उत्तर भारत के पेरियार थे ललई सिंह यादव
सामान्य किसान परिवार में जन्मे उत्तर भारत के पेरियार, समाज सुधारक, लेखक ललई सिंह यादव जी की आज 110वीं जयंती है। समाज की बेहतरी के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले ललई सिंह ने पैरियार रामास्वामी नायकर की अंग्रेजी में लिखी पुस्तक ‘‘रामायण : ए ट्रू रीडि़ंग’’ का हिंदी में अनुवाद "सच्ची रामायण" से किया। एक जुलाई 1969 को प्रकाशित इस पुस्तक ने पाखण्डवाद, कपोलवाद को समाज के सामने रख दिया। सच्चाई पर लिखी यह पुस्तक हिन्दी पट्टी खासकर उत्तर और उत्तर पूर्व भारत में आते ही तहलका मचा दिया। धर्म की दुकानों पर असर होने लगा। इसके चलते 8 दिसंबर 1969 को सरकार ने जप्ती के आदेश दे दिये। मामला कोर्ट में गया। 19 जुलाई 1971 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के माननीय जस्टिस श्री एके कीर्ति, जस्टिस केएन श्रीवास्तव तथा जस्टिस हरी स्वरूप की खण्डपीठ ने बहुमत के साथ निर्णय दिया कि -
1. ‘सच्ची रामायण’ की जप्ती का आदेश निरस्त कर दिया।2. जप्तशुदा पुस्तकें ‘सच्ची रामायण’ ललईसिंह जी को देने के आदेश दिये।
3. जप्ती के खिलाफ अपील करने वाले श्री ललई सिंह जी को 300 रू खर्चा देने के आदेश दिये।
देश की नींव आडम्बरवाद, पखण्डवाद को दफ़न करके सच्चाई पर ही रखी जा सकती है, जो 70-80 के दशक में ललई सिंह जी कर रहे थे।
उत्तर भारत के पेरियार, महानायक, ललई सिंह यादव जी के जन्मदिन पर उनके कार्यों को नमन, वन्दन।