉर्ज द्वारा दी गयी जानकारी के मुताबिक वह करोडो के स्वामी है जिनके पास मुम्बई , हुबली, दिल्ली में करोड़ो की संपत्ति है..यहीं नही मुम्बई के एक बैंक में उनके शेयरों की कीमत भी अब काफी हो चुकी है... ऐसे में संपत्ति को लेकर विवाद होना तो लाजमी ही है.. जॉर्ज के समर्थको का कहना है जया ने उनको जॉर्ज की संपत्ति से दूर कर दिया है...वही वे ये भी मानते है जया ने उनका भरपूर इस्तेमाल अपने फायदे के लिए किया ...सूत्र तो यहाँ तक बताते है कि जया के द्वारा जॉर्ज की संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा झटक लिया गया है..२००९ में खुद जॉर्ज ने अपनी पोवार ऑफ़ अटोर्नी में इस बात का जिक्र किया है...वही जया ने लैला पर जबरन घर में घुसकर जॉर्ज के दस्तावेजो में हेर फेर के आरोप लगा भी जड़ दिए है..यही नही जया का कहना है उन्हें जॉर्ज के गिरते स्वास्थ्य की बिलकुल भी चिंता नही है..वही लैला और उनके बेटे सुशांत कबीर का कहना है वे जॉर्ज के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है तभी वे हर पल उनके साथ है चाहे पतंजलि योगपीठ ले जाते समय कि बात हो या चाहे उनके गिरते स्वास्थ्य के समय की बात वे हर पल उनके साथ बने है॥जया के समर्थको का कहना है संपत्ति हड़पने के आरोप लैला के द्वारा लगाये जाने सही नही है..अगर उन्हें गिरते स्वास्थ्य की थोड़ी से भी चिंता होती तो उन्हें देखने इस साल नही आती जब जॉर्ज बीमार हुए ...लैला भी कम नही है वे भी संपत्ति पर नजर लगाये बैठी है..वैसे इस कहानी का एक पक्ष ये भी है की जया ने जॉर्ज का इस्तेमाल करना बखूबी सीखा है तभी उन्ही के कारन जॉर्ज की छवि कई बार धूमिल भी हुई है..जैसे रक्षा सौदों में दलाली से लेकर तहलका में उनके दामन पर दाग लगाने में जया की बड़ी भूमिका रही है..यही नही जॉर्ज को मुजफ्फर पुर से लड़ने की रणनीति भी खुद जया की थी..इस हार के बाद उनको राज्य सभा में भेजने की कोई जरुरत नही थी...वैसे भी जॉर्ज कहा करते थे समाजवादी कभी राज्य सबह के रास्ते "इंट्री" नही करते..इन सब बातो के बावजूद भी उनका राज्य सभा जाना कई सवालों को जन्म देता है....यही नही शरद नीतीश की जोड़ी का हाथ पकड़कर उनको राज्य सभा पहुचाना उनकी छवि पर ग्रहण लगाता है.. आखिर एका एक उनका मूड कैसे बदल गया ये फैसला कोई गले नही उतार पा रहा है..इसमें भी जया की भूमिका संदेहास्पद लगती है॥बहरहाल जो भी हो आज जॉर्ज सरीखा शेर खुद दो पाटन के बीच फसकर रह गया है...जंग जारी है संपत्ति को लेकर विवाद अभी भी गरम है..जॉर्ज तो एक बहाना है॥ देखना होगा इस नूराकुश्ती में कौन विजयी होता है...? लैला कबीर के लिए राहत की बात ये है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने उनको अपने साथ रखने की अनुमति दे दी है... वैसे इससे ज्यादा अहम् बात जॉर्ज का गिरता स्वास्थ्य है जिसकी चिंता किसी को नही है॥ लेकिन"पैसा " एक ऐसी चीज है जो झगड़ो का कारन बनती है ये कहानी जॉर्ज की नही , कहानी घर घर की है.............देखना होगा ये कहानी किस ओर जाती है?
(हर्षवर्धन पाण्डे युवा पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है...समसामयिक विषयो पर लेखन लम्बे समय से करते आ रहे है... आप इनके विचारो को "बोलती कलम ब्लॉग"पर भी पढ़ सकते है)

रविवार, 18 जुलाई 2010

ऑस्ट्रेलिया में अभी भी जारी है नस्लवाद.........

गौर से देखिये इन तस्वीरो को.....एक चित्र हजार शब्द कहता है...इस फोटो को देखकर आप भी अनुमान लगा सकते है....दिमाग पर ज्यादा जोर नही डालना पड़ेगा.... क्युकि ये पहेली नही है.... ये तस्वीर है जयंत डागोर की , जो खुद ही आप बीती बता रही है... बायी तरफ लिखा है ऑस्ट्रेलिया में न्याय कहाँ है तो दाई ओर जयंत जिस बोर्ड को पकडे है उस पर लिखा है आखिर कब तक ऑस्ट्रेलियन सिस्टम से लड़ा जाए....?
ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों को न्याय नही मिल रहा है.... वहां की सरकार के लाख दावो के बाद भी भारतीयों के साथ नस्लभेद जारी है... अगर सब कुछ सामान्य होता तो आज जयंत जैसे लोगो को अपनी आप बीती सुनाने के लिए भारतीय मीडिया का सहारा नही लेना पड़ता..... जयंत की पत्नी अन्ना मारिया भी ऑस्ट्रेलियन मीडिया से त्रस्त है.... खुद उनकी माने तो वहां नस्लभेद किया जाता है मीडिया को भी वैसी आज़ादी नही है जैसी भारतीय मीडिया में है .... वैसे भारतीय मीडिया को दाद देनी चाहिए.... खासतौर से खबरिया चैनलों को जो हर घटना के पीछे हाथ धोकर पड़ जाते है.... फिर आज का समय ऐसा है कि हर व्यक्ति अपनी बात पहुचानेके लिए मीडिया का सहारा लेने लगता है.... जयंत भी यही कर रहे है.... भारतीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया का डंका पूरे विश्व में बजने लगा है.... अप्रवासी भारतीय भी अब इसके नाम का नगाड़ा बजाने लगे है... जयंत और उनकी पत्नी अन्ना से मिलकर तो कम से कम ऐसा ही लगा... ऑस्ट्रेलियाई मीडिया जब उनकी एक सुनने को तैयार नही हुआ तो जयंत और उनकी
पत्नी अन्ना भोपाल पहुचे जहाँ मीडिया के सामने अपनी व्यथा को रखा ....
जयंत डागोर 1998 से ऑस्ट्रेलियन नागरिक है...1989 में अपने जुडवा भाई आनंद की साथ मिलकर उन्होंने ऑस्ट्रेलिया जाने के लिए वीजा आवेदन दिया तो उनके भाई आनंद का वीजा एक्सेप्ट कर लिया गया लेकिन उन्हें वीजा नही मिल पाया..जबकि दोनों भाईयो ने नई दिल्ली के पूसा केटरिंग कोलेज से होटल मेनेजमेंट की डिग्री प्राप्त की थी.. 1990में जयंत के भाई ने आनंद को भाई के नाते स्पोंसर किया लेकिन उसके बाद भी ऑस्ट्रेलियन हाई कमीशन ने उसका वीजा एक्सेप्ट नही किया... इसके बाद लगातार चार बार यही सिलसिला चलता रहा... जयंत के आवेदन को एक्सेप्ट नही किया गया... आख़िरकार एक लम्बी लडाई लड़ने की बाद जयंत1996 में परमानेंट शैफ का वीजा लेकर ऑस्ट्रेलिया चले गए...
1998 में जयंत तो ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता मिल गई..1999में जयंत मेलबर्न के एक होटल में शैफ काम करने लगे... यहाँ पर एक सीनियर शैफ माईकल उन्हें भारतीय होने के नाते परेशान करने लगा.... जिसकी शिकायत उन्होंने एच आर मैनेजर से की जिसके बाद उसे जरुरत से ज्यादा काम करवाया जाने लगा...जिसके चलते जयंत को "कार्पल टनल " की बीमारी हो गई जिसके इलाज में जयंत को एक बड़ी रकम खर्च करनी पड़ी...इसके बाद जयंत फिर जब काम पर लौटा तो डाक्टर की सलाह को अनदेखा करते हुए माईकल उससे फिर पहले से ज्यादा काम लेने लगा...जिससे जयंत के हाथो में दर्द होने लगा...और डॉक्टर ने जयंत को फिर से अनफिट घोषित कर दिया... इसी बीच माईकल ने एक दिन जयंत के ऊपर "फ्रोजन चिकन" का बड़ा बक्सा फैक दिया जिससे जयंत के गर्दन और सीने में गंभीर चोट आ गई..इस पूरी घटना की गवाह उनकी महिला सहकर्मी रेचल सीजर बनी... इस सबके बाद भी मेनेजर ने जयंत की एक नही सुनी.... कारण वह भारतीय थे...चौकाने वाली बात यह है जब यही व्यवहार माईकल ने एक ऑस्ट्रेलियन नागरिक के साथ किया तो माईकल को नौकरी से निकाल दिया गया॥ जयंत अपनी लडाई पिछले २१ सालो से लड़ रहे है लेकिन उनको कोई न्याय नही मिल पाया है... यहाँ तक कि ऑस्ट्रेलिया के मीडिया ने भी उनकी एक नही सुनी जिसके चलते उनको अपनी बात भारतीय मीडिया से कहनी पड़ रही है... आज जयंत इतने परेशान हो गए है कि उन्हें अब अमेनेस्टी , ह्युमन राईट जैसी संस्थाओ पर भी भरोसा नही रहा... जयंत कहते है कि ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों के साथ नस्लभेद जारी है..लेकिन भारतीय सरकार भी इस मामले में पूरी तरह से दोषी है क्युकि उसके मंत्रियो के पास भी उनकी समस्या को सुनने तक का समय नही है.... इसलिए वह अपनी बात भारतीय मीडिया के सामने लाना चाहते है ताकि ऑस्ट्रेलिया की सरकार का असली चेहरा सभी के सामने आ सके....

