रविवार, 30 जनवरी 2011
समाजसेवा पर डॉ. विनायक सेन को सबसे बड़ा सम्मान ‘‘उम्र कैद’’
ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते...
मंगलवार, 25 जनवरी 2011
.....सीरत बदलनी चाहिए
लेकिन पता नहीं कब हमारा अंतर्मन जागेगा...हम कब पैसों की जगह नैतिक मूल्यों को तरजीह देंगे...ये किसी को नहीं मालूम...लेकिन करना होगा दोस्तों...आजादी का एक लम्बा अरसा ब्र्र्ट जाने के बाद भी अगर सूरत और सीरत अनहि बदल पाई..तो दोष किसका?हम सबका दोस्तों....हमें नेतील मूल्यों क़ी दुहाई नहीं देनी है...इन्हें बचाना भी होगा....इसी आवाहन के साथ....
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ...
रविवार, 23 जनवरी 2011
लाल चौक ही क्यूं? लाल इलाक़ा क्यूं नहीं?
फोटो गूगल के सौजन्य से. |
शनिवार, 22 जनवरी 2011
ये कैसा "शिवराज" मामा ?
मुम्बई से लौटने के बाद आरुषि के पिता ने कई बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलने की कोशिश की लेकिन उन्हें हमेशा बैरंग लौटा दिया गया....यहाँ तक कि मुख्यमंत्री की जनसुनवाई आवेदन दिए लेकिन अभी तक मामा शिव राज ने अपनी भांजी के लिए कुछ नही कर पाये है......
ब्रेकिंग न्यूज़ की बदलती शक्ल..
एक बानगी देखिये जरा...
जस्टिस जैन के घर फटा दूध.. (bhadas4media से साभार)
ईटीवी, राजस्थान पर आजकल कुछ इसी तरह के न्यूज फ्लैश किए जाते हैं. पट्टी पर चलने वाली खबरों का स्तर बेहद गिरा है. कुछ भी चला दिया जाता है.
किसी के घर दूध फटा तो किसी ने चाय पी.... जैसी स्थितियां भी अब न्यूज है. संभव है रीजनल न्यूज चैनलों के लिए ये खबर हो. पर आप क्या मानते हैं. इस तस्वीर को ध्यान से देखिए और बताइए कि आखिर जस्टिस जैन के घर का दूध किसने फाड़ा होगा? क्या किसी आतंकवादी ने? या सरकारी साजिश है? या ग्वाले ने? आखिर किसने फाड़ा होगा पूर्व जस्टिस एनके जैन के घर का दूध....???:)
ब्रेकिंग न्यूज... मुख्य सचिव को कौवे ने काटा
ज़रा, एक और बानगी देखिये. इसे ETV, Rajasthan की पट्टी कहते हैं... "मुख्य सचिव एस अहमद को कोवे ने काटा".
अब ऐसे में जब चैनल मक्खनबाजी में ही जुटा है...तो फिर आम जानता की बात कौन करेगा...भोपाल का भी एक चैनल है...जिसमे साफ़ तौर पर निर्देश दिया गया है..कि मुख्यमंत्री के खिलाफ कुछ नहीं बोलना है...ऐसी ख़बरें चलाना साफ़ तौर पर प्रतिबंधित की गई है....पता नहीं कहाँ ले जाएगी हमें ये बे सर पैर की पत्रकारिता.....चिंतन और मनन...मै आप लोगों पर छोड़ता हूँ...
बुधवार, 19 जनवरी 2011
असीमानंद और अब्दुल कलीम से कुछ तो सीखिए!
