,,,कमेरा वर्ग को नमन
मजदूरों के दर्द को या यूं कहें कि मजदूरों को कभी समझा ही नहीं गया। ये एक दिन की बात नहीं। जो बुद्धिजीवी या पैसा वाले, उद्योगपति, अलीट वर्ग है, वह हमेशा उनके लिये जिंदा रहने लायक देते रहे। ताकि वह मरे न और उनको अमीर बनाता रहे। जिसके वो हक़दार थे और हैं, उतना उनको कभी नहीं मिला। नीति नियंताओं ने जो भी रोडमैप बनाया। उसमें उनका शोषण भी शामिल था। हम ऊपरी बातें और दिखावा तो बहुत करते हैं। एक दिन की छुट्टी या माला पहनाकर या मामूली पैसा बढ़ाकर या कुछ शब्द मीठे बोलकर इतिश्री कर लेना चाहते हैं। मगर किसी भी देश की बुनियाद तैयार करने वाले इस वर्ग का सम्पूर्ण भला सोच ही नहीं गया। यही कारण है कि कुपोषण मिटाने के लिये करोड़ों के बजट बनाये जाते मगर मूल जड़ पर बार नहीं किया जाता। दर दर की ठोकरें खाने के बाद भी वह दोष किसी को नहीं देता। बस हाड़-मांस के सूखे शरीर से मेहनत जानता है। जब पसीने की बूदें इस धरा को सींचतीं हैं तब जाकर अट्टालिकाएं तैयार होती हैं और फिर उनसे उसको धकेल दिया जाता। यही कहानी है उनकी।
ये देश किसानों, मजदूरों, हाथठेला वालों, कारीगरों, चप्पल बनाने वालों, गटर साफ करने वालों आदि का पहले है। वह लेता नहीं, हमेशा देता है। इस वर्ग के चेहरों पर जब खुशी नहीं आएगी तब तक कोई भी देश तरक़्क़ी की इबारत नहीं लिख सकेगा।
देश की नींव तैयार करने वाले कमेरा वर्ग को नमन, वंदन।
जिनके घरों में खाने का सामान भरा पड़ा है उनको विश्व मजदूर दिवस/ श्रमिक दिवस/मई दिवस की बधाईयां।
,,,बाकी तो उनकी स्तिथि किसी से छुपी नहीं।
उम्मीद है इन गरीबों, मजलूमों की स्तिथि कभी सुधरेगी।
,,,फूलशंकर
मजदूरों के दर्द को या यूं कहें कि मजदूरों को कभी समझा ही नहीं गया। ये एक दिन की बात नहीं। जो बुद्धिजीवी या पैसा वाले, उद्योगपति, अलीट वर्ग है, वह हमेशा उनके लिये जिंदा रहने लायक देते रहे। ताकि वह मरे न और उनको अमीर बनाता रहे। जिसके वो हक़दार थे और हैं, उतना उनको कभी नहीं मिला। नीति नियंताओं ने जो भी रोडमैप बनाया। उसमें उनका शोषण भी शामिल था। हम ऊपरी बातें और दिखावा तो बहुत करते हैं। एक दिन की छुट्टी या माला पहनाकर या मामूली पैसा बढ़ाकर या कुछ शब्द मीठे बोलकर इतिश्री कर लेना चाहते हैं। मगर किसी भी देश की बुनियाद तैयार करने वाले इस वर्ग का सम्पूर्ण भला सोच ही नहीं गया। यही कारण है कि कुपोषण मिटाने के लिये करोड़ों के बजट बनाये जाते मगर मूल जड़ पर बार नहीं किया जाता। दर दर की ठोकरें खाने के बाद भी वह दोष किसी को नहीं देता। बस हाड़-मांस के सूखे शरीर से मेहनत जानता है। जब पसीने की बूदें इस धरा को सींचतीं हैं तब जाकर अट्टालिकाएं तैयार होती हैं और फिर उनसे उसको धकेल दिया जाता। यही कहानी है उनकी।
ये देश किसानों, मजदूरों, हाथठेला वालों, कारीगरों, चप्पल बनाने वालों, गटर साफ करने वालों आदि का पहले है। वह लेता नहीं, हमेशा देता है। इस वर्ग के चेहरों पर जब खुशी नहीं आएगी तब तक कोई भी देश तरक़्क़ी की इबारत नहीं लिख सकेगा।
देश की नींव तैयार करने वाले कमेरा वर्ग को नमन, वंदन।
जिनके घरों में खाने का सामान भरा पड़ा है उनको विश्व मजदूर दिवस/ श्रमिक दिवस/मई दिवस की बधाईयां।
,,,बाकी तो उनकी स्तिथि किसी से छुपी नहीं।
उम्मीद है इन गरीबों, मजलूमों की स्तिथि कभी सुधरेगी।
,,,फूलशंकर