(हर्षवर्धन पाण्डे युवा पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है...समसामयिक विषयो पर लेखन लम्बे समय से करते आ रहे है... आप इनके विचारो को "बोलती कलम ब्लॉग"पर भी पढ़ सकते है)

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

बंगाल के राजनीती में मुहिमो का दौर

बंगाल में विधान सभा चुनाव नजदीक हैं,सत्ता धरी दल इनदिनों खुद के नीतिओ को पाक साफ करार करने में मशगुल हैं और बंगाल के आवाम को ये सन्देश देने में लगे हैं की हम कल भी काम करते थे और आज भी कर रहे हैं. लेकिन ममता दीदी ने केन्द्रीय प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए , हर दिन एक नया मुहीम छेड़ रही हैं .ममता का गंगा तट खुबसूरत बनाओ योजना इनदिनों बंगाल के लोगो को खूब रस आरही हैं.पुरे कोल्कता शहर में कुल ४८ गंगा तट हैं जिन्मेसे २ कोल्कता पोर्ट ट्रस्ट के देख रेख में हैं और शेस बचे तट नगर निगम के पास हैं,यैसे में ममता ने अपनी बुद्धिमता का इस्तमाल कर इस वर्ल्ड क्लास पर्यटन का केंद्र और आय का केंद्र बनाने की कही . इसी मुहीम को ले कर एक सभा हुआ जिसमें ममता ने कहा हैं की यदि वो आगामी चुनाव में जीतती हैं तो वो कोल्कता को लोंदन में तब्दील कर देगी .खैर कोल्कता लोम्दन बने या नहीं पर ये साफ हो गया हैं की टी .एम्। .सी .......धर दबोचो दुसमन को की योजना बना कर युवाओ को एक कर काम करना शुरू कर चुकी हैं......ये खबरे हैं बंगाल से आपके साथी प्रकाश के साथ देश केदुसरे भागो की खबरों के लिए हमारी टीम के साथ कैब्स टुडे पर बने रही ये नमस्कार इजाजत दीजिये............

गुरुवार, 15 जुलाई 2010

'डांस में ही रची बसी है जिन्दगी: संदीप सोपारकर'

विश्व प्रसिद्ध कोरियोग्राफर और "डांस इंडिया डांस" के जज संदीप सोपारकर एक बहुत बड़ा नाम है...संदीप एक ट्रेंड जर्मन बालरूम डांस टीचर होने के साथ साथ ऐसे पहले भारतीय है जिन्होंने "बाल रूम डांस टीचर्स ट्रेनिंग स्कूल "से सर्टिफिकेट प्राप्त किया है...संदीप को हर प्रकार के लातिन अमेरिकी और स्टैण्डर्ड बाल रूम डांस में विशेषज्ञता हासिल है..उन्होंने पूरे विश्व में "इम्पिरिअल सोसाइटी ऑफ़ टीचर्स ऑफ़ डांसिंग " में चौथा स्थान पाया है..संदीप के छात्रों में भारत सहित विश्व की नामी गिरामी हस्तिया शामिल है जिनमे ब्रिटनी स्पीयर्स ,मेडोना,गाय रिची, शकीरा, बियोंसे, आदि सभी ने वाल्ट्ज, चा_चा , टेंगो और पैसो जैसे डांस के लिए संदीप से डांस सीखा है..उनकी इस लिस्ट में कुवैत के शाही परिवार के सदस्य भी शामिल है जिन्हें उन्होंने क्लासिकल बाल रूम डांस सिखाया है॥हाल ही में अन्तराष्ट्रीय डांस स्पोर्ट्स संस्था ने पहली बार बाल रूम डांस को इस प्रतियोगिता में शामिल किया है...और इसमें भारत की एकमात्र फेकल्टी संदीप है... भारतीय फिल्म कलाकारों में काजोल, सोनम कपूर, अमीषा पटेल, फरहा खान, सोनाली बेंद्रे , तब्बू, पूजा बेदी जैसी कई अभिनेत्रियों के नाम शामिल है जिनको संदीप ने डांसिंग स्टेप सिखाये है..इसके अलावा संदीप के बाल रूम स्टूडियो की देश भर में कई ब्रांचे है जो मुंबई, पुणे, सूरत जैसे शहर शामिल है...कुछ समय पहले सालसा ट्रेनिंग की एक कार्यशाला में भाग लेने आये संदीप से हर्षवर्धन पाण्डे ने बात की ... प्रस्तुत है इसके मुख्य अंश:

1 भोपाल आना इससे पहले भी हुआ है क्या? यहाँ से गहरे लगाव की कोई खास वजह ?
उत्तर - डांस क्लास के लिए भोपाल आना पहली बार हुआ है... लेकिन भोपाल मेरे लिए नया नही है...इस शहर से मेरा पुराना नाता रहा है...यहाँ पर मेरा ननिहाल रहा है ...मेरे पिता जी आर्मी में थे...ऐसे में भोपाल में उनकी पोस्टिंग होने के चलते काफी समय उनका यहाँ पर बीता... साथ ही मेरी नानी माँ का घर भी यही पर है..इसीलिए मैं खुद को भोपाली मानता हूँ।
भोपाल में डांस को लेकर बच्चो में कैसा क्रेज है?
उत्तर - हाँ के बच्चो में खासा क्रेज है ... यहाँ के बच्चो में डांस को लेकर मैं काफी टेलेंट देखता हूँ...यहाँ के बच्चे रियेलिटी शो में हिस्सा भी ले रहे है...वे क्लासिकल डांस को एक्सेप्ट भी कर रहे है...ये काफी बड़ी बात है ... क्युकि आम तौर पर बच्चे हिप होप या वेस्टर्न डांस करना पसंद करते है
संदीप क्या आपको बचपन से ही शौक था कि आप एक दिन डांसर ही बनेंगे?
उत्तर - मैंने डांस को शुरू से हौबी की तरह देखा ....कभी प्रोफेशन के तौर पर अपनाने की नही सोची। 12 साल की उम्र से डांस करना शुरू किया ... उस समय में आर्मी क्लब में डांस करता था... होटल मेनेजमेंट के कोर्स के बाद मैंने ऍम बी ऐ किया और जॉब भी की लेकिन दिल के किसी कोने में डांस ही बसा था... ऐसे में 1996 में जर्मनी में डांस की प्रोफेशनल ट्रेनिंग ली..और फिर तो कोरियोग्राफी को ही बतौर प्रोफेशन अपना लिया।
रिएलिटी शो के बारे में तरह तरह की बातें कही जाती है.... कोई कहता है इसमें प्रतिभाओ के साथ न्याय नही होता तो कोई कहता है ये सब शो पूर्व नियोजित होते है ... आप कहाँ तक इत्तेफाक रखते है इससे ?
उत्तर- रिएलिटी शो पूरी तरह से रियल होते है....इसमें कोई भी चीज लड़ना जजेज का डांस करने लगना पहले से तय नही होता...लेकिन रिएलिटी शो करियर बनाने के लिए उपयुक्त नही है..ये तो सिर्फ एक प्लेटफोर्म है जहाँ पर आपको खुद को एक्सप्रेस करने का मौका मिलता है॥ करियर के द्वार इससे नही खुलते उसके लिए खूब मेहनत करनी पड़ती है
5 बच्चो को डांस सिखाने और स्टार्स को डांस सिखाने में क्या अंतर नजर आता है आपको?
उत्तर- मेडोना, शकीरा, जैसे बड़े बड़े नाम अगर हो तो उन्हें सिखाने में मजा आता है लेकिन मुझे बच्चो को सिखाने में बहुत मजा आता है..बच्चो को सिखाना आसान होता है...वे कही से भी खुद को मोड़ लेते है...जबकि 35 साल के स्टार के साथ ये आसानी से नही हो सकता।
अभी तक के आपके अनुभव में सबसे बुरे और सबसे अच्छे डांसर कौन लगे?
उत्तर- सभी के साथ अलग अलग अनुभव रहे ...अभी तक के मेरे सफ़र में मनोज वाजपेयी मुझे सबसे बुरे लगे... मेरे लिए उनको डांस सिखाना सबसे बुरा लगा... मेरे लिए उनको डांस सिखाना काफी कठिन था...वही मल्लिका शेरावत काफी बेहतरीन डांसर है लेकिन उनकी इमेज सिर्फ एक सेक्स पर्सनालिटी की बन गयी है...डांस मामले में उनसे बेहतर आज तक उन्हें कोई नही लगा..वे हर स्टेप को बहुत जल्दी फोलो करती है।
7" काईट्स " आसमान में उडी लेकिन कुछ दिनों बाद बॉक्स ऑफिस में औधे मुह गिर गयी...आपके साथ कैसे रहे इसके अनुभव?