फोटो गूगल के सौजन्य से. |
http://www.gunjj.blogspot.com/
शीर्षक थोड़ा चौकाने वाला हो सकता है। आप सोच रहे होंगे कि एक ऐसे शख्स से हम क्या सीख सकते हैं, जिन्होंने देश में धमाके की बात स्वीकार की हो। जो बम का जवाब बम से देने जैसी सोच की नुमाईंदगी करता हो। और जिन्होंने निर्दोषों की जान लेना ही अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया था। पर मैं असीमानंद के गुनाहों का तजकिरा नहीं करने जा रहा हूँ। आज मैं असीमानंद के एक अन्य पहलू की बात कर रहा हूँ, जिससे हम काफी कुछ सीख सकते हैं। पर इससे पहले बात अब्दुल कलीम नामक युवक की। अब्दुल कलीम मक्का मस्जिद धमाके के आरोप में पिछले डेढ़ साल से जेल में बंद था। इत्तेफाक से असीमानंद को गिरफ्तार करने के बाद उसी जेल में उसी सेल में रखा गया, जिसमें अब्दुल कलीम था। कितना विचित्र दृश्य होगा वह! एक तरफ धमाके का हकीकी गुनाहगार असीमानंद और दूसरी तरफ बेगुनाह अब्दुल कलीम। जेल में मुलाक़ात के दौरान अब्दुल कलीम ने अपने और दिगर बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों के सिलसिले में असीमानंद से बात की और उसे बताया की किस तरह बिना किसी ठोस प्रमाण के उन नौजवानों को गिरफ्तार किया गया और उस पर ज़ुल्म ढाए गए। साथ ही अब्दुल कलीम के अच्छे बर्ताव ने असीमानंद को काफी प्रभावित किया। असीमानंद ने अपने इकबालिया बयान में खुद कहा था कि जेल में अब्दुल कलीम ने उनकी काफी मदद की। उनके लिए खाना व गर्म पानी वगैरह भी लाया करता था। साथ ही नहाने के लिए गर्म पानी भी मुहय्या करता था। इन्हीं चीजों ने असीमानंद के जमीर को झकझोर दिया। असीमानंद ने अपने इकबालिया बयान में कहा कि अब्दुल कलाम के नेक व्यवहार ने उसे गुनाहों का ऐतराफ करने पर मजबूर कर दिया, ताकि उसली गुनहगारों को सजा मिल सके।
आखिरकार असीमानंद का अंत:करण जाग उठा। अपने गुनाहों का प्रायश्चित करने के लिए उन्होंने अपने गुनाहों को स्वीकार कर लिया। असीमानंद ने अपने जीवन मूल्यों को नए सिरे से देखा और एक सही रास्ता चुना। उन्होंने इस बात की जरा भी परवाह नहीं की कि उनके इस कदम से उनके आका नाखुश हो सकते हैं। उन्हें बाकी बची जिंदगी जेल के सलाखों के पीछे गुजारनी पड़ सकती है और उनका हश्र सुनील जोशी की तरह भी हो सकता है। अगर उन्हें परवाह थी तो बस अपने जमीर की। उन्होंने अपने अंतरात्मा की सुनी।
असीमानंद के जीवन का यह पहलू हम सबको आत्म-मूल्यांकन करने की प्रेरणा देता है। हमें चाहिए कि हम आत्ममंथन करें और अपनी गलतियों को सुधार लें। वहीं हम अब्दुल कलीम के चरित्र से भी काफी कुछ सीख सकते हैं। उन्होंने नेक व्यवहार का जो रास्ता अपनाया वो इस्लाम की बुनियादी शिक्षाओं में से एक है। उन्होंने नफरत के बजाय मोहब्बत से काम लिया और असीमानंद का हृदय परिवर्तन किया।
मैं खुद भी इस बात को मानता हूं कि आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता। फिर भी यह सच है कि कुछ हिंदू और कुछ मुस्लिम अपने मार्ग से भटक कर हिंसा का रास्ता अपना लेते हैं। ऎसे लोगों को चाहिए कि वो असीमानंद और अब्दुल कलाम से कुछ सबक लें। यदि वो ऎसा करते हैं तो दुनिया में अमन-चैन निश्चित है। वैसे भी इस दुनिया को प्यार की बहुत जरूरत है। पंक्तियां कितनी सटीक हैं ना!
