D- day very smoothly and peacefully passed away
Its not fear, it is the respect that come from true soul
The day of verdict passed very smoothly and peacefully, rumour was whatever spreading that could not get the place. Past three from I can not have to understand what is going to be happen on D – day, but finally thanks to god nothing is happen else in between the society where I am and other live afar away home , Some people said that am very scared about decision may be or may be not. How I can speak ?
I am not talked anybody to this D- day ……why ? ? ….. only I was looked the atmosphere where was I staid. Many and more met me in tea stall whom into some Muslim and some Hindu. Just I was go sit and take tea and after finishing without looking here and there again come into the room and a few second spent with book then after again turned there where from I was got meal of everyday. ( for myself my head everywhere bend, its does not matter temple or mosque……). Whatever you can understand. But in my word, a respect I have for the both religion so…….today really I feel good because my India is not living with 1992 incident it believe in build power and every community has a good and finest mind so that, The day of verdict passed very smoothly and peacefully. Its not fear, it is the respect that come from true soul
Media prakash
Lokmat Maharastra
Aurangabad
गुरुवार, 30 सितंबर 2010
मंगलवार, 28 सितंबर 2010
केवल नौ दिन की मैया....???
केवल नौ दिन की मैया....???
अदबी और इल्मी माहौल का शहर कहा जाने वाला कोलकता अपने एक और चीज के लिए पूरे हिदुस्तान में शुमार हैं. खैर आप इसमें इतिहास को टटोलेंगे तो भी मुझे गुरेज नहीं होगा, क्योंकि आप अपने तरीके से इस शहर के बारे में जानते हो और मैं जरूर आप से कुछ ज्यादा जानता मालुमात रखा हूंगा क्योंकि भाई मेरी पैदाइस ही यहां कि है.लेकिन जिस विषय को मैं केंद्रित कर रहा हूं मेरा दावा है कि आप उससे सौ फीसदी रू-ब-रू होंगे. कोलकाता शहर का ब्रिटेन स्ट्रीट, कुछ कदम यहां से आगे ब‹ढेंगे तो उसी राह से होती हुई दाहिने मु‹डाव से एक और स‹डक दिखेगी, जिसे लोग बी के पाल के नाम से जानते हैं इसका दूसरा नाम नूतन बाजार भी यहां पीतल की बर्तनों एवं मूर्तियों का बाजार लगता है और इन दुकानों के चबुतरों पर ख‹डे होकरजरा बाये ओर नजरे दौ‹डाएंगे तो दिखेगी, केवल सकरी-सकरी कइयों गलियां और जब इन गलियों में प्रवेश करेंगे तो कोलकाता का लाजवाब पान आप का इंतजार कर रहा होगा. दो रुपए दीजिए पान चबाइए और फिर इसी राह से आगे ब‹ढजाइएं. यही असल काम की मंजिल और अदबी रूह जो आपके रूह तक उतरने को व्याकुल दिखेंगी, और मेरा विश्वास है कि आप भी बिना दिमागी कसरत किए आगे की प्रक्रिया में खुद ब खुद मसरूफ हो जाएंगे. खमा चाई..... लेकिन हुजूर कोई परहेज नहीं करता है. जो भी आते है, बडे इत्मेनान से कार्य का संपादन करते है. जैसे किसी अखबार का आखरी अंक जाने वाला हो.