उत्तर- काइट्स मूवी फ्लॉप रही... लेकिन इस मूवी में मेरे द्वारा कोरियोग्राफ किये गए ऋतिक रोशन के डांस को ख़ासा सराहा गया॥ ऋतिक को "सालसा" आता था...इसलिए बाल रूम डांस सिखाने में मुझे उसके साथ ज्यादा मेहनत नही करनी पड़ी॥ उन्हें सिर्फ एक बार स्टेप करके दिखाना पड़ता था..वही कंगना ने तो डांस में वो कर दिखाया जो मैंने पहले कभी सोचा भी नही था... वो बहुत अच्छा डांस करती है ...बल्कि मुझको तो लगता है उन्हें बोलीवुड में एक डांस पर्सनालिटी की तरह से दिखना चाहिए ....अब वे अपनी पागलपन वाली इमेज से बहार आया जाए तो बेहतर रहेगा।
8 आने वाले समय में आपकी कौन कौन सी मूवी आ रही है...?
उत्तर- मेरी जल्द ही "साथ खून माफ़" आने वाली है...जिसमे मैंने प्रियंका चोपड़ा को एक डांस के लिए कोरियोग्राफ किया है...इस फिल्म में प्रियंका के सात पति होते है ... जिनका वो एक एक करके क़त्ल कर देती है..शायद इसी के चलते फिल्म का नाम सात खून माफ़ रखा गया है।
अंतिम सवाल संदीप , कभी ऐसा लगा कोरियोग्राफी का काम करते करते थकान हो गयी अब मुझको एक्टिंग के फील्ड में उतर जाना चाहिए?
उत्तर- एक्टिंग फील्ड ... ना बाबा ना... मेरी लिए डांस कोरियोग्राफी ही बेहतर है ...अभी एक्टिंग के फील्ड में आने की दूर दूर तक कोई संभावना नही है....... मेरी जिन्दगी डांस में ही रची बसी है।


(हर्षवर्धन पाण्डे युवा पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है...समसामयिक विषयो पर लेखन लम्बे समय से करते आ रहे है... आप इनके विचारो को "बोलती कलम ब्लॉग"पर भी पढ़ सकते है)

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

वोट बनाम विकास......


बिहार में इस साल के अंत में विधान सभा चुनाव होने है ... लेकिन राजनीतिक बिसात बिछनी शुरू हो गयी है और चुनावी गहमागहमी का पारा भी चदाहुआ है॥ राजनीतिक पार्टिया वोट बैंक की रणनीति बनाने में जुट गयी है ... बिहार में वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा दलितों और मुसलमानों का है ... कांग्रेस और राजद सरीखी पार्टिया तो अपने को इनका मसीहा बताने से किसी तरह का गुरेज नही करती....और राजद तो सालो दर साल इन्ही के दम पर सत्ता का स्वाद चखते रही है॥भले ही उसके राज में दलितों की स्थिति में कोई सुधार नही हुआ हो...जदयू के नेता नीतीश कुमार की भी अपनी छवि दलित नेता के रूप में रही है॥और मुस्लिम वोते बैंक पर इनकी भी नजर रही है...तभी तो नरेन्द्र मोदी के एक विज्ञापन में में अपनी फोटो छपने से नीतीश कुमार खफा हो गए कि आननफानन में गुजरात सरकार द्वारा कोसी पीडितो को दी गयी मदद को वापस कर दिया... लेकिन सवाल इस बात का नही कि क्या गुजरात सरकार द्वारा दी गयी मदद कि राशी नरेन्द्र मोदी कि व्यक्तिगत थी या गुजरात की जनता की ॥ यदि नीतीश कुमार ने इस बात का विचार किया होता तो कोई और तस्वीर होती... लेकिन मामला वोट का है...लेकिन अगर बात मोदी की की जाए तो वे कहते है उन्हें वोट की राजनीती में कोई रूचि नही है वे तो सिर्फ और सिर्फ विकास की राजनीती करना चाहते है... और पटना के अधिवेशन में उन्होंने नीतीश कुमार को भी विकास की राजनीती करने की समझाईश दी ... लेकिन मोदी के लिए रास्ता इतना आसन नही है ... कांग्रेस और एनी पार्टिया गोधरा कांड को भुनाने में कोई कसर नही छोड़ रही...भले ही कांग्रेस के खुद के दामन पर चौरासी के दंगे और भोपाल गैस त्रासदी का कला सच हो...इन दिनों बिहार में चुनाव प्रचार को लेकर भी नरेन्द्र मोदी निशाने पर है... बीजेपी और जद यू में अभी उहा पोह कि स्थिति बनी हुई है कि नरेन्द्र मोदी बिहार के आगामी चुनावो में प्रचार करेंगे या नही॥राजनीती में इस तरह के सियासी दाव खूब चलते है... क्युकि हिन्दुस्तान में जातीय राजनीती का बोल बाला रहा है॥तभी तो दलितों पर राजनीती कर कोई सत्ता हथियाना चाहता है तो कोई रीजनल आधार पर प्रदेश को बाटने की कोशिसो को कर "हीरो" बनता है... और जनताभी ऐसे लोगो को झांसे में आकर चुन लेती है॥ जनता भ्रम में जीती है .... उसे हकीकत से रूबरू होने नही दिया जाता ... हिंदी चीनी भाई भाई का नारा यहाँ बुलंद किया जाता है और वह चीन देश पर हमला कर देता है... एंडरसन को देश से बहार इस तरह छोड़ा जाता है जैसे घर में आये अथिति छोड़ने का दस्तूर हमारे देश में है ... जनता भ्रम में है ॥ अपने हित में देश बेचने का सौदा भी अगर हो जाए तो कोई परहेज नही...आज देश में महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है....कृषि मंत्री शरद पवार कहते है मैं कोई ज्योतिषी नही हूँ... जय राम रमेश चीन में जाकर देश के खिलाफ बयान देकर चले आते है और प्रधान मंत्री इस पर अपनी जिम्मेदारी लेते है... लेकिन वे कैसी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे है ॥ आम आदमी की जानकारी से ये भी दूर है... आये दिन महंगाई बद रही है.... और सरकार कहती है महंगाई को कम करने की कोशिश की जा रहीहै....मुह का निवाला क्या अब तो उजियारे में रहना भी दूभर हो जाएगा क्युकि केरोसिन के दामो में भी वृद्धि का मन सरकार ने बना लिया है... शायद प्रधान मंत्री की यही जिम्मेदारी है और राहुल गाँधी दलित हितों की बातें करते नही थकते ॥जिस देश में प्रति व्यक्ति आय २० रुपये हो उसका क्या होगा सोचा जा सकता है॥राजनीती का ऊट किस करवट बैठेगा ये कह पाना मुश्किल है॥राजनीती का खेल केवल मोहरों से नही मुद्दों से भी खेला जाता है और इसमें कितने मोहरे इस्तेमाल में आयेंगे यह भी कह पाना मुश्किल है... राजनीती के इस खेल में सरकार माहिर है... वोट और विकास का एक चेहरा नरेन्द्र मोदी का है...जहां महाराष्ट्र में विदर्भ और बुंदेलखंड के किसान भू जल के खाली होते भंडार के कारन खेती में हो रहे घाटे से उबर न पाने की स्थिति में है और आत्महत्या कर रहे है ...वही देश के कई इलाको में पानी की बड़ी समस्या बनी हुई है..... इन सारी गंभीर चुनौतियों का सामना गुजरात कर रहा है इस मोर्चे पर अन्य राज्यों को उसने करार जवाब दिया है ॥ वह मोदी की सरकार ने जल संकट से निपटने के लिए सरकार और जन भागीदारी का अनूठा मॉडल पेश किया है...२००४ में गुजरात में २२५ तहसीलों में से ११२ में भू जल स्तर गंभीर स्थिति में था लेकिन आज की स्थिति में ११२ में से ६० तहसीलों में जल स्तर सामान्य स्थिति में पहुच गया है ... ये नरेन्द्र मोड़ की राजनीती का एक मॉडल है जिसका जवाब "विकास " है...जहाँ २००९ में देश की कृषि विकास दर ३ फीसदी थी वही गुजरात में ये ९।०६ प्रतिशत रही ....गुजरात में पिछले दस सालो में १५ फीसदी कृषि भूमि का इजाफा हुआ है॥ गुजरात में कृषि उत्पादन १८००० करोड़ रुपये से बढ़कर ४९००० करोड़ रुपये हो चूका है...वही देश के अन्य राज्यों में किसानो की स्थिति दयनीय बनी हुई है...जहाँ कपास का दुनिया भर में उत्पादन ७८७ किलो प्रति हेक्टेयर है वही गुजरात में ७९८ किलो प्रति हेक्टेयर है... नरेन्द्र मोदी ने गुजरात को विकास की एक नयी दिशा दी है यह कहने में किसी तरह का कोई परहेज नही होना चाहिए... तभी तो आज की तिथि में गुजरात के किसान मालामाल है ... उनके कपास की धूम चीन तक मची हुई है वही अन्य राज्यों में सरकारे कहती है कपास की खेती घाटे का सौदा बन चुकी है....बात विकास और राजनीती की चली है तो मुलायम सिंह यादव का जिक्र करना जरूरी हो जाता है....मुलायम समाजवाद को तरजीह देते है और बातें करते है फ़िल्मी कलाकारों और अपने परिवार वालो की... महिला आरक्षण विधेयक की बात उती तो मुलायम ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया...लेकिन फ़ैजाबाद में चुनाव लड़वाने के लिए अपनी डिम्पल यादव का बखूबी इस्तेमाल किया... इस मौके की राजनीती में उन्हें उस किसी चीज से गुरेज नही जो चुनाव जीतू हो... दरअसल तस्वीर पूरे देश की यही है... राजनेता केवल वोटरों को देखते है... आम आदमी से उनका कोई सरोकार नही है... जीतने के बाद उनका न तो विकास से नाता है और ना ही जनता से.... लेकिन अब बिहार में ये देखने की बात होगी जनता विकास चाहती है या वोट खरीदने वालो की फरोख्त में शामिल होती है... विकास देश की तस्वीर बदलेगा और वोटो की राजनीती देश को गर्त में धकेलेगी......
( रजनीश पांडे के सौजन्य से ये लेख मिला है.... रजनीश अपनी नॉन स्टॉप एंकरिंग के लिए केव्स में जाने जाते रहे है.....)

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

निवेदन है ... कृपया गौर फरमाए.......