मंगलवार, 18 जनवरी 2011
वक़्त कि कसौटी पर दम तोड़ती एक फिल्म
शकील "जमशेदपुरी"
http://www.gunjj.blogspot.com/
शाम के करीब सात बजे थे. University से रूम पर आया और FM आन किया. गाना आ रहा था- "पहली-पहली बार मोहब्बत की है....." गाने की इस बोल को सुनते ही इस फिल्म के दृश्य आँखों के सामने तैरने लगे. यह गाना "सिर्फ तुम" फिल्म का है. यह फिल्म पिछली सदी के अंतिम दशक के अवसान के समय रिलीज़ हुई थी. 1999 में आयी संजय कपूर और प्रिय गिल अभिनीत यह फिल्म बेहद सफल रही थी.
इस फिल्म को पहली बार मैंने 2003 में देखा था. तब में 9वी कक्षा में पढता था. शुक्रवार को दूरदर्शन पर देखे गए इस फिल्म के दृश्य दिल पर अंकित हो गए. फिल्म में दिखाया गया था कि किस तरह एक लड़का, एक लड़की को बिना देखे, सिर्फ पत्राचार के ज़रिये ही प्यार करने लगता है. यदा-कदा दोनों एक दूसरे से बात भी कर लेते थे, पर चेहरे से अनजान रहते थे. सिर्फ कल्पनाओं में ही दोनों का प्यार परवान चढ़ता है. फिल्म में दोनों एक-दूसरे से कई बार मिलते भी हैं, पर पहचानने से महरूम रह जाते हैं. फिल्म का अंत रेलवे स्टेशन पर होता है, जहाँ लड़की, लड़के को दिए अपने गिफ्ट (स्वेटर) से पहचान लेती है. लड़की का चलती ट्रेन से कूद कर, लड़के के जानिब दौड़ कर आने वाला दृश्य मुझे आज भी रोमांचित करता है.
आज एक दशक बाद यह फिल्म कितना अप्रसांगिक सा लगता है. क्या आज के दौर में ऐसा प्यार संभव है? Facebook, Orkut, E-mail, 3G, Video Confrencing वगैरह के ज़माने में बिना एक-दूसरे को देखे प्यार मुमकिन है? प्यार का स्वरुप कितनी तेज़ी से बदला है और तकनीक ने इनके मूल्यों पर भी असर डाला है. उस फिल्म में दोनों के मिलने की ख्वाहिश या एक-दूसरे को देखने की इच्छा अपने चरम पर होती थी. इन्हीं ख्वाहिशों ने दोनों के बीच आत्मीय लगाव पैदा कर दिया था. केरल और नैनीताल की भौगोलिग़ दूरी ने उन दोनों के दिलों को बेहद करीब ला दिया था. आज के दौर में यह संभव नहीं. आज के प्यार में मिलने की ख्वाहिशें होती ही कहाँ है. क्यूंकि स्कूल और कॉलेज में दोनों साथ-साथ रहते हैं. उसके बाद देर रात तक किसी रेस्तरां, पार्टी या बार में समय बिताते हैं. रात में जब तक जागते हैं, फ़ोन पर बातें होती रहती है. अगली सुबह तो फिर मिलना है ही. ऐसे में मिलने की ख्वाहिशें पैदा होने का समय ही कहाँ मिलता है! आज भौगोलिक दूरियां एक-दूसरे को करीब नहीं लाती, बल्कि सदा के लिए दूर कर देती है. नए शहर में उसे नया प्यार मिल जाता है. वाकई...वक़्त की कसौटी पर कितना अप्रासंगिक हो गया है वह फिल्म!!!!!!!!!
