क्या शिथिलताओं के दौर में होगा
होगा तभी जब हौसलों से हौसलों का मेल होगा...
पोखरों-तालाबों में वे अपने छितर गए
सौंप दें सागर इन्हें, तो न जाने क्या होगा...
मिट गया वो इतिहास की किताब से
पत्थरों की भांति जो बुत बना बैठा होगा...
बेटियों ने जिन आँखों में बचपन बिताया होगा
जिन हांथों ने उसके तन को कपड़ा पहनाया होगा
धूमिल होती उस बच्ची की इज्जत
वो मजलूम बाप भला कैसे देख पाया होगा...
इस कलयुग के काल में लूट रहे हैं सब
तू मौन खड़ा हैं यूँ, शायद तुझमें बचा अभी इन्सान होगा...
हर पल की हरकत तम्हारी देख रहा हैं कोई
ऊपर चलेंगें जब तो सारा हिसाब होगा...