साथियो,
केव्स टुडे सभी का सामूहिक ब्लॉग है.... इसमें कहानी , संस्मरण जैसे चीजे नही लिखे तो बेहतर रहेगा... इसमें अगर इस तरह की चीजे लिखी जा रही है तो यह हमारी टीम के लिए सही नही है.... कई जूनियरो को इसमें लिखी और परोसी जा रही सामग्री पर आपत्ति है....
ब्लॉग अभिव्यक्ति का माध्यम है ... इसमें जनसरोकारो वाली पत्रकारिता की जाए तो अच्छा रहेगा.... देश , दुनिया और सामाजिक सरोकारों को तरजीह देने के मकसद से ये ब्लॉग खोला गया है.... यदि इसमें हम छोटी मोटी दैनिक जीवन की डायरी लिखेंगे तो जिस मकसद से ये ब्लॉग खोला गया है वह अपना मकसद पूरा नही कर पायेगा.....
आशा है आप सभी मेरी बातो से सहमत होंगे और आने वाले दिनों में सकारात्मक विचारो के साथ नयी पहल में सहयोग देंगे........ हर्ष

मंगलवार, 22 जून 2010

  भ्रष्ट पत्रकारिता को सफलता का शोर्ट कट कहा जाता है----- कुठियाला
माखनलाल चतुर्वेदी राष्टीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति बृजकिशोर कुठियाला जी से हाल ही में हर्षवर्धन पाण्डेय  ने बातचीत की जिसमे आज की पत्रकारिता के बारे में खुलकर चर्चा हुई । इस बातचीत में उन्होनें पत्रकारिता से जुड़े कई राज खोले. वस्तुत: स्वभाव से एक शिक्षक और मानवशास्त्र के स्टुडेंट रहे कुठियाला जी ने उच्च शिक्षा IIMC और FTII जैसे संस्थानों से ली.मनुष्य और सम्प्रेषण पर लिखे कुछ लेखों ने उनकी दिशा बदल दी और वे पत्रकार बन गए.


11 साल रिसर्च और 26 साल शिक्षण के कार्य का लंबा अनुभव रखने वाले कुठियाला जी से आज के दौर की व्यवसायिक पत्रकारिता के मिथकों और सनसनीखेज खबरों की अंधी दौर के बारे में हर्षवर्धन पाण्डेय ने विस्तार से बात की। जिस में कई अहम जानकारियां से हम रु ब रु हुए॥

पेश है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

सबसे पहले तो माखनलाल चतुर्वेदी राष्टीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति बनने पर आपको बधाई ...

जी बहुत बहुत शुक्रिया...

भारतीय पत्रकारिता के प्रतिष्ठित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति के नए रोल को क्या आप किसी चुनौती के रूप मे लेते हैं?

ये मेरे लिये कोई चुनौती नहीं है. किसी भी काम को चुनौती के रूप में लेना मेरा स्वभाव नहीं रहा है. ये तो बस मौके की बात है. अपनी डयूटी और रिटायरमेंट के बाद वैसे भी मैंने प्लान किया था वानप्रस्थ की ओर जाने का, लेकिन ये नई जिम्मेदारी मेरे लिये नई उर्जा के समान है और ये काफी उत्साह वर्धक है. हां ये बात तो है कि ये बड़ी जिम्मेदारी है और मेरी कोशिश रहेगी की इस विश्वविद्यालय से अच्छे पत्रकार समाज को दूं.

ऐसा सुनने में आ रहा है कि अच्युतानंद मिश्रा जी के बाद कुलपति के पद पर आपकी नियुक्ति को लेकर कुछ राजनीति भी हुई थी?

हंसते हुये - डिप्लोमेटिक उत्तर दूं क्या! -

आपको जो उचित लगे.

नहीं, बिल्कुल नहीं. हां लेकिन मै इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि दबाव जरूर बना. क्योंकि कुछ लोग चाहते थे कि मैं इस पद पर काम करूं. कम्पीटिशन तो था पर मेरा सेलेक्शन हुआ. मुझसे कहा गया कि पिछले 15 सालों में मीडिया संस्थानों के निर्माण के कार्यों को देखते हुए आपको ये जिम्मेदारी सौंपी गई है. इसमें हमारे अनुभव भी काम आये.


मैं ये भी बताना चाहुंगा कि मेरा कद अच्युतानंद मिश्रा जी से काफी छोटा है. ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे उस विश्वविद्यालय के कुलपति की जिम्मेदारी सौंपी गयी है, जिसे अच्युतानंद मिश्र जी ने अपने प्रयासो से एक नई पहचान दी है. उनके कार्यो को आगे बढाना मेरी प्रमुखता होगी.

माखनलाल के वीसी बनने के बाद आपकी और क्या प्राथमिकता होगी. गाहे बगाहे ये सुनने में भी आता है कि बाहर से कम ही लोग भोपाल आ पाते हैं. ये सब बेस्ट फैकल्टी को लेकर कहा जाता है?

नोयडा सेंटर की शिकायत रही है कि हमारे यहां बाहर से कम लोग आते है. वही भोपाल वाले भी कहते हैं. इसका निराकरण किया जायेगा. उन विशेषज्ञ को बुलाया जायेगा जो अपने क्षेत्र में माहिर हो. जैसे कि आप राजदीप सरदेसाई से ये उम्मीद नहीं कर सकते की वो आकर आपको अच्छा वायस ओवर सिखायेंगे. ये तो कोई अच्छा वायस ओवर आर्टिस्ट ही सिखा सकता है. मेरे संज्ञान में कुछ बातें भी आई है.


बंद हो चुके कुछ कोर्स जैसे बिजनेस जर्नलिज्म और स्पोर्ट्स जर्नलिज्म पर भी हमारी चर्चा हुई है. यहां आपको बता दूं कि हम कुछ विशेष चीजों पर काम कर रहे हैं. कॉमनवेल्थ गेम से पहले हम कुछ वर्कशॉप करायेंगे. ताकि उनको सही से तैयार किया जा सके.

आप एक प्रतिष्ठित पत्रकारिता विश्वविद्यालय के वीसी हैं. जहन में एक सवाल आता है कि आप की नजर में भ्रष्ट पत्रकारिता की क्या परिभाषा है?

आं.... देखिये सच कहा जाय तो भ्रष्ट पत्रकारिता में बहुत आकर्षण होता है . सभी को पता है कि ये गलत है. फिर भी लोग इसके हाथों में समाते चले जाते हैं. एक अच्छे और ईमानदार पत्रकार समय के साथ मीडिया एथिक्स और वैल्यू के साथ समझौता करता चला जाता है और धीरे धीरे इसके जाल में फंसता जाता है .फिर टीआरपी और रीडरशिप की चुहा बिल्ली की दौर के पीछे भागने लगता है.


आज ऐसी पत्रकारिता को सफलता का शॉर्ट कट भी माना जाता है. ऐसी पत्रकारिता से दूर रहने का हमें भरसक प्रयास करना चाहिए. जिससे कि हम एक अच्छे पत्रकार बन सके और समाज को एक नई दिशा में ले जा सके. ये वास्तविकता है कि हम बुरी चीजों के प्रति जल्दी आकर्षित होते हैं, लेकिन हमें अपनी मर्यादा का ख्याल रखते हुए अपनी हदें और मिशन खुद तय करना होता है.

आपकी नजर में सनसनीखेज खबर के दलदल से निकलने का क्या रास्ता है?

देखिये इस तरह की पत्रकारिता काफी हद तक भटक चुकी है. गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में पत्रकार अपनी जीविका चलाने के लिए आज इस रास्ते पर चल रहे हैं और इस तरह की खबरों को खरीदना और बेचना चाहते हैं. आप ये भी कह सकते हैं कि सुर्खियों में बने रहने का ये एक शॉर्ट कट भी है. ऐसे पत्रकार सोचते हैं कि ये सबसे आसान रास्ता है एक लोकप्रिय मीडियाकर्मी बनने का.


लेकिन जो खबर नहीं भी है उसे सनसनीखेज ढंग से परोसना और बिना वजह ऐसे खबरों को तवज्जो और तूल देना दर्शक और पाठक के साथ सरासर धोखा है. सब को पता है कि पूरे विश्व में बडे अखबारों का सर्कुलेशन भी धीरे धीरे कम हुआ है. लगातार खबरें देने के दवाब में मीडिया खबरें बनाने लगते हैं. ये बाजार का दबाव है. ये इस बात का सूचक है कि अखबार भी अपने पाठकों के बीच पैठ बनाने के लिये बुरे दौर से गुजर रहा है. ऐसे वक्त में आप सिर्फ आपने बिजनेस के बारे में सोच सकते है ना की पत्रकारिता एक मिशन है, इस बारे में. ये एक बहुत बडी विकृति है. आप वही करेंगे जिससे संस्थान को लाभ होगा. मेरे विचार से टीआरपी, एबीसी और रीडरशिप ये सब एक मिथ्या है.


हम ये भी कह सकते हैं कि अच्छे लोग या तो थक चुके हैं या रुखसत हो चुके हैं. मीडिया के भीतर सफल पत्रकार भी इन सब चीजों से त्रस्त है. इस दलदल से निकलने का एक मात्र रास्ता है इच्छा शक्ति और लोगों के बीच सही रूप से किसी भी खबर का प्रस्तुतिकरण.

ऐसे में पत्रकारिता के भविष्य को आप किस रूप में देखते हैं?

जहां तक पत्रकारिता के भविष्य का सवाल है तो भविष्य में पत्रकारिता द्वारा संवाद बढेगा और स्वरुप बिगड़ेगा. ये स्वरुप सारा ध्वस्त होगा. फिर से एक नया मीडिया उभरेगा और जो समाज के हित की बात करेगा. आज की पत्रकारिता वो भस्मासुर है जो खुद अपने सिर पे हाथ रखे है.

क्या आप ये सब क्राइम बीट की पहुंच बढने के कारण कह रहे हैं ?