फिल्म में एक संवाद है, जो पूरी फिल्म का निचौड़ है. एक दृश्य में लड़की कहती है (ठीक से याद नहीं)- "लोगों का प्यार आँखों से शुरू होकर दिल तक पहुँचता है. पर हमारा प्यार दिल से शुरू हो कर आँखों तक पहुंचेगा." इस संवाद के पहले भाग की प्रसंगिकता भले ही थोड़ी बहुत बची हो, पर दूसरा भाग तो आज महज़ कल्पना ही लगता है. सच्चाई तो यह है कि आज का प्यार आँखों से नहीं, बल्कि चेहरे से शुरू होकर, दिल तक नहीं पहुँचता है, बल्कि बेडरूम में जाकर ख़त्म हो जाता है.
job for ... janta tv only 18 to 20 january last date
जनता टीवी को चाहिए योग्य पत्रकार. आप अपना बायोडाटा ऊपर दिए गए पते पर भेज सकते हैं. ध्यान रखने लायक बात--- जितनी तनख्वाह की उम्मीद रखते है लिखना न भूले साथ ही आवेदित पोस्ट भी ज़रूर लिखे.
जॉब का ऑफर सीमित समय के लिए. २० जनवरी आखिरी तारीख है आवेदन करने के लिए. चैनल को सभी पदों के लोगो की ज़रुरत है. आप ट्रेनी, रिपोर्टर, कैमरामन, स्क्रिप्ट लेखक, आदि पदों के लिए आवेदन कर सकते हैं. अधिक जानकारी http://www.jantatv.com/ पर देख सकते हैं. ढेर सारी शुभकामनाएँ .
अबला नहीं भीष्मा कहिये..
ऐसा होता तो नहीं....
विजयी न हो ये पत्थर की लकीर तो नहीं
वादे करके पलट जाना फितरत है उनकी
हम भी ये राह ले लें ये जरूरी तो नहीं
लडखडाये कई बार राहे जिंदगी में
चोट लगने के दार से न चलूँ ये जिंदगी तो नहीं
बादलों की गरज से मेंढकों की आवाज से
ये आसमा हर बार बरस पड़े ये हकीकत तो नहीं
विश्वास रिश्तों लो संजोये रखता है , पर
रिश्ते विश्वास न तोड़ें ऐसा होता तो नहीं......
दुनिया कितनी बड़ी शैतान है....
शुक्रवार, 14 जनवरी 2011
job for u ...aage bhee janhit me jaari rahega
Our Client `I Media Corp. Ltd', a digital arm of 'DAINIK BHASKAR' Group is looking candidates for below mentioned openings.
BHASKAR GROUP (Leading Newspaper in India) is diversified industrial House having leadership in Media Business- English Daily DNA at Mumbai, Hindi Daily Dainik Bhaskar, Gujrati-Divya Bhaskar & Radio 'MY FM' in entire Northern & Western India.
Our Client Websites: daily.bhaskar.com
Dainikbhaskar.com
divyabhaskar.com
indiainfo.com
Position: Sub Editor (for Business Section of English News Website- http://daily.bhaskar.com)
Salary: Rs.20 k to Rs.24 K P.M
Job Details:
Excellent writing skills in English is required.
Job Timings: 8:00 am to 4:00 pm
Candidate would have to commute on her/his own to Sector-63, Noida. (Near Fortis Hospital)
Job Role:
² Writing Business News for the Business Sections of English News website http://daily.bhaskar.com
² Edit and improve Business stories/copies that are received from various sources.
² Liaising with reporters or journalists to clarify facts and details about a story.
² Writing headlines that capture the essence of the story.
² Checking facts and stories to ensure they are accurate, and do not break the law or go against the publication's policy.
Churn out copies with no grammatical and factual errors, as per the organisation's high editorial standard.
Job Location: Sector – 63, Noida.
Desired Candidate Profile:
Ø Should have excellent writing skills in English.
Ø Ability to hand in error-free copy within tight deadlines.
Ø Proficiency with the Internet.
Incase you are interested in the same; we would request you to send your resume to anilgarg@acdplacements.com
Do remember to mention your Current Salary on the top of your Resume.
Anil Garg
ACD Placements
Voice: 9891.01.7892
Email: anilgarg@acdplacements.com
Website: www.acdplacements.com
Office: 305, Gupta Arcade, Mayur Vihar, Delhi-92(INDIA)
गुरुवार, 6 जनवरी 2011
दिग्गी का बयान.....सियासत या हकीकत?
बुधवार, 5 जनवरी 2011
कसम हमने भी खायी है.....