अब तक सारा दृश्य अपके दिमागी धरातल पर साफ उतर गया होगा. मगर आप जो भी समझे होंगे चीजे लगभग वहीं होगी पर सोच जरा सकारात्मक और सृजनात्मक हो तो उसमें भी हर रिश्ते नजर आएंगे. लेकिन सुअरबारे की नजर से नहीं इंसान की नजर से और वह भी इमान को पाक रखकर, भाई मेरा यकीन मानों दुर्गा का स्वरुप यहां भी दिखता और वह भी मां जैसी.यकिन मानिएगा कुछ चीजे ऐसे ही लोगबाग समझते हैं.दुर्गा पूजा बंगाल का एक ऐसा पर्व हैं जो पूरे बंगाल को इस समय मम-मय अर्थात माँ के लिए समर्पित कर देता हैं. चारो ओर बंगाली बा‹िडयों से लेकर भव्य पंडालों की तैयारियां महिनों से चलती हैं. माँ की मूर्तियां कुंभारटोली से लेकर नदियां और नदियां से लेकर हाव‹डा के गपतल्ला गली तक मूर्तियों का निर्माण कार्य चलता हैं. लेकिन पूजा मंडप के लेप हेतूं मिट्टी और शुद्ध जल या फिर मां की मूर्ति को आखरी रूप अर्थात चोख (आंख) बनाने के लिए भी शुद्ध मिटटी और शुद्ध जल की आवश्यकता प‹डती है. जो आखिरकार उस वैश्यालय से प्राप्त होता है जिसे हमारे तहजीबी लोग गलत कहते है, जी ह मैं सोनागाछी के वैश्याई चौखट की बात कर रहा हूं बंगाल की मान्यता रही है कि बिना इसके पूजा अधूरी रहेगी. केवल उन्हें चंद दिनों के लिए माँ स्वीकार करना समझ में नहीं आता मेरा मानना है कि वह सर्वथा से माँ रही है. उनके भीतर झांक कर देखीए, हर रिश्ते नजर आएंगे. चीजों को परोसने को लेकर आप जरूर अटपटा अनुभव किए होंगे......खैर (खमा चाई) (फितरते इंसान से वकिफ हूं मैं इसलिए सोचा ऐतमात के साथ समझा ले जाऊंगा. )गुनजाइश हो तो लिखिए.....आपका ही सभी का फैज है कि लिख रहा हूं....
प्रकाश पाण्डेय लोकमत समाचार महाराष्ट्र औरंगाबाद.....
रविवार, 26 सितंबर 2010
बुढापे ने लाचार किया मांगने को अधिकार....
आंखों की झुरियां, बालों का सफेदपन यह बयां करता है कि जवानी की छटा हुजूर ढल गई है, बु‹ढापे ने दस्तक देना शुरू कर दिया है. खुद को सम्भलों और चलों आराम करों जो बीज तुमने अभी तक लगाया था उसका असल भोग करने का सही वक्त आ गया हैं. तन जाओं दोहन शुरू करों. यह तो पम्परागत हमारा अधिकार कहता है लेकिन जिस बीज को आपने पानी दिया है वह सत प्रतिशत फूला चुका हैं परंतु दुख इस बात की है कि आप ने कुछ ज्यादा ही पानी पीला दिया. यही कारण है कि वह आज आप से अधिक दिमागदार हो चुका है और आपको ही अस्वीकार करना शुरू कर दिया है. आप इस समय लाचार हो गए है, सारी क्षमताएं स्थिर और सिमटने लगी हैं.स्वावलंबी तो आप कतई नहीं रह सकते है. इसका भली भाति एहसास आपको अब तक हो ही गया होगा. खैर ऐसे वक्त में औलाद ही मुंह मो‹ड लिया है तो आप क्या कर सकते है. आपके दिल पर क्या गुजर रही होगी समझ सकते हंै. आपने अपनी हर इच्छाओं की तिलांजलि देकर अपने जिगर के टुक‹डे को उसकी पसंदीदा वस्तुएं समय-दर-समय मुहैया कराया, आज जब आप पर ही संकट के बादल मंडराने लगे है तो बेटे जनाब ने मुंह मो‹डना शुरू कर दिया. वाह खुदा तुने कैसे वक्त में ऐसे बच्चों को जन्म दिया था. सारी मशांए मानों खोखली मात्र रह गई हैं. बेटा जनाब क्या आपके बु‹ढापे का सहारा बनेंगे. लेकिन इस मॉडन दौर के कुछ दिमागदार सपूतों ने खुद को प्रमाणित कर दिया है कि वो औलाद नहीं धरती के अनचाहे अवसाद है जिसे इस धरती पर आने का कोई हक ही नहीं था. खैर आ ही गए है तो विषाद जरूर फैलाएंगे और आप बचकर कहा जाएंगे.