नहीं मैं उस मीडिया की बात कर रहा हूं जो हर जगह कॉमर्शियल चीज आसानी से ढूंढ़ लेता है. आम आदमी को क्या लाभ होगा ये हेडलाइन नहीं बनती. आज आलम ये है कि हमारा मीडिया ममता बनर्जी और सचिन तेंदुलकर में भी कॉमर्शियल ढूंढ़ लेता है. जो काम रेल आम आदमी के लिए कर सकता हैं वो काम सचिन तेंदुलकर नहीं कर सकता. अभी कुछ समय पहले मैं एक सेमिनार में हिस्सा लेने ऑस्ट्रेलिया गया था वहां एक मुद्दा उठा जो डेथ ऑफ जर्नलिज्म का था. पत्रकारिता अप्राकृतिक हो गयी है .20 -25 लोग जो बड़ी जगहों पर बैठें हैं, वो ये डिसाइड कर रहे हैं कि हमें कौन सी सामग्री परोसनी है. आज कल पत्रकार वो है जिसका काम बस हो गया है सूचना इकट्ठा करो और भेज दो. खबर बन जाएगी.

बेन्जामिन ब्रेडली ने 25 साल तक वाशिंगटन पोस्ट जैसे अखबार का सम्पादन किया. कुछ साल पहले जब वो भारत आये तो शेखर गुप्ता एनडीटीवी पर उनका वाक द टॉक कर रहे थे. उन्होने एक बात कही कि अमेरिका में पत्रकारिता बुनियादी मुद्दो की ओर लौट रही है. ऐसे में ये जो सेकेंड लाइन जर्नलिज्म है क्या वो भी भारतीय पत्रकारिता की ओर लौट सकती है. इसके बारे में आप क्या कहेगें?

देखिये सेकेंड लाइन जर्नलिज्म सामाजिक मुद्दों से जुडा हुआ है, ये जमीन से जुडे लोगों के लिए काम करता है. आप कह सकते है कि ये पत्रकारिता के रियल वैल्यू और इथिक्स से जुडा हुआ है.


अगर आप आरएसएस की मासिक, पाक्षिक, साप्ताहिक पत्रिका की कुल प्रसार संख्या देखें, तो ये किसी प्रतिष्ठित अखबार के मुकाबले ज्यादा है. इसमें देश, समाज, मानवता से जुडे मुद्दे की बात होती है. हम क्या करना चाहते हैं? क्या अधिकार है? जिस दिन पत्रकारों को ये सब समझ में आ जाएगी, उस दिन से वो इस ओर मुखातिब हो जाएगें. आप देखेंगें, आने वाले दिनों में यही सेकेंड लाइन जर्नलिज्म फलेगा, फूलेगा और लोगों के बीच लोकप्रिय होगा.

कुठियाला साहब ये जो आजकल चौबीस घंटे के न्यूज़ चैनलों की बाढ़ आ गयी है या यूं कहा जाए कि आना बदस्तुर जारी है, इसके बारे में आपकी क्या राय है ?

(हंसते हुए) चौबीस घंटे न्यूज़ चैनल का कांसेप्ट ही असफल है. ईमानदारी से चौबिसो घंटे समाचार का प्रसारण और उसे प्रस्तुत करना नामुमकिन है. इस लिए तो न्यूज़ चैनल आजकल रियालिटी शोज का सहारा ले रहे है. आप देख सकते है कि कोई भी न्यूज़ चैनल इससे अछूता नहीं है. खबरों को सबसे पहले ब्रेक करने और लगातार खबरें देने के दबाव और आपाधापी में चैनल खबरें बनाने लगते है. ये जनता के साथ सरासर धोखा है.

आजकल मीडिया का ट्रेंड बन गया है खबर को बढा-चढा कर परोसने का. मीडिया की इस अतिवादिता की चाभी को आप किस तरह लेते हैं ?

(थोडा गंभीर होते हुए)- अपनी सेल वैल्यू को बढ़ाने के लिए न्यूज़ चैनल खबरों की सनसनीखेज पैकेजिंग करते हैं और ऐसा फ्लेवर डालते हैं मानो ये खबर सिर्फ और सिर्फ उनके पास है. इस चक्कर में चैनल वाले जो खबरें तथ्यहीन है उसे भी सनसनीखेज और भयानक रुप से दिखाते हैं. लेकिन ये बहुत ही गलत अप्रोच है. ऐसे मीडिया हाउस लम्बी रेस के घोड़े नहीं हैं. लेकिन मैं आश्वस्त हूं कि आने वाले समय में अच्छे, निष्पक्ष और जनता के हितो को तव्वजो देने वाली खबरे भी आएगी.


राधे श्याम शर्मा जी जो वरिष्ठ पत्रकार है, ने अभी एक बहुत अच्छी बात कही है कि एक दिन वही पत्रकार होगा जो कभी नहीं बिकेगा. जितनी जल्दी बिकोगे उतना कम दाम मिलेगा. इसे कोइ संस्था या शिक्षण संस्थान तय नहीं कर सकता. ऐसे में एक अच्छे पत्रकार को खुद अपनी पत्रकारिता मिशन को टारगेट करना चाहिए. जिसके लिए वो समाज के चौथे स्तंभ के रुप में जाना जाता हैं.

कुछ बात करते है विश्वविद्यालय की प्लेसमेंट सेल पर. विश्वविद्यालय की प्लेसमेंट सेल को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते है. स्टुडेंट का ये कहना होता है कि जब पूरा विश्वविद्यालय एक है. तो फिर एमजे (पत्रकारिता विभाग) के स्टुडेंट का प्लेसमेंट हमेशा गुपचुप तरीके से हो जाता है, जबकी कैव्स (सेंटर फॉर ऑडियो विजुअल स्टडीज) और दूसरे डिर्पाटमेंट के स्टुडेंट सिर्फ हाथ मलते रह जाते है. क्या कुठियाला जी के आने के बाद हम उम्मीद करें की चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी?

हां, मुझे इसकी जानकारी मिली है जो ठीक होगा वहीं किया जाएगा. इसपर अभी बात करना ठीक नहीं है. प्लेसमेंट क्षमतावान छात्र-छात्राओं का होना चाहिए. उन्हे इसके लिए खुद लायक बनना चाहिए. मैं कार्यभार संभालने के बाद हर दिन विभाग में दस से ग्यारह बजे तक पर्सनालिटी डेवलपमेंट की क्लास शुरू करवायी है जिससे जल्द ही अच्छे और सकारात्मक परीणम सामने आयेंगे. मैं ग्यारह वर्षों से इन चीज़ों पर जोर देता रहा हूं. उम्मीद है चीज़ें बदलेगी. मेरा जोर प्लेसमेंट सेल नहीं बल्की ऐसी बेस्ट फैकल्टी की तरफ रहेगा जो पढाई के दौरान ही बच्चों की प्रतिभा को तराश ले और उन्हें इनटर्न पर ले जाए.

चलिए ये सवाल आपकी निजी जिंदगी से. पढने के अलावा कुठियाला साहब को और कौन से शौक हैं ?
मैं रात में उपन्यास पढता हुं. मेरा शौक रहता है कि मैं कुछ पढूं. लेटेस्ट फिल्म देखना भी पसंद करता हूं. संगीत से लगाव है. दिनचर्या तो व्यस्त रहती है. इसी में सीरिअल देखने का समय निकाल लेता हूं.

पत्रकारिता के स्टुडेंट के लिए कोइ संदेश ?

बडे सपने देखो. निपुणता बढाओ. कम्प्यूटर में प्रवीणता लाओ. दो भाषाओं पर अच्छी पकड़ बनाओं.पढने से ज्यादा सोचने और विश्लेषण के लिए समय दो. देखो सफलता आपके कदम चूमेगी.
(हर्षवर्धन पाण्डे युवा पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है...समसामयिक विषयो पर लेखन   लम्बे समय से करते आ रहे है... आप इनके विचारो को "बोलती कलम ब्लॉग पर भी  पढ़ सकते  है)

बुधवार, 16 जून 2010

वक्त आ गया विदाई का ...................

दोस्तों माखनलाल विश्वविद्यालय में हम लोगों का दो साल पूरा हो गया .....आज अक्षर पत्सारिया ने कहा कि मिश्रा जी आप लोग जाने वाले हो मुझे बहुत दुःख हो रहा है.....कलेजा मजबूत करके मैंने कह दिया इमोशनल नही प्रोफेसनल बनो....लेकिन मै खुद प्रोफेसनल नही बन पाया.....आगे क्या लिखूं कल क्राईम रिपोर्टिंग का इक्जाम .........बट आई विल  मिस यू.........

शुक्रवार, 21 मई 2010

अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो...............


                   


















काश  कि  मै भी  लड़की  होता 
हॉस्टल  में  , मैं    रहता------                            
जब मर्जी  बंद  करके  दरवाजा 
तानकर        चादर         सोता


बिजली पानी का टेंशन न होता  
न   होती    किसी से लड़ाई                           
यूनिवर्सिटी  का  टॉपर  बनता  
करता   जमकर   मै  पढ़ाई  
                                                      
रूम  में  मेरे  न  चाचा  आता 
न    आता    कोई   भतीजा                                                        
एमसीयू का इकलौता ऐक्टर
देता   न   बुरा   नतीजा 

                                                        
है गुजारिश------------हे वि.वि.प्रशासन 
लड़कों को भी हॉस्टल  की  सुविधा दीजो 
वरना हे----------------- विधाता 
अगले   जनम  मोहे   बिटिया  ही कीजो 

                     आदित्य कुमार मिश्रा
                     --- कैव्स-एमसीयू ---
                         09302163235 


  

बुधवार, 28 अप्रैल 2010

अगर मुझे कानून का डर न होता......मगर सवाल ये है कि बिल्ली के गले में घंटा कौन बाँधेगा ...........