इधर मेहनत करने वाले गरीब (राजा ) लोग महंगाई के कारण भिखारी बन जा रहे हैं.....
गुनहगार कौन है.....मनमोहन सिंह ,
नही वो तो इमानदार हैं......
......राहुल गाँधी...
नही वो तो युवराज है......
.......तुक्का मत लगाओ.....गुनहगार भारत की वो जनता है जिसने ......
इन घोटालेबाजो को पहचानने में गलती की और अपना वोट दिया.......
जागो-जागो-
सोचो और खो..... ऐ मेरे देश तुझे क्या दूँ......चल तुझे मै क्या दे पाउँगा ....मेरे लहू का एक एक कतरा तेरा है....तेरे काम आ जाए........
सोमवार, 3 जनवरी 2011
नई सदी की ग़मगीन शाम..
नई सदी का नया सवेरा नया वर्ष,नया उत्साह,नया हर्ष,नई उम्मीदें,आशा की नई किरण....जो कल था वो आज नहीं रहा,और जो आज समय है वो कल नहीं रहेगा...वक़्त तो अपनी रफ़्तार से दौड़ता ही रहता है....लेकिन जो वक़्त कि रफ़्तार के साथ कदम मिला के चला,वही तो बनता है सिकंदर... लेकिन पत्रकारिता विश्वविध्यालय का एक योद्धा दौड़ने के पहले ही कदम ठिठका कर खड़ा हो गया....दोस्तों ने कहा..तुझे चलना होगा....तुझे पत्रकारिता जगत को नया आयाम देना है...तुझे बोलना होगा...उठाना होगा...मौत से जीतना होगा....लड़ना है जमाने से....देखो पूरा विश्वविद्यालय बुला रहा है तुम्हे...उठो मनेन्द्र....चलो....परिक्षये ख़त्म हुई....घर पर सब इंतजार कर रहे है.......जाने नहीं देंगे तुझे...जाने तुझे देंगे नहीं....मां ने ख़त में क्या लिखा था...जिए तू जुग-जुग ये कहा था....चार पल भी जी न पाया तू........लेकिन वो ऐसे नीद के आगोश में सोया की फिर उठ नहीं पाया......
अभी कल की ही तो बात है,जब मैंने नई सदी का नया सवेरा की मंगल कामना की थी....मगर अफ़सोस की पत्रकारिता विश्वविद्यालय से समय ने एक ऐसा योद्धा छीना....जिसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता....
भोपाल के रेडक्रास अस्पताल में इलाज के दौरान पत्रकारिता विश्वविद्यालय के एक होनहार छात्र हम सबको छोड़कर चला गया. वह विज्ञान पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था. छात्र के सहपाठियों ने इलाज करने वाले डाक्टर पर गलत इंजेक्शन लगाने का आरोप लगाया है. डाक्टर उक्त छात्र की मौत हार्ट अटैक के चलते होने की आशंका जता रहे है. पुलिस ने छात्र के शव को पोस्टमार्टम के लिए हमीदिया अस्पताल भेज दिया है.
रचना नगर में रहने वाले छात्र मनेंद्र पांडेय (28 वर्ष) को अचानक सीने में दर्द हुआ. जिसके बाद उसे इलाज के लिए रेडक्रास अस्पताल में भर्ती कराया गया. दर्द तेज होने पर वहां मौजूद डाक्टर अजय सिंह ने उसे इंजेक्शन लगाया. इसके करीब पंद्रह-बीस मिनट बाद मनेंद्र की मौत हो गई. मनेंद्र को इसके पहले भी सीने में दर्द हुआ था. जिसे कम करने के लिए उसने दर्द निवारक दवाएं ली थी.
पता नहीं इस नई सदी के आगाज में हम लोगो से कहाँ गलती हुई कि हमारा एक मित्र ऐसे रूठा....कि पूरा विश्वविद्यालय उसके कदमो में बैठा है...पर वह अड़ियल है....किसी कि बात नहीं मान रहा है.....वो हमसे दूर जाने की ठान चुका है....देखो कैसे हाथ छुड़ा के भाग रहा है.....कोई रोको उसे...कोई तो मनाओ.....कोई तो होगा जिसकी बात माने.....एकलव्य जी आप ही समझाए......पी.पी.सर आप ही आदेश दो इसे...आपकी बात नहीं काटेगा....