जिम्मेदारियों का उन्हें कोई एहसास नहीं होता क्योंकि स्कूल से लेकर कॉलेज जाने तक आपने बच्चा हैं कहकर उसे जिम्मेदारी सौंपी ही नहीं. दायित्व को इन नवाबजादों ने पंचतत्व में विलीन कर दिया हैं. आज सबकुछ खोकर आप लोग स्वयं अपने अधिकार के लिए गि‹डगि‹डा रहे हैं तो क्या होगा. चलिएं दोहरे अर्थों को छो‹डकर साफ-साफ बात करते है. हालही में दिल्ली हाई कोर्ट में ७३ साल के एक बुजुर्ग ने अपने बेटे के खिलाफ अर्जी दाखिल कर अपने प्रोटेक्शन की मांग की. खैर यह पहला मामला नहीं होगा,ऐसे बहुतायत मामले हैं, जिसमें बुजुर्ग कभी प्रोटेक्शन की मांग करता है तो कभी गुजारा-भत्ते की गुहार लगाता हंै. लेकिन धन्यवाद भारतीय संविधान और न्यायालय का जिसने इस पूरे मसले पर ध्यान केद्रित करते हुए औलाद की कानूनी जिम्मेदारी को तय कर, इस संदर्भ विशेष के लिए निर्मित कानून के अंतर्गत नियम कायदों को बनाया. न्यायालय ने बुजुर्गों के अधिकारों को सुरक्षित रखते हुए कुछ नियम कायदे बनाए जो उनके बुरे दिनों में संकट मोचन का काम करती हंै.नियम कायदे :औलाद अपने माता पिता को किसी भी रूप से परेशान कर रहा हो, चाहे वो शारीरिक उत्पी‹डन हो या मानसिक ऐसे स्थिति में बुजुर्ग को अपने हक के मद्देनजर स्थानीय थाने में पहुंच अपने बेटे के खिलाफ केस फाइल कर कार्रवाई की मांग कर सकता हंै. भारतीय संविधान में व्यक्ति विशेष की स्वतंत्रता के मद्देनजर कुछ मौलिक अधिकार बनाए गए हैं. अनुच्छेद-२१ के कहता है कि सभी को जीवन जीने की स्वतंत्रता दी गई हैं. किसी कारण वस व्यक्ति को यह लगे कि उसके इस स्वतंत्रता पर कोई किसी प्रकार का बंदिश लगा रहा हैं तो संबंधित स्थानीय पुलिस थाने में पहुंच प्रोटक्शन की मांग कर सकता हैं. अगर ऐसे में पुलिस सहयोग नहीं करती हैं तो बुजुर्ग कोर्ट में मामले को दर्ज करा कर प्रोटक्शन की मांग रख सकता हैं तथा उक्त पुलिस अधिकारी जिसने केस फाइल नहीं किया था के खिलाफ भी मामला दर्ज कर कार्रवाई की मांग कर सकता हैं. इसके अलावा भी बुजुर्ग कानून की सहायता लेकर अपने बच्चों को कानूनी रूप से मजबूर कर गुजारा भत्ता की मांग कर सकता है. संतान नहीं होने की स्थिति में जो भी व्यक्ति उसके जायदाद का वारिस बनता हैं, वह व्यक्ति उनका ख्याल रखेंगा. साथ ही उसके स्वास्थ्य एवं भरण पोषण पर ध्यान देगा. कुछ केस ऐसे भी सामने आते है जिसमें बुजुर्ग प्रॉपर्टी स्वयं के पास अर्जित रखता है और वह इसे विल के जरिए किसी शख्स के नाम कर देता है, तो उस शख्स जिम्मेदारी होती है कि वह उसका देखभाल करें. द मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैंरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन एक्ट २००७ के तहत ट्रिब्यूनल का गठन किया गया. इस ट्रिब्यूनल में एडीएम लेवल का अधिकारी बैंठता है. सेक्शन-१७ के मुताबिक इस मामले में किसी वकील की आवश्यकता नहीं होती है. इसके अंतर्गत दोनों पक्षों को अपनी बात स्वयं रखनी प‹डती हैं. सेक्शन-५ कहता है कि अगर किसी कारण वस बुजुर्ग कोर्ट आने की अवस्था में नहीं है तो वह इस काम के लिए किसी अन्य को नियुक्त कर सकता है.
‘‘बु‹ढापा वृद्धा बचपन का पूर्ण आगमन हुआ करता है. कहा जाता है कि इस अवस्था में प्रवेश करने बाद व्यक्ति की इच्छाए एक बार फिर से जागृत होती हंै, और उसके बर्ताव में एक नटखटी बच्चे का स्वरुप दिखने लगता हैं. ऐसे में वह सोचता हैं कि कोई उसका ख्याल रखे पालन पोषण करें.ङ्कङ्क प्रेमचंद (बु‹ढी काकी )...............
गुरुवार, 23 सितंबर 2010
Mother pain calling out inside the orphan
मंगलवार, 21 सितंबर 2010
हम ही है हिंदुस्तान
हम ही है हिंदुस्तान
संगम से बना है देश हर धर्म इसकी जान , कई धर्मो , भाषाओ ,संस्कृतियों से मिलकर बना है हिंदुस्तान ।
हिंदुस्तान शरीर है धर्म इसकी भुजाये एक भी भुजा कटी तो अधुरा रहेगा हिंदुस्तान
है उदारहण पडोशी देशो की पहचान , कट कट कर जो बने है और लगते है बेजान
कहते है इनका या उनका है हिंदुस्तान ,वो खुद ही नहीं जानते क्या चीज है हिंदुस्तान
चंद स्वार्थियो के चक्कर में हम अगर पड़ जायेंगे, स्वार्थी स्वार्थ निकालेंगे और हम खड़े पछतायेंगे
नेता कुर्सी की तलाश में अपने घोड़े दौड़ाएंगे, इन घोड़ो के पैरो से बस मानव रौंदे जायेंगे
मानवता होगी शर्मशार और नेता खुशी मनाएंगे, विश्व पटल पर भारत की संकीर्ण छवि बनायेंगे
वो घूमेंगे ए० सी 0 में और हम फुटपाथ पर रात बिताएंगे,
कभी कभी कुछ जलशो में वो हम पर रहम दीखायेंगे ,पीछे मुड़ते ही हमारी गरीबी लाचारी का मजाक उड़ायेंगे
हमसे ही बने है वो और वी ० वी ०आई० पी ० कहलायेंगे , अब हम उनके दरवाजे के अन्दर नहीं घुसने पाएंगे
इसलिए दोस्तों कहता हू लो खुद को पहचान ,इससे पहले फिर एक बार जल उठे हिंदुस्तान
बेनकाब करो इन अलगाववादी ताकतों को और बता दो ,
न हम हिन्दू है न है हम मुसलमान , हम जान गए है की हम ही है हिंदुस्तान
हम ही है हिंदुस्तान ............ जो
सोमवार, 13 सितंबर 2010
विलक्षण व्यक्तित्व के धनी थे " पर्वत पुत्र "
रविवार, 12 सितंबर 2010
भला हिजड़ों के राज में भी राम मंदिर का निर्माण हो सकता है क्या...........हाँ कोशिश करना पड़ेगा इसलिए सभी राम भक्तों से निवेदन है की हनुमान चालीसा पढ़े....जिससे हमारे सभी भाइयों को सदबुद्धि आये ......और राम जी का भव्य मंदिर अयोध्या में बने......जय श्री राम......
शुक्रवार, 10 सितंबर 2010
अ लोट केन हेप्पेन ओवर कोफ्फ़ी.....
दोस्तों ये जो मैंने शीर्षक दिया है ......ये देहरादून कि एक स्वीट कि शॉप का नाम है....यह दुकान एक देहरादून कि मशहूर दुकान है .......इस दुकान में एक बड़ा एल. सी. डी. टीवी लगा है .....
में इस दुकान के पास खड़ा आपनी गाड़ी का इंतज़ार कर रहा था ...तभी एक चमक दमक वाली गाड़ी से उतरी दो नव युवती जो फोन पर किसी से हँस-२ कर बात कर रही थी ...वो दोनों इस दुकान के अन्दर कुछ खरीदने के लिए जाती है ..... जब मेरी नज़र इस बड़े एल. सी डी टीवी पर पड़ी तो उस पर फेसन चैनल का कोई प्रोग्राम चल रहाथा ...जिस पूर्ण रूप से नग्न प्रदर्शन कों परोसा जा रहा था ....कुछ लडकिया रेम्प पर चल कर एक दुसरे कों निहाररही थी ...
तो फिर मैंने मन में एक विचार आया कि देश के बड़े -२ शोपिंग माल पर लगे बड़े -२ एलसीडी और उनपर चलते ज्यादातर फेशन , एम् टीवी, वी,. चैनल ........ इत्यादि ग्लेमररायिज़ेसनसे जुड़े तमाम चैनल जो आज काल के नव युवाओ कों अपनी और आकर्षित करते है ..... जिस कि चाह में हर एक नव युवक -युवतिया हर चीज़ शोपिंग माल से ही खरीदना पसंद करते है .....जेसे युवा पिज्जा हट, केडबरी, स्नेकक्स ...........आदि। आप कभी भी आपको इन जगह पर ज्ञानवर्धक चीज़े न ही सुनने कों मिलेगी ..और ना ही देखने कों मिलेगी .... इस ग्लोबलाईजेसन कि चका चोंद्द कि रौशनी में अंधे ये युवा अपने विचारो कों अँधेरे में धकेल रहे रहे है ....