भारत एक लोकतान्त्रिक देश है .....यहाँ प्रत्येक  नागरिक को समान अधिकार दिए गये हैं....इसी समान अधिकार की वजह से नरेंद्र मोदी ( जो  शायद कभी चाय की दुकान चलाते थे )..आज गुजरात में गद्दी सम्भाल  रहे हैं...और मायावती जैसी सामान्य शिक्षिका आज यूपी में राजकाज देख रही हैं..... मुझे इस देश की व्यवस्था से कोई शिकायत नहीं है.....क्योंकि इसे कायम रखने या सुधारने की जिम्मेदारी  मेरी भी उतनी ही है.....जितनी राहुल गाँधी या मनमोहन सिंह की है.....                                                                                               
                  लेकिन मुझे दुःख इस बात का है कि जहाँ  एक ओर एक आम मजदुर आठ घंटे काम करके सौ रूपया कमाता है और महीने में बमुश्किल तीन  हजार में अपने पांच -छः सदस्यों को पाल  रहा है ....बच्चों  को पढ़ा-लिखा रहा है.....वहीँ दूसरी ओर मायावती ,मुलायम सिंह ,लालू यादव ,जय ललिता और मधु कोड़ा जैसे लोग गद्दी पर  बैठते ही अरबों -खरबों के मालिक बन जाते हैं .....इनके खिलाफ सीबीआई की जाँच चलती है .....करोड़ो तो ये लोग कमा चुके हैं और करोड़ो इनके जाँच में खर्च हो जाता है....नतीजा क्या निकलता है......कभी मायावती के सांसदों के वोट के लालच में केंद्र सरकार सीबीआई की पकड़ कमजोर करती है तो  कभी मुलायम और लालू के सांसदों के वोट के लालच में....वैसे केंद्र सरकार में भी दूध के धुले लोग बैठे  होते तो कुछ उम्मीद भी किया जाता....मगर वहां भी खानदानी लोगों का राज चल रहा है ...जो सिर्फ इसी जुगाड़ में रहते हैं की शासन की लगाम खानदान से बाहर न जाये...भले ही दर्जनों मायावती पैदा हो जाये और अपनी मूर्तियाँ लगवाएं ----भले ही सैकड़ो लालू और कोड़ा हो जाये और चारा और कोयला निगलते जाये...                                                                                                                                                ऐसी बात नहीं है की इन लोगो का इलाज  नहीं है......इलाज है मेरे पास है...आपके पास है ....       

मगर सवाल ये है कि बिल्ली के गले में घंटा कौन

बाँधेगा .........................................................................................

.ऊपर मैंने जो कुछ भी लिखा है वो सब अपनी एक कविता की भूमिका के लिए                                 लिखा है............कविता कुछ इस तरह से है
                          

अगर मुझे कानून का डर न होता





अगर मुझे कानून का डर न होता

अगर मुझे समाज का डर न होता

अगर मुझे ऊपर वाले का डर न होता

तो मै जाने क्या-क्या कर गया होता



मगर इस कानून से , इस समाज से

और ऊपर वाले से मुझे ही डर क्यों

....................... लगता है



उन्हें डर क्यों नही लगता

जो जुर्म पर जुर्म किये जा रहे हैं

कुर्सी पर बैठकर हमारा खून

................... पीये जा रहे हैं



अरे कोई जरा कह दो उनसे कि समाज

से ,कानून से और ऊपर वाले से डरे

अगर हम भी डरना छोड़ देंगे तो

उन्हें तो दुनिया ही छोड़नी पड़ेगी

..............ईमान से... ................

 
   

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

मीडिया को कोसना बंद करो

जाने माने फ़िल्मकार महेश भट्ट ने मीडिया पर अपनी भड़ास निकलते हुआ दैनिक जागरण के सम्पादकीय में लिखा हैकि मीडिया खबरे देते हुए अपने सीमओं और कर्तब्यो को भूल जाता है। आपको इस बात का बहुत कष्ट है की मीडिया निजी जीवन में घुस रहा है, हमारे बेडरूम तक घुस रहा है , आम आदमी को रिपोर्टर की तरह प्रयोग कर रहा है । खैर गलत कुछ नहीं है ।
पिछले कुछ दिनों से मीडिया के खिलाफ लिखना एक फैसन सा बनता जा रहा है और खास करके इलेक्ट्रोनिक मीडिया के खिलाफ, लेकिन मै यह नहीं समझ पा रहा हूँ की इन लोगो को मीडिया के बेडरूम में घुसने से दिक्कत क्यों है भारत के लोग तो परेशां है की मीडिया उनके बेडरूम में नहीं पहुच रही है । क्योकी उनका बेड रूम ही उनका किचेन है, वही खाना बनाते है वही कपडे रखते है वाहे सोते है कोई बहार सर मिलने आजाये तो वही बैठ कर मिलते भी है और उन्हें दुःख इस बात का है कीखुद गलत काम करना बंद करो मीडिया अपने आप तुम्हारा पीछा छोड़ देगी और बहुत हो चुका अब मीडिया को कोसना बंद करो और बैठ कर आत्ममंथन करोमै चाहता हू मै चाहता हू की मीडिया मेरे पीछे आये पर आती ही नहीं मेरे गाँव का बदलू भी चाह्ता है की मीडिया आये पर आती ही नहीं क्या करे भाई. जरी रहेगा मीडिया हकमारी निजी जिन्दगी में नहीं झाकता है। वो कहते है मीडिया दिखाए की आज हम बिना खाए सो गए है, आज मालिक नाराज थे तो पैसा नहीं मांग सका खाना नहीं बना बच्चे भी भूखे है, पर ऐसा हो नहीं रहा है।
साहब लिखते है की मीडिया को अपना खुद का कोड ऑफ़ सेंसरशिप तीयआर करना चाहिए , लोगो को ऐसी खबरों का वहिष्कार करना चाहिए जो मानवीय सम्बेदानाओ को और भावनाओ को आहात करने वाली होसाहब अपनी फिल्मे बनाते वक्त ऐसा कई नहीं सोचते है । तब तो आप कहते है जो डिमांड है मै उसकी पूर्ती कर रहा हू , आप कहते है की मै फिल्मो पर पैसा लगता हू पैसा कमाने के लिए उस समय इनके जेहन में यह ख्याल नहीं आता की उनके इस कृत्य का समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा ।
पिछले दिनों मीडिया ने कुछ गलतिया की लेकिन वो नियोजित नहीं था और उसके बाद लगत आलोचनों का शिकार होकर उसने सुधार भी किया , पर आज परेशानी इण्डिया के लोगो को है उन १० से २० प्रतिशत लोगो को है जो आम जनता पर शाशन कर रहे है इनके चहरे बाहर से जितने साफ दीखते है ये अन्दर उतने ही गंदे है पर ये चाहते है की इनकी गंदगी छुपी रहे और ये आराम से शाशन करते रहे , इनके बेडरूम में गड़बड़ी है इसलिए ये वहा मीडिया का आना नहीं पसंद करते है पर मुझे खुशी है की मीडिया अपना काम कर रही है, गरीबो की गरीबी दिखा नहीं पा रही है काम से काम अमीरों की ऐयाशी तो दिखती है , ये लोग मीडिया को गली देंगे की की यह नहीं दिखाना चाहिए पर खुद नहीं सोचेंगे की यह नहीं करना चाहिए ।
मुझे समाज के इन कथित बुधिजीवियो से यही कहना है की मीडिया पर अंकुश लगाने से पहले खुद पर अंकुश लगाओ , खुद गलत काम करना बंद करो मीडिया अपने आप तुम्हारा पीछा छोड़ देगी और बहुत हो चुका अब मीडिया को कोसना बंद करो और बैठ कर आत्ममंथन करोमै चाहता हू मै चाहता हू की मीडिया मेरे पीछे आये पर आती ही नहीं मेरे गाँव का बदलू भी चाह्ता है की मीडिया आये पर आती ही नहीं क्या करे भाई? जरी रहेगा .............

बुधवार, 14 अप्रैल 2010

ऐतराज किसको हैं ................

खबरों की दुनिया में चल चला चल ही ठहर गया हैं .आप के जो आलाकमान कमीने किस्म के बैठे मिलेगे वो मेरे भाई कुछ नहीं जानते हम उनसे १००% जादा जानते हैं पर उनके पास नौकरी हैं और हम झक मर कर इंटर्न की आड़ में खुद को पिसवाते हैं और मजबूरन ही कहे ये तो शब्दों की महिमा हैं की हमे काम सिखाया जाता हैं ......
............................................................................................पर ये भी तय हैं की जब हम आयेगे तो लात मरकर इन हराम के पिलो को पत्रिकारता से निकल बहार कर देगे ये पत्रिकारता का संक्रमण काल हैं हम तो उस चौथे इस्ताम्भ के लिए जिए और मरेगे जो इसके मूल केंद्र में रखा गया हैं ...........हम आन्दोलन भी करेगी गलत करने वालो को सजाय मौत तो नहीं केवल उसके उनके हाथ और जुबान जरूर कटेगे ............................................
.................................ये वादा हैं पत्रकारिता धर्म से जिसको हमने विश्वविधालय से पाया हैं ...अपना नारा छीनो मरो लोटो ...........

बुधवार, 7 अप्रैल 2010

शान से परेशान हूँ

काल के जंजाल सा लगता हैं ये इंटर्नशिप पर क्या कहू सवाल हैं कहा से पाऊ नौकरी .....गम तो इतना हैं की आज छोड़ दू...... ये जाल का जंजाल ....पर हैं अगर कोई सोलुसन बताओ वरना चुप चाप तुम भी भटको खैर हम तो भटक रहे ही हैं .........अगर कोई पूछे क्या हैं नोकरी तेरे पास तनकर उठो कहो,,,,,,, हैं कोई व्यवस्था  तेरे पास नहीं तो चल चलता बन ......और सुन  अभागो के शूख स्वप्न सचे नही बहुत आच्छे होते हैं ..................कल तो मैं आई बी अंन , आजतक ,का मालिक बन कर दिखाउगा ........चल अभी शांत रह .....कल की खबर में एंकर ने  जो  तुझे बना दिया ......जीरो से हीरो बनने वक्त ही लगता हैं ....चल आज ये तेरा हैं .....ये कल माकूल मेरा होगा .....