लेकिन शायद पी.पी.सर में भी अब मनेन्द्र को आदेश देने की ताकत नहीं बची....सबके गले रुंधे है....सबको मनेन्द्र से विछोह का दुःख है.....लौट आओ मनेन्द्र ...जुबान पर यही लब्ज है.....लेकिन वो जा रहा है...हम सबको अकेला छोड़कर.....
लौट आओ मनेन्द्र....हम चाय पीने चलेगे.....
प्रधानमंत्री महोदय! जिंदगी लंबी नहीं, बड़ी होनी चाहिए.
रविवार, 2 जनवरी 2011
नई सदी का नया सवेरा
पुराना साल,हर साल की तरह कुछ खट्टी मीठी यादें छोड़ गया...कुछ अनसुलझे सवाल,गुत्थियाँ भी...जिनको हम आगे आने वाले समय में विचार कर सकें,और सही डगर पर चल सकें.....इस साल की शुरुआत के साथ एक ख़ुशी और...की इक्कीसवीं सदी का दूसरा दशक की शुरुवात भी हो गई.....जैसा पहला दशक निकला समाज में कुछ विसंगतियों के साथ,कुछ नए अनुभवों के साथ गुजरा....इस दशक की एक अनसुलझी गुत्थी आरुशी हत्याकांड...जिसमे सी.बी.आई. ने भी हाथ खड़े कर दिए...इसे अपराधी की शातिरता कहें या सी.बी.आई. की नाकामी...खैर...एक उम्मीद कि ये नया दशक भी कुछ उसी तरह या उससे बेहतर साबित हो.....
मुझे याद है कि जिस समय इक्कीसवीं सदी के पहले दशक कि शुरुआत होने वाली थी,उस समय मै कक्षा सात में पढने वाला गाँव का एक भोला सा आम लड़का था...जिसकी न एक अलग सोच थी...न विचार...हाँ...नए साल से एक उम्मीद जरूर थी...कि शायद दुनिया ख़त्म नहीं होगी...क्यों कि उस समय भी ये अफवाह जोरों से चल रही थी कि १ जनवरी २००० को दुनिया ख़त्म हो जायेगी....लेकिन तर्क किसी के पास नहीं था......लेकिन समय गया...गुजरा ...दुनिया आज भी कायम है....समय आज भी अपनी गति से चलायमान है....लेकिन अब २०१२ का भी दर लोगों के ज़ेहन में है.....लेकिन हम भारतीय भी आशावादी है....हम जीतेगे....क्यों कि हम सबमे परिस्थितियों से जूझने का जज्बा है...एक दशक के बाद आज मै एक ऐसे समाज का हिस्सा बन गया हूँ...जिसे अपने अलावा समाज के हर वर्ग के बारे विचार करना पड़ता है...अपने आप में एक सुखद एहसास...हर हिन्दुस्तानी की तरह मुझे भी नए साल से ढेरों उम्मीदें है....
१-क्रिकेट का वर्ल्ड कप इस बार भारत में आएगा.
२-भारत विश्व की एक महाशक्ति के रूप में उभरेगा.
३-संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता मिल जायेगी.
४-युवाशक्ति अपने होने का एहसास राजनीति में जरूर कराएगी.
५-साहित्य लेखन बढेगा.
६-पत्रकारिता के वेद व्यासों,और नारदों को सद्बुद्धि आएगी.
७-हर गरीब को रोजगार मिलेगा
8-हर बच्चे को पढने का अधिकार मिलेगा.
9-चिकित्सा के क्षेत्र में विकास होगा.
१०-हम आर्थिक रूप से भी मजबूत होंगे.
इन्ही अपेक्षाओं और उम्मीदों के साथ हम होंगे कामयाब की भावना के साथ सभी लोगों को
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं'