दूरदर्शी राजर्षि साहू जी महाराज
19वीं शताब्दी के ऐसे महाराजा जिनके अनेक सामाजिक कार्यों की छाप देश के संविधान में झलकती है। शिवाजी महाराज के वंशज साहू जी महाराज ने 1894 में कोल्हापुर की गद्दी सम्भाली। उस दौर में जातिप्रथा की बेड़ियां बहुत मजबूत थीं। अछूत सेवक गंगाराम काम्बले ने जब तालाब का पानी छू लिया तो उच्च जाति के लोगों ने बुरी तरह पीट दिया। जब महाराज को जानकारी हुई तो पीटने को सजा मिली। साथ ही उन्होंने गंगाराम को राजकोष से चाय की दुकान खुलवाई। नाम रखा सत्यशोधक। उनकी दुकान पर बहुत कम लोग जाते थे। साहू जी महाराज अपने सैनिकों के साथ पहुंचे और सबने चाय पी। पैसा भी दिया। देवदासी प्रथा, बाल विवाह, छुआछूत को रोकने के कानून बने, विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा दिया। 1902 ई. में जातिगत एकाधिकार को समाप्त करके सभी पदों पर 50% वंचितों को आरक्षण की व्यवस्था कर दी। यह देश के इतिहास में पहला कदम था। छात्रावास खोले और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये छात्रवृत्ति की व्यवस्था की। खेलकूद को बढ़ावा दिया। 6 मई 1922 को जनप्रिय महाराजा को परिनिर्वाण की प्राप्ति हुई।
आरक्षण के जनक, सामाजिक न्याय के पुरोधा, समतामूलक समाज का सपना देखने वाले साहू जी महाराज की आज 147वीं जयंती है।
,,,नमन।