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

हमने राखी टाईप के एंकर को लाईन नहीं मारी, फिर भी...................

 आई.बी.एन.में इंटर्न का वो भी एक दिन था। रोज़ की तरह एक बडे़ से हॉल के अन्दर ढेर सारे लोग अपने-अपने कम्प्यूटर पर काम कर रहे थे। हॉल के ही एक कोने में चैनल का स्टूडियो था। वह स्टूडियो क्या था......पूरे चैनल के आकर्षण का केन्द्र था। मै स्टूडियो के करीब आउटपुट विभाग में खड़ा हो गया। राकेश त्रिपाठी पहले से वहां मौजूद थे ,अपने काम में व्यस्त थे। मैने उन्हे अपनी ओर बुलाया और स्टूडियो की ओर देखने का इशारा किया। दरअसल स्टूडियो में एक महिला एंकर एंकरिंग कर रही थी। हम लोग कभी टी.वी. देख रहे थे ,कभी उस एंकर को......। मैने देखा कि एक साहब हम लोगों को घूर रहे थे....मैने त्रिपाठी जी से कहा कि देखिये ...वो हम लोगों को घूर रहा है। मेरा ख्याल है यहां से कट लिया जाए....। लेकिन (कॉन्फिडेंस का दूसरा नाम राकेश) त्रिपाठी जी नहीं समझे....वो बोले इसका कोई मतलब नहीं है । हम लोग एंकरिंग देख रहें हैं.....किसी को क्या प्राब्लम है ।लेकिन तभी वो साहब हमारे पास आ गये.....और बोल उठे...तुम लोग यहां इंटर्न करने आये हो...त्रिपाठी जी गर्व से बोले हां सर । वो साहब अजीब सा चेहरा बनाकर बोले....तुम दोनो दुबारा यहां दिखायी मत देना, जाकर कुछ काम करो...। मैने तुरन्त    ''  बाएं मुड़ आगे बढ़ ''   वाला फन्डा अपनाया और वहां से वैसे ही गायब हुआ जैसे गुरुदेव  के रूम से ललित और हर्ष उस समय गायब हुए थे , जब अपने विवेक भाई, फरहान साहब के लिये गुरूदेव के पास पूरी टीम लेकर वकालत करने करने गये थे.....और गुरूदेव ने डांट दिया था। ख़ैर अब हम लोग सुरक्षित इलाके में पहुंच चुके थे......मेरा मतलब स्पोर्ट डेस्क के पास..... जहाँ से  आदिमानव टाईप के वो सर हम लोगों को देख नहीं सकते थे....। मैने त्रिपाठी जी से पूछा वो क्यों बकवास कर रहा था......वे बोले -पता नहीं मह.राज उसको क्या दिक्कत है........। मैने कहा --अरे यार उसको लग रहा था कि हम लोग एंकर को लाईन मार रहे हैं.........उस दिन के बाद से मै रोज वहीं जाकर खड़ा होता हूं ...लेकिन अकेला...। अब वो आदिमानव कुछ नहीं बोलता है.... शायद उसे हम दोनो के साथ-साथ खड़ा रहने से प्राब्लम है........और शायद इसी को तो कहते हैं कि डर के आगे जीत है......क्योंकि हमने एंकर को लाईन नहीं मारा था.....तो नहीं मारा था.......... भला एंकर भी कोई लाईन मारने की चीज है...वो भी ''राखी टाईप की एंकर''  लेकिन आदिमानव और महामानव को कौन समझाये .......





रविवार, 4 अप्रैल 2010

रात गयी , मगर बात नहीं गयी ....................



मगर नहीं

आज पूरे हिंदुस्तान में सानिया मिर्ज़ा के शादी का विवाद छाया हुआ है   ..... टीवी चैनल भी अमिताभ - कांग्रेस  प्रकरण दिखा दिखा कर बोर हो चले थे .... इसी बीच सानिया मिर्ज़ा ने टीवी चैंनलों को बैठे -बिठाये एक मुद्दा खेलनें को दे दिया ....इस खेल की भूमिका पाकिस्तान के क्रिकेटर शोएब मलिक ने सन २००२ में ही लिख दिया था ....... बात कुछ इस तरह से है कि शोएब मलिक और आयशा सिद्दीकी  की मुलाकात तब हुई जब शोएब मलिक महज २० वर्ष के थे ...... वह पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के सदस्य थे ....... आयशा सिद्दीकी सेलिब्रिटी शोएब के आकर्षण से बच नहीं पायीं .......और खुद को शोएब के हाथो समर्पित कर दिया .... शोएब नें आयशा  के साथ वही किया , जो  उनके जैसे ढेरो रईशजादे सेलिब्रिटी करते हैं .... करके चले जाते है........... शोएब जब पाकिस्तान पहुंचे  तो आयशा से फोन पर बातें  जारी रही .......सुनने में यह आ रहा है कि इन्टरनेट और फ़ोन पर ही शोएब नें आयशा के   साथ निकाह कर लिया...... शोएब को क्या मालूम था कि किस्मत उन पर  कुछ इस तरह से मेहरबान होगी कि सानिया मिर्ज़ा जैसी मशहूर हस्ती का साथ उन्हें मिलेगा .......लेकिन यही तो कुदरत का करिश्मा है कि किसे कब क्या मिल जाये कोई नहीं जानता ..... वैसे शोएब पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान रह चुके हैं ...... मतलब प्रसिद्धि में वह सानिया से ज़रा भी कम नहीं है .......... शोएब की आयशा के साथ गुज़रे वो दिन आज उनके लिए मुसीबतों के पहाड़  बन चुके हैं........मतलब शोएब ने जिसे  ""रात गयी बात गयी "" समझकर भुला दिया था...... वह उनके गले का फंदा बनता  जा रहा है.......लेकिन सानिया मिर्ज़ा  जिस बेशर्मी से शोएब के सुर से सुर मिलाकर १५ अप्रैल को शादी का ऐलान कर रहीं हैं ........वह आयशा के साथ ही साथ पूरे हिन्दुतान के मुंह पर तमाचा है ........लेकिन अफ़सोस इस बात का है की हमारे देश का कानून उन्हें ऐसा करने की पूरी इजाजत देता है.........सानिया को कम से कम कानूनन शोएब के वरी हो जाने का तो इन्तेजार करना चाहिए.......अब देखना यह है कि यह मामला कहाँ  तक पहुँचता है....... जबकि स्टार न्यूज़ की ख़बरों के मुताबिक शोएब मलिक ने यह बात कबूल कर ली है कि उन्होंने फ़ोन पर निकाह किया है......लेकिन उन्हें गलत फोटो दिखाया  गया था.......


                अपने विशेष सहयोगी अंकित तिवारी ,गरिमा तिवारी ,रितू. रितेश और अभिनव तिवारी  जी. डी.सलवान नई दिल्ली  को धन्यवाद देते हुए इस विश्वास के साथ कि पीठ में छुरा घोंपने वाले देश पाकिस्तान के  शोएब से सानिया मिर्ज़ा   एक न एक दिन ज़रूर धोखा खायेंगी....और ये सानिया का निजी मामला नहीं है मेरे अपने देश का मामला है ...........मै अपनी बात को यहीं समाप्त करता हूँ ........

बुधवार, 31 मार्च 2010

इन्टर्न का तिलिस्म टूट ही गया .............

१५ फरवरी २०१० से मैंने भी आई बी एन सेवेन में इन्टर्न शुरू किया.........मै यहाँ कोई बड़ी आशा लेकर नहीं आया था....क्योंकि मेरे सीनियर रजत सर ने मुझसे कहा था कि किसी छोटे चैनल में इन्टर्न करना ,वहां ज्यादा सिखने को मिलेगा ........लेकिन प्लेसमेंट ऑफिसर साहब की मेहरबानी से आई बी एन सेवेन चला आया.....मुझे यहाँ अच्छा लगा ,यहाँ एक चीज मुझे महसूस हुआ की मुझे यहाँ दुसरे या तीसरे सेमेस्टर में ही आ जाना चाहिए था....जिससे मै न्यूज़ चैनल्स की रिक्वायरमेंट्स को पहले ही समझ पाता .......खैर ,देर आये दुरुस्त आये बोले तो जब जागो तभी सवेरा ........जब वहां पहुंचा तो मेरे साथ तीस लोग इन्टर्न ज्वाइन किये ...सभी को अलग -अलग जगहों पर लगाया गया...मुझे गेस्ट को -आर्डिनेशन में लगा दिया गया , मेरे साथ मेरे दोस्त राकेश त्रिपाठी जी भी थे .....उन्हें आउटपुट में लगाया ..... बेचारे बहुत ही सीधे और शरीफ आदमी -----पहली बार पता चला की माखनलाल में ऐसे व्यक्तित्व भी उपस्थित हैं ...खैर अगले दिन से मुझसे दोपहर १२ बजे से ९ बजे तक रहने को कहा गया ...............एक हफ्ते बाद मुझे में लगा दिया गया है...आउटपुट वाले साहब ९ बजे बुलाने लगे हैं आने लगा हूँ..आना पड़ता है....इधर गेस्ट वाले सर और मैडम अभी तक मुझ पर अधिकार जता रहे हैं ....शाम को ६ बजे से गेस्ट के घर भेज देते है ....................१० बजे रात तक की छुट्टी ....... फिर भी जाता हूँ..पहले ही बता चूका हूँ कि जाना पड़ता है .........वैसे मजा भी आता है नेता -सांसद- विधायक-पत्रकार सबसे मुलाकात हो जाती है ...इधर मेरे साथ अन्शुमान सिंह और आशीष चौरसिया भी आये हैं इंडिया टीवी में ....अन्शुमान का तो दोपहर १२ बजे से मानो दम -बेदम होने लगता है ...............लगते हैं ----- कॉल करने -मिस कॉल करने , मैसेज भेजने.... कहाँ हो..कब आइहो .....मै आ जाता हूँ ,,,सच कहूँ तो मुझे भी मजा आता है ....जितना मजा क्लास छोड़ने में नही आता था उससे ज्यादा मजा यहाँ आता है ........दोनों लोग मिलकर कभी जी न्यूज को कभी- पी न्यूज को ....................गरियाते रहते हैं........बीच -बीच में विवेक - प्रकाश(सी एन ई बी )अभिमन्यु, भाई लोग से मुलाकात होती रहती है...एक शाला एक लड़का से भी रोज मुलाकात हो जाती है.....वो कब खुस हो जाता है कब रोने लगता है पता ही नही चलता ,वो भी अपने आप में एक सनसनी है...........
एक दिन पी सी आर रूम में गये ...मेरे साथ एक लड़का और था.....लड़के ने कुछ पूछ दिया ......मानो उससे कुछ गलती हो गयी --------- एक साहब बौरा गये ,कहने लगे................ कहाँ चले आये ?किस फिल्ड में चले आये ,तुम लड़की होते तो तुम्हारा कुछ होता भी , कुछ किया भी जाता ,तुम हो लौंडा ,तुम्हारा क्या किया जाये , ...........................भाई हम तो सुनकर दंग रह गये, खैर वो भी पक्का मर्द निकला जो सच्चाई थी ,खुलकर कह दिया .......लेकिन भाई (DAR) भय के आगे जीत है ... इंशा अल्ला सीख ही रहा हूँ.........कुल मिलाकर आईबी एन में प्लेसमेंट की सम्भावना बहुत कम है ..........वैसे दुसरे जगह मिलेगी, तीसरे जगह मिलेगी ......बचके कहाँ जाएगी..... मिलेगी-मिलेगी ...क्योंकि हम हैं राही प्यार के फिर लिखेंगे - चलते चलते........ विवेक भाई जय श्री राम