कहने का मतलब ये है कि इस प्रकार के तमाम चेंनेलो पर नग्नता के अलावा कुछ और नहीं परोसा जारहा है ......
मंगलवार, 7 सितंबर 2010
सोमवार, 6 सितंबर 2010
चुप रहो , सब चुप रहो, कोई नही बोलेगा , इस देश में सबसे होशियार मेरी माँ है ----और सबसे योग्य मै..
जी हाँ कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर फिर से सोनिया गाँधी विराजमान हो गयी हैं और देश का अगला प्रधानमंत्री भी अघोषित रूप से राहुल गाँधी ही माने जा रहे है....बाकि इस देश में कोई न तो युवा है न ही योग्य ......और तो और खुद तो परिवारवाद की मिशाल कायम कर रहे हैं..और युवाओं को बेवकूफ बनाने के लिए .युवक कांग्रेस में संगठन चुनाव कराकर युवाओं को आगे लाने की बात कर रहे हैं......आगे और लिखूंगा अभी टाइम नही है..
रविवार, 5 सितंबर 2010
माखनलाल वि.वि. के कुलपति श्री बी.के कुठियाला जी की रीवा यात्रा (४ सितम्बर २०१०)
रामचन्द्र rewa me एक एन जी ओ भी चला रहे हैं जिसमे पत्रकारों की भागीदारी सर्वाधिक है ...ये जनता के सहयोग से जनता की सेवा की मिशाल कायम कर रहे हैं...
वाह रे जी मान गए...
वाह रे !शीला जी मान गए
दिल्ली वाले सब जान गए
अब क्या बहाना मारेंगी
कलमाड़ी का कहा और मानेंगी
अब तो दुनिया सारी जानेगी
मीडिया भी है खूब डट गया
मजदूर बेचारा खट गया
वेल्थ ही वेल्थ बट गया
बचा है सब कॉमन-कॉमन
अब कौन थामेगा तुम्हारा दामन
वाह रे !शीला जी मान गए
दिल्ली वाले सब जान गए
अब दिल्ली भी है सोचती
बेकार में ही क्यूँ मै उजड़ गयी
चारो और ठसाठस भर गयी
टम्प्रेरी व्यवस्था में बस जायेगी
वर्ल्ड क्लास मेट्रो भी शर्माएगी
यात्री उठेंगे या सामान उठेगा
गेम्स में यह सवाल बनेगा
और किस-किस को खिलाएँगी
आखिर मंहगाई कब घटाएंगी
अन्न-पानी को जब सब तरसेंगे
तब मणिशंकर जैसे तुम पर बरसेंगे
वाह रे !शीला जी मान गए
दिल्ली वाले सब जान गए
कलमाडी जी कुछ ध्यान धरो
राष्ट्र का पैसा यूँ न बर्बाद करो
उधर गिल जी की अलग राग सुनो
"अफसर नहीं खिलाडी चुनो"
आप तो गिल साहब केवल दाना चुनो
आप ने ही तो कहा है
"भगवान् खेल करवाएगा"
फिर ज़रा सोचिये राष्ट्र क्यूँ शर्मायेगा
मनमोहन जी आप क्यूँ शांत हैं ?
आपकी समितियों के तो खूनी दांत हैं
अब तक इस "मनमोहन कॉमनवेल्थ"में
खर्च हुआ है बेवजह का फाईनेन्स
देख सके तो देख ले
नहीं तो लगा ले लेंस
रकम आपको भी बड़ी दिखेगी
वित्त में आपकी समझ बढ़ेगी
हे! मनमोहन, शीला और कलमाडी जी
कुछ तो दया करो इस जनता पर
है सावन होगा कॉमन
जनता की हेल्थ पर भी ध्यान दो
सबको दिया हम लोगो को भी कुछ वेल्थ दान दो
फिर हम कहेंगे
वाह रे ! जी मान गए.....