विवेक भैया के नाम अंकित क़ि चिट्ठी ....................

मेरा नाम अंकित तिवारी है ....मै क्लास 4थ में एयरफोर्स स्कुल में पढता हूँ.....मुझे गाँव जाना पसंद है....मै अपने पापा मम्मी को बहुत पसंद करता हूँ...मै खरगोश  को बहुत पसंद करता हूँ.....मुझे खाने में लोकी पसंद है......मेरा फेवरेट सब्जेक्ट मैथ है ...मेरा सपना बैंक मैनेजर बनना है.......आज के लिए बस इतना ही...............
.......................................................................विवेक भैया को अच्छा लगेगा तो फिर लिखूंगा........

सोमवार, 29 मार्च 2010

तमाशा राजनीति का..

हमारे देश के नेता अजीबो गरीब हरकते करते रहते हैं और अपने  धूर्तगिरी  का परिचय भी समय समय पर देते हैं.. लो एक नया बखेड़ा महाराष्ट्र में फिर से तैयार हो गया है और इस बार कांग्रेस ने अपनी वास्तविक छवि से सबको  परिचित कराया है, आखिर कब तक कोई पाखंड का चोला पहनकर बैठ सकता है दरअसल अभिताभ को बांद्रा वरली के एक कार्यक्रम में बतौर अथिति के तौर पर बुलाया गया था लेकिन  अतिथि  को भगवान का दर्जा देने वाले इस देश में कांग्रेस के कुछ नेताओं ने अभिताभ और अशोक चव्हान  को एक मंच पर देखा तो उन्हें यह दृश्य रास नहीं आया और उन्होंने इसका विरोध किया जिसका असर पुण के साहित्य  सम्मलेन में देखने को मिला ....अमिताभ अपने पिता हरिवंश की कविता पढ़ते रहे और एक के बाद एक देश की समस्याओं को जो वास्तव में कविता में मौजूद थी के माध्यम से राजनीति  और राजनेताओ को पिंच देते रहे ....अब देखिये ये राजनितिक तमाशा कौन सी करवट बदलता हैं ....

रविवार, 28 मार्च 2010

चाहते...

समय के ठहराव पर    ही   हम क्यों   रूक   जाते हैं .चाहते तो कुछ हैं पर मजबूरन करना कुछ पड़ता हैं। आखिर क्यों हम आपनी  चाहतो  को दिन प्रतिदिन  मारते  जा रहे हैं ,चाहतो को माकूल बनाना हमारे ही बस  में  हैं ,फिर भी    हम    असमर्थ क्यों होजाते हैं अब खुलकर सोचिये....

सोमवार, 22 मार्च 2010

योग्यता

 अपनी जिन्दगी का एक बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा,
 तुमने योग्यता अर्जित करने में लगा दिया,
 इस  दौरान तुममे कई कुंठाओ ने घर किया ,
 जिसे तुम  समझ  न  सके
 अब तुन्हारी योग्यता दो पन्नों में फनफनाने लगी,
 कुछ और लोग 
जो अब तुम्हारे योग्यता के दो पन्नो पर सवाल पूंछेगे
ये सवाल पूछने वाले जिन्दगी के उस पड़ाव पर हैं 
जन्हा इन्हें अपनी योग्यता के आधार पर
 यह सवाल पूछना है की तुम्हारी योग्यता क्या है ?
प्रश्नों का दौर चलता है
तुम अपनी योग्यता साबित करते जाते हो |
और अंत में एक व्यक्ती तुमसे कहता है
एक अंतिम प्रश्न पूंछू ?
आप पूरे आत्मविश्वास से लबरेज़ हो प्रश्न पूछने की अनुमती  दे देते है
वह आपसे पूछता है
तुम्हारी जाति क्या है ?
और फिर  भीषण सन्नाटा जो तुम्हारे मन से उपज कर 
एक बंद कमरे में फ़ैल जाता है 
 तुम उस बंद कमरे से बाहर चुपचाप उठ कर चले आते हो 
और अंत में आपके मन में एक सवाल खड़ा होता है 
जो अंतविहीन बहस की तरह  हो जाता है 
आखिर योग्य कौन ?  

बुधवार, 10 मार्च 2010

बाल ठाकरे और उनका मराठी मानुस

बाल ठाकरे और उनका मराठी मानुस शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे आज जो मराठी मानुस की बात तेजी याद आने लगी है उसका कारण है कि उन्हें लोकसभा और बिधान सभा मै उनका जनाधार कम हो गया है उनको उनकी मराठी जनता ने पूरी तरह से नकार दिया है तथा उनके भतीजे राज की पार्टी को १३ सीटें प्राप्त हुई इससे बोखलाए बाल ठाकरे ने एवं उद्धव ठाकरे दोनों ने उत्तर भारतीयों को बहार निकलने एवं पाक खिलाडियों का समर्थन करने वाले शाहरुख खान को भी उन्होंने देशद्रोही ही नही कहा वल्कि यहाँ तक कहा कि उन्हें पाक चले जाना चाहिए समझ से परे है कि शाहरुख़ ने यदि देश द्रोह किया है तो २००४ मै जब बाल ठाकरे ने पाक खिलाडी जाबेद मियांदाद को अपने बंगले मतोंश्री मै बुलाकर और सम्मानित करके क्या किया था वह देशद्रोह था या देशप्रेम समझ से परे है हैरानी तो तब होती है जब वे मराठी मानुस को अपने साथ लेने के लिए मुंबई मै छात्रों को पिटवाते है , पेपर देने नहीं देते है साथ ही दंगे करना उनका धर्म है वे भूल जाते है कि उनके पिता केशव सीताराम ठाकरे हिंदी के औसत दर्जे के कवि हुआ करते थे तथा प्रबोधंकर उपनाम से कविताये करते थे फिर हिंदी भाषियों का विरोध कैसा क्या सिर्फ राजनीती के खातिर हम देश को भी बाँटने की बात कब तक करते रहेगे इससे मराठी शिवाजी की आत्मा और देश को एकता , अखंडता मै पिरोने वाले सरदार बल्लभभाई पटेल की आत्मा को आसह्नीय कष्ट हुआ होगा जिस तरह से राज ठाकरे और बाल ठाकरे अपना अपना वोट बैंक बढाने के खातिर राजनीती कर रहे है वह सबसे गन्दी राजनीती का उदहारण है और केंद्र सरकार ने जो किया है उससे तो साफ लगता है की सरकार मुंबई और बिहार मै वोट बैंक के लिए आज तक चुप बैठी देखती रही और जैसे ही मराठी मानुस की बात देश मै तेजी से उठने लगी तो राहुल गाँधी मुंबई का दोरा करते है , जनरल की टिकिट लेते है और सकुशल लौटते है सोनिया जी को यह भी चोचना होगा की बिहार या उत्तर भारतीय लोगों के बेटे भी बिहार जाते है तो उनके साथ ऐसा क्यों होता है जिस तरह से बाल ठाकरे को दबाने के लिए राज को बढावा दिया जा रहा है

रविवार, 7 मार्च 2010

होली खेले रघुवीरा ................

सबसे पहले तो आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाये ............ होली की शुभकामना में देरी के लिए क्षमा चाहता हु.........दरअसल लेट होने का भी एक कारन है ............चुकी में गाँव को रह्नेबाला हु और वहा नेट की व्यबस्था नहीं थी...........इस कारन लेट हो गया खेर जो भी हो..................इस बार होली पर मजा आया और आता भी क्यों नहीं ....अब रंग की जगह गुलाल से जो होली होने लगी है..............वैसे तो मैंने पिछले सैट सालों से होली नहीं खली लेकिन इस बार की होली खेलने का मजा ही कुछ और था...............कारण १० वी क्लास तक साथ रहने बाले सरे दोस्त मेरे साथ थे और जम कर मस्ती की ....दिन भर क्रिकेट खेलें .........अब पता नहीं की सभी दोस्त एक साथ एक ही जगह पर कैसे मिलेंगे ......ये दिन शायद ही भूल पायें ............खेरमें अपनी होली बताने के चक्कर में आप लोगों से पूछना भूल गया की आप की होली कैसी रही..........